कृषि एवं पशुपालन
कृषि
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। यहाँ की लगभग 74% जनसंख्या अपने जीविकोपार्जन के लिए कृषि एवं पशुपालन पर निर्भर है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान लगभग 20% है। राज्य की कुल कृषियोग्य भूमि 80% से अधिक है जिसमें शुद्ध बोया गया क्षेत्र 45.8% है। बिहार के किसान खाद्यान्न के साथ-साथ दलहन, तिलहन, रेशेदार फसलों, ईख, फल, सब्जियाँ आदि का भी उत्पादन करते हैं।
बिहार की मुख्य फसलें
बिहार की कृषि मुख्य रूप से मानसून पर आश्रित है, लेकिन 1970 ई. के बाद सिंचाई सुविधा के विस्तार से कृषि फसलों को काफी विस्तार मिला है। बिहार में बड़े पैमाने पर धान की खेती की जाती है। इसके अलावा गेहूँ, मक्का, ज्वार, बाजरा इत्यादि भी प्रचुर मात्रा में उपजाई जाती है। बिहार में अधिकांश कृषि योग्य भूमि पर खाद्यान्न का उत्पादन किया जाता है तथा कृषि का स्वरूप मुख्यतः जीवनदायिनी है।
चावल
- बिहार का मुख्य खाद्यान्न फसल चावल ही है जो राज्य के लगभग 45 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर उपजाई जाती है। श्री विधि अपनाने और धान के जलवायु सहिष्णु प्रभेदों का उपयोग करने के कारण हाल के वर्षों में उत्पादकता बढ़ी है।
- चावल उत्पादन में स्थिरता लाने की राह में आने वाली बाधाओं में अचानक आने वाली बाढ़ और सूखा, तथा बार-बार होने वाले बैक्टेरिया जनित रोग प्रमुख हैं। राज्य में धान की तीन फसलें अगहनी, गरमा एवं बोरो के रूप में उपजाई जाती हैं जिनमें अगहनी धान की खेती में सबसे अधिक भूमि संलग्न है।
- चावल बिहार में कुल सकल बुआई भूमि के 46% भाग पर चावल की खेती की जाती है।
- बिहार के चावल क्षेत्र के 80% से अधिक भाग में खास तौर से अगहनी (औंस) चावल उगाया जाता है। इसकी बुआई जुलाई-अगस्त में होती है और नवम्बर-दिसम्बर में काटी जाती है।
- धान ऊंचे तापमान, उर्वर मिट्टी एवं 125 से.मी से अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जाता है।
- यह मुख्यतः गण्डक-कोसी के दोआब क्षेत्र में होती है। ऐसे पूरे राज्य में लगभग अगहनी धान की खेती होती है।
- गरमा धान (अमन) के अंतर्गत बिहार का 3% क्षेत्र आता है। इसके लिए सिंचाई के साधन का होना अति- आवश्यक है। इसका उत्पादन पूर्णिया, किशनगंज, कटिहार, अररिया आदि जिलों में होता है।
- बोरो धान की बुआई जनवरी-फरवरी में होती है तथा मार्च-अप्रैल में काटी जाती है। यह फसल बिहार के धान क्षेत्र के 2% से भी कम क्षेत्र पर उपजाई जाती है।
- यह फसल बिहार में मुख्यतः पूर्णिया, पूर्वी तथा पश्चिमी चम्पारण में होती है। इसके लिए सिंचाई साधन की आवश्यकता होती है।
- कृषि रोड मैप 2022 के अनुसार 126 लाख टन चावल के उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
गेहूँ
- धान के बाद गेहूँ बिहार की दूसरी प्रमुख खाद्यान्न फसल है। बलुई दोमट मिट्टी जिसमें नमी धारण करने की अच्छी क्षमता हो गेहूँ के लिए आवश्यक होती है। नवम्बर-दिसम्बर में बीज बोया जाता है तथा मार्च-अप्रैल में फसल काट लिया जाता है।
- यह फसल कुल कृषित भूमि के लगभग 27% भाग में उपजाई जाती है। गेहूँ का प्रमुख क्षेत्र सिंचित मैदानी भागों तक सीमित है। पिछले दो दशकों में बिहार में गेहूँ का उत्पादन बढ़ा है।
- गेंहू के उत्पादन में बिहार का देश में छठा स्थान है।
