बिहार की जलवायु
भारत के पूर्वी भाग में स्थित बिहार की जलवायु को न केवल अक्षांशीय स्थिति बल्कि कई अन्य भौगोलिक कारक भी प्रभावित करते हैं। अक्षांशीय विस्तार के आधार पर यह उपोष्ण जलवायु क्षेत्र में स्थित है। इसलिए यहां की जलवायु उष्णार्द्र मानसूनी है। उष्णार्द्र मानसूनी जलवायु अल्प- वर्षा काल एवं दीर्घ शुष्क काल के लिए जानी जाती है। बिहार की जलवायु में महाद्वीपीय लक्षण पाए जाते है परंतु प्रर्याप्त आर्द्रता के कारण इसको संशोधित महाद्वीपीय प्रकृति का कहा जाता है। पश्चिम बंगाल तथा उत्तर प्रदेश के मध्य स्थित होने के कारण बिहार का पूर्वी भाग पश्चिम बंगाल के समान आर्द्र है तथा इसका पश्चिमी भाग पूर्वी उत्तर प्रदेश के समान उपोष्ण है।
जलवायु प्रदेश
- क्षेत्रीय विषमताओं के आधार पर बिहार की जलवायु को मुख्य रूप से चार भागों में बाँटा जा सकता है-
- उत्तर-पश्चिमी गिरिपाद प्रदेश
- उत्तर-पूर्वी प्रदेश
- रोहतास का पश्चिमी निम्न पठारी प्रदेश
- मध्यवर्ती प्रदेश
- बिहार की जलवायु को निम्नलिखित कारक प्रभावित करते हैं- हिमालय की अवस्थिति, कर्क रेखा से दूरी, बंगाल की खाड़ी से इसकी निकटता, ग्रीष्मकालीन तूफान तथा दक्षिण-पश्चिम मानसून की क्रियाशीलता।
- राज्य के तीन विशिष्ट कृषि जलवायु क्षेत्र हैं- (1) 13 जिलों वाला उत्तर-पश्चिमी जोन जिसमें 1040 से 1450 मिमी तक वर्षापात होता है और मिट्टी बलुई-दोमट है, (2) 8 जिलों वाला उत्तर-पूर्व जोन जिसमें 1200 मिमी से 1700 मिमी तक वर्षा होती है और मिट्टी दोमट या चिकनी-दोमट है, तथा (3) 17 जिलों वाला दक्षिणी जोन जिसमें 990 से 1240 मिमी तक वर्षा होती है और मिट्टी बलुई-दोमट, दोमट, चिकनी या चिकनी दोमट है। दक्षिणी जोन को अन्य दो उपक्षेत्रों दक्षिण-पूर्व एवं दक्षिण-पश्चिम में विभाजित किया गया है।
बिहार के जलवायु क्षेत्र
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भूगोलवेत्ता
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क्षेत्र
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जलवायु विभाजन के संकेतक
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कोपेन
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उत्तरी बिहार
दक्षिण बिहार
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Cwg जलवायु क्षेत्र
Aw जलवायु क्षेत्र
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थार्नवेट
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बिहार का अधिकांश क्षेत्र
उत्तरी संकीर्ण क्षेत्र
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CAw जलवायु क्षेत्र
CBw जलवायु क्षेत्र
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ट्रिवार्था
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उत्तर बिहार
दक्षिण बिहार
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Caw जलवायु क्षेत्र
Aw जलवायु क्षेत्र
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- मिट्टी के लक्षण वर्णन, वर्षा, तापमान एवं भू-भाग के आधार पर बिहार में चार प्रमुख कृषि जलवायु क्षेत्रों की पहचान की गई है-
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- उत्तर-पश्चिम जलोढ़ मैदान (जोन-1).
- उत्तर-पूर्व जलोढ़ मैदान (जोन-II),
- दक्षिण-पूर्व पठारी क्षेत्र (जोन-IIIA).
- दक्षिण-पश्चिम जलोढ़ मैदान (जोन-IIIB).
