प्राकृतिक संरचना
बिहार का प्राचीन भू-गर्भिक इतिहास चतुर्थ कल्प से लेकर कैम्ब्रियन पूर्व कल्प तक फैला हुआ है। उत्तरी बिहार का मैदान चतुर्थ कल्प से, उत्तरी चंपारण तृतीय कल्प से, रोहतास, भोजपुर, कैमूर, बक्सर और औरंगाबाद विध्यन नवीन काल से संबंधित है। बिहार का जलोढ़ मैदान संरचनात्मक दृष्टि से सबसे नवीन संरचना वाला क्षेत्र है।
प्राकृतिक एवं संरचनात्मक दृष्टि से बिहार को निम्न तीन भू-आकृतियों में विभाजित किया गया है- 1. शिवालिक पर्वत श्रेणी एवं तराई क्षेत्र, 2. बिहार का मैदान और 3. दक्षिण का पठार
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शिवालिक पर्वत श्रेणी एवं तराई क्षेत्र
- बिहार के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित पश्चिमी चंपारण जिले के उत्तरी भाग में स्थित शिवालिक पर्वत श्रेणी का विस्तार 932 वर्ग किमी. क्षेत्र में है। इस पुरे क्षेत्र का विस्तार यह राज्य के कुल भू-भाग का 06 प्रतिशत है। 586 किमी. हैं।
- यह शिवालिक पर्वतीय क्षेत्र हिमालय का ही भाग है। यह टर्शियरी भू-संरचना के फलस्वरूप बना है। इसी महाकल्प में अनेक नदियों का जन्म हुआ। आधुनिक मानव का विकास इस युग की महत्वपूर्ण घटना है। शिवालिक पर्वत हिमालय का तृतीय मोड़ (Fold) माना जाता है। इस क्षेत्र को 160 मीटर की समोच्च रेखा मैदान से अलग करती है। इसकी ऊँचाई 250 से 800 मीटर के बीच है। पश्चिमी चम्पारण में शिवालिक की दो श्रेणियाँ है जिनके बीच एक सक्रिय अनुदैर्ध्य घाटी है।
- स्थानीय उच्चावच के आधार पर इसे निम्नलिखित 3 उपविभागों में बांटा जाता है-
- दक्षिणी श्रेणी का निम्न पहाड़ी भागः इस श्रेणी में छोटी-छोटी पहाड़ियों का क्रम है. जो 32 किमी. लम्बा और 6 से 8 किमी. चौड़ा है। इस श्रेणी को ‘रामनगर दून‘ के नाम से जाना जाता है। इस निम्न पहाड़ी भाग का सबसे ऊंचा भाग संतपुर के निकट है, जिसकी ऊंचाई 240 मीटर है। यह हरदा नदी के निकट है।
- उत्तर-पूर्व घाटी: इस घाटी का विस्तार पश्चिम में त्रिवेणी नहर के शीर्ष भाग से भिखनाठोरी तक लगभग 75 वर्ग किमी. में है। इस क्षेत्र में कई दरें हैं, जो नदियों के बहाव के कारण बने हैं। दक्षिणी श्रेणी का निम्न पहाड़ी भाग से उत्तर-पूर्व दिशा में एक घाटी है, जिसे हरदा घाटी कहा जाता है। इस घाटी की लम्बाई 22 किमी. है। समुद्र तल से इस घाटी की ऊंचाई लगभग 152 मीटर है। यह घाटी जलोढ़ मैदान का ही एक हिस्सा है।
- सुमेश्वर की श्रेणी: इस श्रेणी का विस्तार पश्चिम में त्रिवेणी नहर के निकट से आरंभ होकर पूर्व में भिखनाठोरी दरें तक लगभग 74 किमी. लम्बा है। इसका शीर्ष भाग बिहार और नेपाल के बीच सीमा के रूप में है। बिहार में इनकी औसत चौड़ाई 5 से 6 किमी. है। यह श्रेणी दक्षिण में 152 मीटर की ऊंचाई से आरंभ होकर उत्तर प्रदेश में 610 मीटर तक ऊंचा है। इस भाग में सुमेश्वर की ऊंचाई 874 मीटर है।