- पिछले दशकों में गेहूँ उत्पादन का मुख्य कारण हरित क्रांति का प्रभाव है, जिसके कारण उच्च कोटि के बीजों का प्रयोग, रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग तथा सिंचाई सुविधा का व्यापक व प्रभावी विकास हुआ है।
- बागमती नदी के दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र, बेगूसराय जिले के क्षेत्र एवं दियारा क्षेत्र, उत्तरी बिहार के प्रमुख गेहूँ उत्पादक क्षेत्र हैं। बक्सर, भोजपुर, रोहतास, पटना, नालंदा, गया, मुंगेर एवं भागलपुर तथा दक्षिणी बिहार के जिलों में जहाँ सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है, गेहूँ की खेती की जाती है।
- वर्ष 2020-21 में गेहूं की उत्पादकता के मामले में प्रमुख जिले बेगूसराय (3641 किग्रा. प्रति हे.) और रोहतास (3560 किग्रा. प्रति हे.) थे। वहीं, उत्पादन के मामले में रोहतास (6.88 लाख टन), मुजफ्फरपुर (3.9 लाख टन) और भोजपुर (3.71 लाख टन) प्रमुख जिले थे जिनका 2020-21 में राज्य के कुल चावल उत्पादन में 21.8 प्रतिशत हिस्सा था।
- प्रमुख गेहूं उत्पादक जिले रोहतास, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी है। उत्पादकता की दृष्टि से बेगूसराय का स्थान प्रथम है तथा न्यूनतम उत्पादकता गया जिले की है।
- बिहार सरकार ने 2022 तक 74 लाख टन गेहूं के उत्पादन का लक्ष्य रखा है।
मक्का
- यह राज्य में धान और गेहूँ के बाद सर्वाधिक क्षेत्र में बोयी जाने वाली फसल है। बिहार की बालसुन्दरी मिट्टी मक्का की खेती के लिए सर्वोत्तम है।
- यह राज्य के कुल कृषि बुआई क्षेत्र के 3.3% भाग पर बोई जाती है।
- जून-जुलाई में बोयी जाती है और सितम्बर से अक्टूबर तक काट ली जाती है।
- मक्का के प्रमुख क्षेत्र गंगा के तटवर्ती भागों में केन्द्रित है, जिनमें सारण, सिवान, गोपालगंज, वैशाली, मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, बेगूसराय, दक्षिणी सहरसा, उत्तरी मुंगेर एवं भागलपुर जिले सम्मिलित हैं।
- बेगूसराय को बिहार में मक्का का घर कहा जाता है। यहाँ कुल बोये गये क्षेत्र के 40 से 50% भाग पर मक्का की खेती की जाती है।
- मक्का की फसल के मुख्य उत्पादक जिले कटिहार (6.86 लाख टन), पूर्णिया (4.47 लाख टन) और बेगूसराय (3.17 लाख टन) थे। सर्वाधिक 9419 किग्रा. प्रति हे. उत्पादकता अररिया जिले में पाई गई जिसके बाद 9066 किग्रा. प्रति हे. पूर्णिया में और 8201 किग्रा. प्रति हे. में।
- बिहार सरकार ने 2022 तक 90 लाख टन मक्का उत्पादन का लक्ष्य निर्धारित किया है।
जौ
- जहाँ गेहूँ की अच्छी फसल की संभावना नहीं होती वहाँ जौ की खेती की जाती है। असिंचित कृषि क्षेत्रों में भी इसकी खेती सफलतापूर्वक की जा सकती है।
- जौ उत्पादन में पूर्वी और पश्चिमी चम्पारण बिहार में अग्रणी हैं। इसके अलावा गोपालगंज, सिवान, वैशाली और मुजफ्फरपुर में भी जौ की खेती होती है।
- जौ उत्पादन में बिहार का देश में दूसरा स्थान है।
चना
- बिहार में दलहनी फसलों में चना का मुख्य स्थान है।
- गंगा के दक्षिणी मैदानी भाग में भोजपुर, रोहतास, बक्सर, औरंगाबाद, गया, पटना, नालंदा, मुंगेर एवं भागलपुर जिले चने के मुख्य उत्पादक क्षेत्र हैं।
- मुंगेर एवं पटना जिलों में बड़हिया-मोकामा टाल क्षेत्र चना उत्पादन के लिए विख्यात है।
अरहर
- यह दलहन की प्रमुख फसल है। इसके उत्पादन के लिए साधारण किस्म की कम उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है।
- बिहार के लगभग सभी जिलों में थोड़ी-बहुत मात्रा में अरहर का उत्पादन होता है परंतु सारण, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मुंगेर तथा गया इसके प्रमुख उत्पादक जिले हैं।