बिहार में कृषि जलवायु क्षेत्र
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कृषि जलवायु क्षेत्र
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फसल प्रतिरूप
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संबंधित जिले
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मृदा
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उत्तर-पश्चिम जलोढ मैदान (जोन-1)
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चावल, गेहूं, मक्का, आलू, ईख, आम, केला, लीची
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पश्चिमी चम्पारण, पूर्वी चम्पारण, सिवान, सारण, सीतामढ़ी, शिवहर, वैशाली, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, दरभंगा, समस्तीपुर, गोपालगंज, बेगूसराय
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मध्यम अम्लीय, भारी गठन, बलुई दोमट से चिकनी दोमट तक बाढ़प्रवण
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उत्तर-पूर्व जलोढ़ मैदान (जोन-11)
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चावल, मक्का, जूट, चाय, अनार
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पूर्णिया, कटिहार, सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, खगड़िया, अररिया, किशनगंज
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हल्का से मध्यम गठन, हल्की अम्लीय, बलुई से सिल्टयुक्त दोमट तक
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दक्षिण-पूर्व पठारी क्षेत्र (जोन-IIIA)
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चावल, गेहूं, आलू, प्याज, एवं अन्य सब्जियां
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शेखपुरा, जमुई, लखीसराय, बाँका, मुंगेर, भागलपुर
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बलुई दोमट
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दक्षिण-पश्चिम जलोढ़ मैदान (जोन-IIIB)
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चावल, गेहूं, अमरूद, मक्का, चना
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रोहतास, भोजपुर, बक्सर, कैमूर अरवल, पटना, नालंदा, नवादा, जहानाबाद, औरंगाबाद, गया,
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जलोढ़ एवं बलुई दोमट
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बिहार की तीन ऋतुएं
1. ग्रीष्म ऋतु
- यह ऋतु बिहार में मध्य मार्च से मध्य जून तक होती है। यहाँ का अधिकांश भाग कर्क रेखा (23½°C) के ऊपर पड़ता है जिसके कारण यहाँ की जलवायु गर्म है। मार्च से तापमान बढ़ना आरंभ हो जाता है और मई माह में तापमान 45°-46°C तक पहुंच जाता है।
- अप्रैल और मई में सूर्य की स्थिति उत्तरायण होने के कारण तापमान बढ़ जाता है। अतः प्रायद्वीपीय भारत के निम्न दबाव का क्षेत्र खिसकता हुआ उत्तर की ओर बढ़ता है। फलस्वरूप मार्च, अप्रैल एवं मई की अवधि में तेज गति से (औसतन 8-16 किमी. प्रति घंटा) गर्म हवाएं चलने लगती है।
- स्थानीय कारणों से ये अधिक गति से चलने लगती है। दिन के समय गर्म तेज हवाएं चलती हैं जिन्हें ‘लू’ कहते हैं। कभी-कभी स्थानीय रूप से धूल भरी आंधियां चलती हैं जिससे दिन की भयंकर गर्मी का प्रकोप कम हो जाता है।
- लू की चपेट में गंगा के दक्षिणी मैदान के क्षेत्र रहते हैं। ये गर्म हवाएं 8-16 किलोमीटर प्रतिघंटा की गति से बहती है।
- लू के कारण धरती तवे की भांति गर्म हो जाता है। जलाशयों एवं नदियों के पानी के सूखने के कारण कहीं-कहीं सूखे की स्थिति भी आ जाती है। गया जिला में सर्वाधिक तापमान रहता है।