- इस क्षेत्र में कई दरें हैं, जो नदियों के बहाव के कारण बने हैं, जिसमें सुमेश्वर दर्रा, भिखनाथोरी दर्रा हैं, जो नदियों के बहाव के कारण बने हैं, जिसमें सुमेश्वर दर्रा, भिखनाथोरी दर्रा और गरवा प्रमुख है। सुमेश्वर दर्रा और भिखनाथोरी दर्रा कुदी नदी तथा गरवा दर्रा हरदा नदी के द्वारा निर्मित है। नेपाल आने जाने के लिए इस दर्रा का उपयोग किया जाता है। इस भाग का निर्माण परतदार चट्टानों (बलुआ पत्थर), बजरी तथा अन्य स्फटिक कणों से हुआ है। ये मुलायम चट्टानें है।
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बिहार का मैदान
- यह 90,650 वर्ग किमी. में विस्तृत है, जो बिहार के कुल क्षेत्रफल का 96.27 प्रतिशत है। बिहार का यह विशाल मैदान उत्तरी पर्वतीय प्रदेश और दक्षिणी प्रदेश के बीच फैला है।
- यह मैदान गंगा तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा लायी गई जलोढ़ मिट्टी से निर्मित है। मैदानी भाग मध्यकालीन अवसादी निक्षेप से निर्मित है और इसकी संरचना सरल है।
- गंगा नदी के दक्षिणी भाग में सपाट मैदान है और मैदान में चौर की तरह की निचली भूमि है, जिसे टाल कहा जाता है। वर्षा ऋतु में यह टाल क्षेत्र जलमग्न रहता है। इस मैदान की दक्षिणी सीमा 152 मीटर की समोच्य रेखा से निर्धारित होती है।
- गंगा के मैदानी क्षेत्र का ढाल सर्वत्र एक समान एवं धीमा है, जो 6 सेमी. प्रति किमी. है।
- समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 60 मीटर से 120 मीटर के मध्य है। हालांकि इसकी औसत गहराई 1000 मीटर से 1500 मीटर के मध्य है, परंतु कहीं-कहीं इससे अधिक गहराई भी पायी जाती है। निर्धारण: 165 मीटर की कन्टूर लाइन द्वारा ।
- गंगा नदी इस मैदान को 2 भागों में विभक्त करती है- 1. गंगा का उत्तरी मैदान और 2. गंगा का दक्षिणी मैदान।
बिहार का मैदान
- उत्तरी गंगा का मैदान
- दक्षिणी गंगा का मैदान
- गंगा के उत्तर में यह मैदान तराई क्षेत्र तक फैला है। इस मैदान का निर्माण गंगा एवं उसकी सहायक नदियों-गंडक, कोसी, घाघरा, बागमती आदि के द्वारा लाए गए अवसादों के निक्षेपों से हुआ है। इस मैदान का ढ़ाल उत्तर से दक्षिण की ओर एवं उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की ओर है।
- गंगा का उत्तरी मैदान का कुल क्षेत्रफल 56,980 वर्ग किमी. है जो राज्य के का 62.86 प्रतिशत है। कुल क्षेत्रफल समुद्र तल से इसकी औसत ऊंचाई 66 मीटर है।
- गंगा एवं इसकी सहायक नदियों ने इस क्षेत्र को अनेक दोआबों में वर्गीकृत कर दिया है, जैसे- घाघरा-गंडक दोआब, गंडक कोसी दोआब, कोसी-महानंदा दोआब ।
- उत्तरी गंगा का मैदान एक समतल मैदान है और यह जलोढ़ मिट्टी से बनी है। जहां से नदियां ‘मुड़कर अपनी प्रवाह पथ बदलती रही।
- राज्य की उत्तरी सीमा पर यहां लगभग 74 किमी. की लम्बाई तक 450 मीटर ऊंचे सोमेश्वर श्रेणी का विस्तार है। इस श्रेणी के दक्षिण में दून तथा हरहा घाटी का विस्तार 22 किमी. तक मैदानी भाग है।
- गंगा के उत्तरी मैदान में उत्तर से दक्षिण क्रमश: तराई तथा दलदल भूमि वाली उप-तराई की मेखला है। उप-तराई मेखला से गंगा नदी निम्न भूमि का क्षेत्र है। निम्न भूमि महानंदा, कोसी, बूढ़ी गंडक तथा गंडक नदियों के जलोढ़ विस्तार का क्षेत्र है जिसका निर्माण नदियों के निक्षेपित रेत तथा मिट्टी से हुआ है।