- पिछले कुछ वर्षों में इसके उत्पादन में गिरावट देखी गई है।
तिल
- इसका उपयोग खाद्य पदार्थ के अलावा तेल एवं सौंदर्य प्रसाधन सामग्री में भी किया जाता है। बिहार में इसका सर्वाधिक उपयोग तिलकुट उत्पादन में किया जाता है।
- तिल के लिए साधारण उपजाऊ मिट्टी की जरूरत होती है जो बिना खाद के भी उगाया जाता है। बिहार में काला व सफेद दोनों ही प्रकार का तिल उगाया जाता है। बिहार में तिल का उत्पादन मुख्य रूप से चंपारण एवं पुराना शाहाबाद (बक्सर, कैमूर, रोहतास, भोजपुर) में होता है। बिहार में गया, पूर्वी चम्पारण और बक्सर जिलों में भी तिल उत्पादित होता है।
गन्ना
- गन्ना उत्पादन के लिये आदर्श परिस्थितियाँ हैं- 26°C तापमान, अच्छी जलोढ़ मिट्टी, अधिक वर्षा या सिंचाई की उत्तम व्यवस्था वाले क्षेत्र।
- गन्ना उत्पादन में बिहार का देश में प्रमुख स्थान है। इसके प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं- चम्पारण, सारण, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, भोजपुर, पटना, मुंगेर, पूर्णिया तथा सहरसा।
- गन्ना उत्पादन में पश्चिमी चंपारण प्रथम स्थान पर है।
- गन्ना उत्पादन में बिहार का स्थान देश में 9वाँ है।
- बिहार में लगभग 3 लाख हेक्टेयर जमीन पर गन्ने की खेती की जाती है।
- ‘मुख्यमंत्री गन्ना विकास कार्यक्रम’ एक महत्वपूर्ण प्रोत्साहन योजना है।
जूट
- जूट के उत्पादन में बिहार का देश में दूसरा स्थान है। इसकी खेती जलोढ़ मिट्टी तथा अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में की जाती है।
- बिहार का पूर्णिया जिला सर्वाधिक जूट उत्पादक क्षेत्र है। यहाँ से बिहार के कुल जूट उत्पादन का 70% भाग प्राप्त होता है।
- इसका प्रयोग पैकेजिंग का सामान, कपड़ा, टाट, रस्सी आदि के निर्माण में होता है। इसके अंतर्गत अन्य उत्पादक क्षेत्र हैं- कटिहार, सहरसा, मुजफ्फरपुर तथा दरभंगा।
फलों का उत्पादन
फलों की अत्यधिक लचीली मांग होने के कारण राज्य में उनकी खेती की संभावना बढ़ी है क्योंकि लघु और सीमांत जोतों में खेती के लिये ये अत्यधिक अनुकूल हैं। मुख्यतः राज्य के उत्तर-पूर्व भाग में उपजाए जाने वाले अनानास के लिए किसानों का उच्च गुणवत्ता वाली रोपण सामग्री उपलब्ध कराकर राज्य सरकार उसकी खेती का क्षेत्रफल बढ़ाने का प्रयास कर रही है।
बिहार में फलों का क्षेत्रफल और उत्पादन (2020-21)
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प्रमुख फल
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क्षेत्रफल (हजार हेक्टेयर)
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उत्पावन (हजार मै. टन)
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आम
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160.24
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1549.97
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अमरुद
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29.80
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434.41
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लीची
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36.67
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308.06
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केला
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42.96