- नार्वेस्टर या चक्रवातीय तूफान जिनका उद्भव बंगाल की खाड़ी में होता है, मई-जून महिनों में आते हैं। इनका ज्यादा असर बिहार के पूर्वी भागों में पड़ता है जहां वर्षा हो जाया करती है। वर्षा के साथ ओले भी पड़ते हैं। इसे काल वैसाखी कहा जाता है।
2.वर्षा ऋतु
- दक्षिणी-पश्चिमी मानसून मूलतः हिन्द महासागर के दक्षिणी विस्तार में उत्पन्न होता है और अरब सागर से होता हुआ प्रायद्वीपीय भारत में प्रवेश करता है।
- यही मानसून बिहार के पूर्वी भाग में प्रवेश करती है। पूर्वी भाग में 8 जून को एवं पश्चिमी भाग में 12 जून से वर्षा शुरू हो जाती है।
- दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के आगमन का मुख्य कारण हिमाचल के उत्तरी-पश्चिमी भारत के अति निम्न वायु दाब का विकास एवं विशेष जैट-स्ट्रीम प्रणालीं को उत्तरी भारत में प्रभावी माना जाता है।
- हिन्द महासागर से भारतीय उपमहाद्वीप की तरफ प्रभावी यह मानसून चूंकि हजारों मील की महासागरीय यात्रा समाप्त करके विषुवत रेखा को पार कर आता है, अतः इसमें अत्यधिक नमी पाई जाती है।
- प्रायः 10-15 जून से 15 अक्टूबर तक का काल राज्य में वर्षा ऋतु या दक्षिणी-पश्चिमी मानसून का समय रहता है।
- राज्य में सबसे ज्यादा वर्षा 180 सेमी. उत्तरी-पूर्वी भाग के तराई एवं उत्तरी गांगेय प्रदेश में होता है।
- मैदानी भागों के पूर्व में 120 से 140 सेमी एवं पश्चिमी भाग में 100 से 110 सेमी. वर्षा रिकार्ड दर्ज की जाती है।
- वर्षा की मात्रा उत्तर से दक्षिण की ओर तथा पूर्व से पश्चिम की ओर घटती चली जाती है। बिहार में 15 अक्टूबर तक मानसून शिथिल हो जाता है तथा मंदगति से हवा विपरीत दिशा में बहने लगती है।
- बिहार में वार्षिक वर्षापात का औसत 1013 मिमी. है। यह वर्षापात मुख्यतः दक्षिण-पश्चिमी मानसून के द्वारा होता है जिसका राज्य के वर्षापात में लगभग 85 प्रतिशत हिस्सा रहता है। शेष 15 प्रतिशत योगदान जाड़ा और गर्मी की वर्षा तथा उत्तर-पश्चिमी मानसून की वर्षा का होता है।
- बिहार के किशनगंज में सर्वाधिक वर्षा जबकि अरवल में सबसे कम वर्षा होती है। बिहार में वर्षापात के वितरण के जिलावार रूझानों से पता चलता है कि दक्षिण-पश्चिमी मानसून से दक्षिणी जिलों की अपेक्षा उत्तरी जिलों में अधिक वर्षा होती है।
- दक्षिणी मैदानों में सूखा पड़ने का रूझान अधिक होता है और भू-जल का स्तर नीचे रहता है जो खेती के मकसद से पानी की उपलब्धता को प्रभावित करता है। दूसरी ओर, उत्तरी भाग मुख्यतः बाढ़ और जलजमाव प्रवण है जिससे फसलों, खास कर की उपज प्रभावित होती है।
3. शीत ऋतु
- मध्य अक्टूबर से मध्य मार्च तक बिहार में शीत ऋतु का समय रहता है। मध्य अक्टूबर में मानसून लौटने के पश्चात् भी नमी बने रहने से वायु ताप में धीरे-धीरे गिरावट आने लगता है। अतः अक्टूबर से नवंबर तक का समय मानसून प्रत्यावर्तन का समय कहा जाना चाहिए।
- शीत ऋतु दिसंबर से फरवरी तक रहती है। बिहार में जनवरी में सर्वाधिक ठंड पड़ती है। न्यूनतम तापमान5° से 7.5° तक रहता है।
- नवंबर के प्रारंभ से ही तापमान में नमी होने लगता है। प्रायः दिसंबर और जनवरी महिने में चक्रवातीय तूफान भी आते हैं। इससे ठंड में वृद्धि हो जाती है।
- तूफान से वर्षा भी हो जाती है जो औसतन 1 से 2 सेमी. तक होती है। यह वर्षा रबी फसल के लिए लाभप्रद होती है। इससे ठंड में वृद्धि हो जाती है। नवम्बर का तामपान6° से 22.2° तक रहती है जबकि जनवरी में औसत तापमान 7.5 से 10.5° सेंटीग्रेड तक रहता है।
- जनवरी में यहां सर्वाधिक ठंड पड़ता है। मैदानी भागों में अधिकतम तापमान5° से 18° सेंटीग्रेड रहता है।
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