- उत्तरी बिहार के मैदान की नदियों से यहां दियारा चौर, प्राकृतिक तटबंध तथा छाड़न झील का निर्माण हुआ है। चौर एक नीचा भाग है, जो सदा पानी से भरा रहता है। इस भाग में एक खास प्रकार की स्थलाकृति ‘दियारा’ का निर्माण होता है।
- मैदान का दक्षिणी सीमान्त क्षेत्र अपेक्षाकृत ऊंचा है। गंगा के समीपवर्ती क्षेत्र में कहीं-कहीं पर झील का निर्माण हो जाता है।
- उत्तरी मैदान को चार भागों में बांटा जाता है-
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- तराई एवं उप- तराई क्षेत्र
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- यह एक सपाट आर्द्र क्षेत्र है, जो शिवालिक पर्वत श्रृंखला के नीचे पश्चिम से पूर्व की ओर एक संकीर्ण पट्टी के रूप में विस्तृत है। इसे भावर क्षेत्र भी कहा जाता है।
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- भांगर भूमि
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- भांगर पुराने जलोढ़ होते हैं।
- इस क्षेत्र के अंतर्गत प्राकृतिक बांध तथा दोआब मैदान के क्षेत्र आते हैं।
- भांगर और दोआब के बीच में एक मध्यवर्ती ढाल मिलता है जो स्पष्ट दिखाई देता है। भांगर भी बाढ़ के ही मैदान हैं।
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- खादर भूमि
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- यह नवीन जलोढ़ का विस्तृत क्षेत्र है। इसका विस्तार गंडक नदी और कोसी नदी के बीच है।
- यह क्षेत्र प्रत्येक वर्ष बाढ़ प्रभावित होता है। जिन नदियों में बाढ़ प्रत्येक वर्ष आती है वहां नदियों के किनारों पर खादर का मैदान विकसित होता है। यह भूमि बहुत उपजाऊ होती है।
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- चौर और मन प्रदेश
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- चौर या मन प्राकृतिक रूप से जलमग्न निम्न भूमि का क्षेत्र है। कुछ चौर या मन मूलतः गोखुर झील है जिनका निर्माण नदियों के मार्ग परिवर्तन के कारण हुआ है।
- उत्तरी बिहार के प्रमुख चौर हैं- लखनी चौर (प. चम्पारण), सुन्दरपुर तथा बहादुरपुर चौर (पूर्वी चम्पारण)
- कुछ प्रसिद्ध मन टेटरिया मन, माधोपुर मन, मोतीझील (पूर्वी चम्पारण), पिपरा मन, – सरैयामन सिमरी मन (पश्चिमी चम्पारण)
- दक्षिणी मैदान राज्य के लगभग 33,670 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला है जो मैदानी भाग के कुल क्षेत्रफल का 37.15 प्रतिशत है। यह मैदान राज्य के 36% क्षेत्र पर विस्तृत है। इस मैदान की चौड़ाई पटना के समीप 135 किमी., गिदौर के समीप 40 किमी. है।
- यह मैदान छोटानागपुर पठार (गोंडवाना लैंड) का उत्तरी विस्तृत भू-भाग है, यहां प्राचीन चट्टान- नीस, शिष्ट और ग्रेनाइट आदि चट्टानों की बहुलता है।
- यहां की पहाड़ियों में बिहारशरीफ के निकट पीर पहाड़ी की औसत ऊंचाई 111 मीटर है। गया में प्रेतशीला, रामशीला तथा जेठियन की पहाड़ियां हैं। जहानाबाद स्थित बराबर की पहाड़ी की औसत ऊंचाई 230 मीटर है। नालंदा के दक्षिणी छोर पर राजगीर की पहाड़ियां है।
- इसका विस्तार पश्चिम में गया तथा पूरब में गिरियक तक है। इस पहाड़ी प्रदेश में गृधकूट पहाड़ी की ऊंचाई 446 मीटर है। मुंगेर में खड़गपुर की पहाड़ियां हैं जिनकी ऊंचाई 160 से 500 मीटर तक है। इस पहाड़ी प्रदेश में शेखपुरा, जमुई तक लखीसराय जिले आते हैं।