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1979.59
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अनानास
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5.90
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113.59
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पपीता
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3.21
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95.02
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आँवला
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3.55
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15.66
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तरबूज
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4.61
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49.02
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खरबूजा
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4.74
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22.05
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अन्य
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46.29
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434.78
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योगफल
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373.65
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5002.33
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सब्जियाँ
- बिहार में गंगा का जलोढ़ मैदान आलू, प्याज, टमाटर, गोभी, पत्तागोभी और बैंगन जैसी ढेर सारी सब्जियां उपजाने के लिए आदर्श क्षेत्र हैं।
- सब्जियों का औसत क्षेत्रफल 2018-19 के 8.57 लाख हेक्टेयर से बढ़कर 2020-21 में 9. 15 लाख हेक्टेयर हो गया। वही कुल सब्जी उत्पादन भी 3.8% की वार्षिक दर से बढ़कर 2018-19 के 166.03 लाख टन से 2020-21 में 179.05 लाख टन हो गया।
- कुल सब्जी उत्पादन में 91.26 लाख टन आलू, 13.28 लाख टन प्याज, 12.04 लाख टन बैंगन, 11.62 लाख टन टमाटर, और 10.31 लाख टन गोभी शामिल है।
- इन तीनों वर्षों के दौरान सब्जियों के उत्पादन में सर्वाधिक 18.7% वृद्धि खीरा-ककड़ी के मामले में देखी गई और उसके बाद 9.8% टमाटर तथा 5.8% आलू के मामले में।
कृषि रोड मैप
बिहार एक कृषि प्रधान राज्य है। यहां की 74% आबादी अपनी आजीविका के लिए कृषि पर निर्भर है। किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार ने कृषि एवं सम्बद्ध क्षेत्रों के विकास के लिए कृषि रोड मैप की योजना तैयार की है। इस योजना का मुख्य उद्देश्य प्रथम हरित क्रांति से छुट गए बिहार में इन्द्रधनुषी क्रांति लाना है, जो टीकाऊ एवं सदाबहार हो। बिहार में शुरू किए गए तीन कृषि रोड मैप इस प्रकार है-
कृषि रोड मैप-1 (2007-2012)
- राज्य सरकार ने 2007 में पहले कृषि रोड मैप की शुरूआत की थी, जो 31 मार्च, 2012 को पूरा हो गया। इस रोड मैप के अंतर्गत, बीज ग्राम योजना और मुख्यमंत्री रैपिड बीड एक्सटेंशन प्रोग्राम बेहद सफल रहा।
कृषि रोड मैप-11 (2012-2017)
कृषि रोड मैप 1 की सफलता के साथ, राज्य सरकार ने 3 अप्रैल, 2012 को कृषि रोड मैप-II का शुभारम्भ किया गया था। कृषि रोड मैप -II के मुख्य लक्ष्य थे-
- लैंगिक और मानव पहलू पर ध्यान केंद्रित करने के लिए समान कृषि खेती को बनाए रखना।
- खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
- किसान की आय में वृद्धि सुनिश्चित करना।
- पोषण सुरक्षा को सुनिश्चित करना।
- प्रवासन को रोकना और लाभप्रद प्रवासन बनाना।
- प्राकृतिक संसाधनों के स्थायी उपयोग से प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करना और उन्हें बनाए रखना।
- बिहार में कम-से-कम एक उत्पाद को हर भारतीय की थाली का हिस्सा बनाना।
- राज्य में सिंचाई क्षमता का विस्तार।
कृषि रोड मैप-III (2017-2022)
- 9 नवम्बर, 2017 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बिहार की राजधानी पटना के बापू सभागार में आयोजित कार्यक्रम में तीसरे कृषि रोडमैप 2017-2022 को उद्घाटन किया।
- इसका प्रमुख उद्देश्य बिहार में खेती को रासायनिक खाद से छुटकारा दिलाना तथा जैविक कृषि को बढ़वा देना है।
- प्रस्तावित कृषि रोडमैप में डीजल की बजाए बिजलीचालित पंप सेट पर विशेष जोर दिया गया है। किसानों को पुआल खेत में जलाने से रोकने के लिए पैडी स्ट्रॉ, ट्रैक्टरचालित चैफ कटर, स्ट्रॉ कंबाइन, स्ट्रॉ बेलर और रैक पर अनुदान देने का प्रस्ताव किया गया है।
- गंगा के तटवर्ती क्षेत्रों में सीवर जल को उपचारित कर इसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाएगा।
- गंगा नदी के दोनों किनारे पर जैविक खेती को बढ़ावा देकर एक जैविक कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा।
- राज्य में पाँच पशु विज्ञान व अन्य संस्थान की स्थापना करने और वन क्षेत्र को वर्ष 2022 तक बढ़ा कर 17% करने का लक्ष्य रखा गया है।
- प्रस्तावित रोडमैप में किसानों की आय बढ़ाने के लिए खेती के साथ फूल, सब्जी, पशुपालन, मत्स्यपालन और मधुमक्खी पालन आदि को भी जोड़ा जाएगा।
- तीसरा कृषि रोड मैप में दलहन व तेलहन उत्पादन बढ़ाने को सर्वोच्च प्राथमिकता देने के साथ बिहार में बीज-हब की स्थापना एवं सिंचित क्षेत्र के विस्तार के लिए कृषि के लिए अलग बिजली फीडर के निर्माण का लक्ष्य है।
- इसके अंतर्गत 1.54 लाख करोड़ रुपये के व्यय का लक्ष्य रखा गया है।
भूमि उपयोग पैटर्न
- बिहार में पिछले तीन वर्षों में लगभग 56 प्रतिशत जमीन का उपयोग फसलों के लिए हुआ है।
- राज्य में शुद्ध बुआई क्षेत्र 2018-19 में 51.67 लाख हे. था जो कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 55.2 प्रतिशत है। वहीं, उस वर्ष सकल शस्य क्षेत्र 74.06 लाख हे. था जिसका अर्थ 144 प्रतिशत फसल सघनता है। वर्ष 2018-19 में विविध पेड़ों-बागानों वाला क्षेत्र 2.48 लाख हे. था जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का 2.7 प्रतिशत है, जबकि स्थायी चरागाह उसका मात्र 0.2 प्रतिशत था।
- वर्ष 2018-19 में कृषि के लिए अनुपलब्ध भूमि 21.50 लाख हे. थी जो राज्य के कुल क्षेत्रफल का लगभग 23 प्रतिशत हैं वहीं कुल अकृष्य भूमि 2017-18 में 41.18 लाख हे. थी जो 2019-20 में 43.82 लाख हे. हो गई। यह कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 45.8 प्रतिशत है।
- बिहार का कुल भौगेलिक क्षेत्रफल 94 लाख हेक्टेयर है। कुल भूक्षेत्र में वन क्षेत्र 6.6% पर स्थिर है।
- बीरान और अकृष्य भूमि 4.6%, बाग-बगीचे 2.7%, कृष्य बंजर भूमि 0.5% और स्थायी चरागाह 0.2% है जो तीनों वर्षों (2017-18 से 2019-20) के दौरान लगभग स्थिर रहा है।
- शुद्ध बुआई क्षेत्र 2019-20 में 50.77 लाख हेक्टयर था और सकल शस्य क्षेत्र 72.97 लाख हेक्टेयर जिससे फसल सघनता 1.44 थी।