- यह बिल्कुल समतल भाग है और इसके बीच-बीच में छोटानागपुर के पठार का बहिवर्ती भाग गया के प्रेतशीला, रामशीला, जेठियन, बिहारशरीफ की पीर पहाड़ी, खड़गपुर की पहाड़ी तथा शेखपुरा की पहाड़ियों का निर्माण करती है।
- छोटानागपुर के पठार से गंगा नदी की ओर प्रवाहित होने वाली नदियों के द्वारा लायी गयी निर्माण हुआ जलोढ़ मिट्टियों से मैदान का निर्माण हुआ है। इस मैदान की प्रमुख नदियां हैं- सोन, पुनपुन, फल्गु, पैमार, किऊल, मान आदि। इसके निक्षेपण के द्वारा ऊंची भूमि का निर्माण है जिसे प्राकृतिक तटबंध कहते हैं।
- प्राकृतिक तटबंध की रूकावट के कारण दक्षिण की ओर से आनेवाली नदियां गंगा के समानान्तर पूर्व की ओर बहती है और गंगा में मिल जाती है।
- बरसात के मौसम में इन सभी नदियों का जल बख्तियारपुर से किऊल तक तटबंध रेखा के दक्षिण में स्थित निम्न भूमि पर फैल जाती है, जिससे एक विशाल जलमग्न क्षेत्र का निर्माण हो जाता है। यह भाग तालक्षेत्र कहलाता है, जिसका विस्तार पटना से मोकामा के बीच है। इस क्षेत्र के प्रमुख टाल है- बड़हिया टाल, मोकामा टाल, सिंघोल टाल. मोर टाल आदि।
- टाल क्षेत्र के दक्षिण में बढ़ती ऊंचाई वाला मैदानी भाग स्थित है, जो मैदान और पठार का संगम स्थल बनाता है।
- इसका ढाल दक्षिण से उत्तर की ओर है लेकिन गंगा नदी द्वारा अपने दक्षिणी किनारे पर प्राकृतिक कगार का निर्माण किये जाने के कारण कगार के आस-पास ढाल दक्षिण की ओर है जिस कारण दक्षिण बिहार की नदियां गंगा से सीधे न मिलकर उसके समानांतर प्रवाहित होती हुई गंगा में मिलती हैं, जो ‘पीनेट प्रवाह प्रणाली’ का उदाहरण है।
- गंगा के दक्षिणी मैदान को मुख्यः तीन भागों में बांटा जा सकता है-
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- सोन- गंगा दोआब: यह सोन नदी के पश्चिम में स्थित है जहां टाल नहीं मिलता है। इसे भोजपुर का मैदान कहा जाता है।
- मगध का मैदान: यह सोन और किउल नदी के बीच स्थित है।
- अंग का मैदानः यह किउल नदी से राजमहल की पहाड़ी तक विस्तृत है।
- इस मैदान की मिट्टी कांप है जो गहरी व चिकनी या पीली दोमट है। इस मैदान के दक्षिण में रेतीली मिट्टी है।
- बिहार के दक्षिण में पठारी भाग स्थित है जो एक संकीर्ण पट्टी के रूप में पश्चिम में कैमूर जिले से पूर्व में मुंगेर और बांका जिले तक विस्तृत है। यह भूखण्ड कठोर चट्टानों से निर्मित है।
- बिहार के दक्षिण में पठारी भाग में कैमूर, रोहतास, औरंगाबाद, गया, नवादा, मुंगेर तथा बांका आदि जिले हैं। यह कुल मिलाकर 2,927 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 3.68 प्रतिशत है।
- कैमूर का पठार 1280 वर्ग किमी. क्षेत्र में रोहतास और कैमूर जिला में फैला है। कैमूर का यह पठार विन्ध्याचल पर्वत का पूर्व विस्तार है जो बालू-पत्थर, चूना पत्थर तथा शैल से निर्मित है।
- छोटानागपुर के उत्तरी सीमान्त क्षेत्र में स्थित खड़गपुर की पहाड़ी मुंगेर जिला में फैला हुआ है। इसका विस्तार पूर्व में बांका तथा दक्षिण में जमुई तक है। यह पहाड़ी भाग राज्य के 1300 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है। यहां ग्रेनाइट, शैल, स्लेट, क्वार्टजाइट चट्टानें हैं। इस पहाड़ी की सीमा 150 मीटर की सचोच्च रेखा से बनती है।
- कैमूर के पठार और खड़गपुर की पहाड़ी के बीच औरंगाबाद, गया और नवादा के पठार भी दक्षिण बिहार के मैदान में एस्कार्प द्वारा मिले हुए हैं और पहाड़ियों घाटियों में विभक्त हैं।
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दक्षिण का पठार
बिहार के दक्षिणी भाग में पश्चिम से पूरब पठारी एवं पहाड़ी क्षेत्र है। इसका विस्तार पश्चिम में कैमूर के पठार से लेकर पूरब में बांका की पहाड़ी तक है। इसके अंतर्गत कैमूर का पठार, गया का दक्षिणी भाग, राजगीर, गिरियक का पहाड़ी क्षेत्र, नवादा, किऊल एवं बांका का पहाड़ी क्षेत्र सम्मिलित है।
दक्षिण के पहाड़ी भाग को चार भागों में उपविभाजित किया जाता है- 1. कैमूर का पठार 2. गया पहाड़ी क्षेत्र, 3. राजगीर- गिरियक पहाड़ी क्षेत्र, 4. नवादा मुंगेर पहाड़ी क्षेत्र ।
- कैमूर का पठारः यह विन्ध्य श्रेणी का पूर्वी भाग है इसे रोहतास पठार भी कहा जाता है। यह राज्य के दक्षिण-पश्चिम भाग में स्थित है। इसका सीमांकन उत्तर के शाहबाद के मैदान से दक्षिण में कैमूर जिला के सीमा से होता है। यह 483 किमी. लम्बाई तथा 80 किमी. चौड़ाई में फैला अपरदित व उबड़-खाबड़ क्षेत्र है जिसकी औसत ऊंचाई 300-450 मीटर है। इस क्षेत्र का सबसे ऊंचा क्षेत्र रोहतासगढ़ है जिसकी ऊंचाई 495 मीटर है। इसे रोहतास पठार के नाम से भी जाना जाता है।
- गया पहाड़ी क्षेत्रः गया के दक्षिणी भाग में कई लम्बी पहाड़ियों का क्रम है। ये पहाड़ियां मैदानी भाग में स्थित है जो छोटानागपुर पठार (गोंडवाना लैंड) का उत्तरी विस्तार भाग है। गया, औरंगाबाद, नवादा और जहानाबाद के सीमावर्ती क्षेत्र में अनेक पहाड़ी स्थित है। इनमें जेठियन, हिंडाज व हल्दिया की पहाड़ी प्रमुख हैं। गया व जहानाबाद के सीमा पर बराबर एवं नागार्जुन पहाड़ी स्थित है जबकि गया शहर के निकट रामशिला, प्रेतशिला, भूतशिला, ब्रह्मयोनि व कटारी पहाड़ी है। बराबर पहाड़ी की औसत ऊंचाई 230 मीटर है। नालंदा जिले के दक्षिण छोर पर राजगीर की पहाड़ियां अवस्थित है। इसका विस्तार पश्चिम में गया तथा पूरब में गिरियक तक है। इस पहाड़ी प्रदेश में गृधकूट पहाड़ी 446 मीटर ऊंची है।
- राजगीर – गिरियक पहाड़ी क्षेत्र: यह नालंदा जिले में स्थित है जिसमें वैभवगिरि, सोनगिरि, विपुलगिरि तथा रत्नागिरि नामक पहाड़ियां शामिल है इनमें वैभवगिरि की ऊंचाई सर्वाधिक 380 मी. है। इसके पूर्व में शांतिस्तूप है। दक्षिण में रत्नगिरी है। इन पहाड़ियों में क्वार्टजाइट और स्लेट की प्रधानता है।
- नवादा – मुंगेर पहाड़ी क्षेत्र: जमुई की पहाड़ी का उत्तरी भाग गंगा नदी तक फैला हुआ है। इस पहाड़ी क्षेत्र में त्रिभुजाकार रूप में फैली खड़गपुर की पहाड़ियां है। इसका विस्तार जमालपुर (मुंगेर) से जमुई तक है। इस पहाड़ी क्षेत्र में वाकिया, चकाई, मंदार, गगेश्वरी, शेखपुरा, सूकरपीठ, बिहारशरीफ, जमालपुर की पहाड़ियां है। इन पहाड़ियों में क्वार्टजाइट की प्रधानता है।
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