- अकृष्य भूमि का क्षेत्रफल 2017-18 के 41.18 लाख हेक्टेयर से थोड़ा बढ़कर 2019-20 में 42.82 लाख हेक्टेयर हो गया है जो कुल क्षेत्रफल का 45.8% है।
बिहार राज्य बीज निगम लिमिटेड
- बिहार राज्य बीज निगम लिमिटेड प्रबंध निदेशक के शीर्षत्व वाला उद्यम है। यह कृषि उत्पादन आयुक्त के शीर्षत्व वाले निदेशक मंडल द्वारा शासित होता है जिसके अन्य सदस्य केंद्र और राज्य सरकारों तथा झारखंड सरकार के प्रतिनिधि होते हैं।
- निगम का मुख्य काम बीज उत्पादन, बीज प्रसंस्करण, और बीज वितरण के लिए प्रोत्साहित
- करना है जिसके लिए उत्पादन, प्रसंस्करण और विपणन के शीर्ष अधिकारी जवाबदेह होते है।
- निगम पिछले दो साल में बीज की होम डिलवरी करने वाला देश का एक मात्र संस्थान है।
- निगम के छ: केंद्रों में बीज प्रसंस्करण का काम होता है- कुदरा, शेरघाटी, हाजीपुर, बिहटा, भागलपुर और बेगूसराय जिनकी संयुक्त प्रसंस्करण क्षमता 5.30 लाख क्विंटल प्रति वर्ष है।
- अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुरूप बीज उत्पादन, प्रबंधन और बीज की पारदर्शी प्रणाली लागू करने वाला बिहार राज्य बीज निगम देश का पहला सरकारी संस्थान है।
- कृषि रोडमैप के तहत प्रमाणित बीजों के उत्पादन पर जोर दिया गया है। राज्य सरकार द्वारा इसके लिए 23 फसलों की पहचान की गई है। हाजीपुर, भागलपुर और बेगुसराय में नए बीज प्रसंस्करण संयंत्र स्थापित किए गए है।
- भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा बिहार राज्य बीज निगम को तीन क्षेत्रों में ISO प्रमाण पत्र दिया है। ये तीन क्षेत्र है- 1. गुणवत्ता प्रबंध पद्धति, 2. पर्यावरण प्रबंध पद्धति, 3. रिश्वत विरोधी प्रबंध पद्धति।
बिहार कृषि प्रबंधन एवं प्रसार प्रशिक्षण संस्थान (बामेती)
- बामेती राज्यस्तरीय प्रशिक्षण संस्थान है, जो राज्य में कृषि प्रसार सेवाओं में नई प्रौद्योगिकी को शामिल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। बामेती संस्था निबंधन अधिनियम, 1860 के तहत निबंधित स्वायत्त संस्थान है।
- यह माँग के अनुसार नए कार्यक्रमों के लिए विभिन्न प्रौद्योगिकी और प्रबंधन संस्थानों से संपर्क करके राज्य सरकार के विभिन्न विभागों को प्रशिक्षण और प्रशिक्षण सामग्री उपलब्ध कराता है।
- क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संस्थानों के साथ समन्वय स्थापित करके राज्य के कृषि प्रसार प्रबंधन में आधुनिक प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देना।
- बामेती का लक्ष्य कृषि प्रसार प्रबंधन एवं नीति से संबंधित बाधाओं पर शोध करना और प्रत्येक स्तर पर उपयुक्त मार्गदर्शन करना है।
- संस्थान का लक्ष्य मानव और प्राकृतिक संसाधनों की बेहतरी के लिए आधुनिक प्रौद्योगिकी के जरिए कृषि संबंधी समस्याओं का समाधान करना है।
- संस्थान का लक्ष्य विभिन्न हितधारकों के बीच जानकारी देने में सुधार के लिए कृषि प्रसार प्रबंधन के क्षेत्र में क्षेत्र आधारित अनुसंधान करना है।
पशुपालन
पशु उत्पादन लघु और सीमांत किसानों को मिलने वाले खाद्य सुरक्षा और जीविका के अवसरों के संबंधित लाभों के लिहाज से बिहार की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण घटक है। साथ ही, पशुधन उत्पाद प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों के भी महत्वपूर्ण स्रोत हैं जो राज्य में कुपोषण का स्तर घटाने के लिए अत्यंत जरूरी हैं। उच्चस्तरीय पशु उत्पादों और अन्य उत्पादों के निर्यात से विदेशी मुद्रा अर्जित करने में भी मदद मिल सकती है। पशुपालन बड़े पैमाने पर रोजगार भी उपलब्ध कराते हैं।
बिहार में पशुधन
- बिहार के प्रमुख पशुधन में गाय, बैल, भैंस, बकरी, भेड़, घोड़ा, खच्चर और कुक्कुट (मुर्गा-मुर्गी, बतख) सम्मिलित है।
- पशुपालन राज्य के ग्रामीण आय में 1/3 भाग का योगदान करता है।
- बिहार में 30 व्यक्तियों पर एक पशु मिलता है, जबकि देश में प्रति 20 व्यक्तियों पर एक पशु की उपलब्धता का औसत है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति 5 व्यक्तियों के बीच एक गाय बैल पाले जाने का औसत है।
- पशुपालन को प्रोत्साहित करने के लिए बिहार सरकार पशुओं की चिकित्सा, बंध्याकरण, कृत्रिम गर्भाधान, टीकाकरण और चारा बीजों का निःशुल्क वितरण आदि कार्यक्रम चलाती है।
- बिहार सरकार ने पटना, मुंगेर, भागलपुर, सहरसा, पूर्णिया, मुजफ्फरपुर, दरभंगा, छपरा और बांका में कृत्रिम गर्भाधान हेतु तरल नाइट्रोजन के भण्डारण के लिए भण्डार स्थापित किए हैं।
- 2019 के पशुगणना के अनुसार बिहार में पशुओं की कुल संख्या 2007 के 301.7 लाख से
- 21% बढ़कर 2019 में 365.4 लाख हो गई।
- राज्य में गायों की देशी नस्लों के संरक्षण के लिए बक्सर जिले के डुमरांव में गोकुल ग्राम की स्थापना की गई है।
- डॉ. राजेंद्र कृषि विज्ञान केंद्र परिसर में स्थित ‘पशु प्रजनन उत्कृष्टता केंद्र’ का शिलान्यास किया गया। इस केंद्र की स्थापना ब्राजील सरकार के सहयोग से की गई है।
- समेकित पॉल्ट्री विकास योजना के तहत राज्य में युवा वर्ग को लाभप्रद रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने और मुर्गा के मांस का उत्पादन बढ़ाने के लिए ब्रायलर (Broiler) मुर्गी फार्म के अधिक संरचना निर्माण पर अनुदान दिए जा रहे हैं।
- 20वीं पशुगणना-2019 के अनुसार, राज्य में पशुधन की कुल संख्या 3.65 करोड़ है, जिसमें
- 18% दुधारू पशु हैं।
- राज्य के पशुधन में गो-वंशों की संख्या 1.53 करोड़, भैंसों की संख्या 77 लाख, बकरें बकरियाँ
- की संख्या 1.28 करोड़ तथा मुर्गियों व बत्तखों की संख्या 165.25 लाख है।
- राज्य में गोपालगंज, मुजफ्फरपुर, सीतामढी, मधुबनी और पूर्णिया आदि जिलों में पशुधन का घनत्व अधिक है।
- बिहार सरकार ने पशुपालन को उन्नत बनाने के लिए पशुधन विकास एजेंसी का गठन किया है। > राज्य में किसानों के घर पर ही कृत्रिम गर्भाधान की सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए स्वीकृत कुल 800 पशुधन विकास केन्द्रों में से 780 कार्यशील हैं।
- राज्य के पूर्णिया जिला में प्रतिवर्ष 50 लाख फ्रोजन सीमन स्ट्रा की उत्पादन क्षमता वाले सबसे बड़े फ्रोजन सीमन केन्द्र का निर्माण किया गया है।
- राज्य में पशुधन में गाय-भैसों के बाद सर्वाधिक 35% हिस्सा बकरे-बकरियों का है।
- पशुओं की मृत्यु में कमी लाने, चिकित्सा सेवा में सुधार और संक्रामक रोगों से बचाव के टीके लगाने की व्यवस्था पर निवेश कर रही है। प्रौद्योगिकी को महिलाओं और सीमांत किसानों की पहुँच में लाने के लिए ‘पशु सखी’ के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा दी जा रही है।
मत्स्य पालन
- बिहार में 3,200 किमी. लम्बाई में नदियों का और 237.3 हजार हेक्टेयर में जल क्षेत्र का विस्तार है जो राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 76% है।
- बिहार सरकार वर्ष 1975 से मछलियों के अण्डों का उत्पादन तथा मत्स्य पालन की फार्मिंग पद्धति को अपनाकर मत्स्य पालन को प्रोत्साहित करने की कोशिश कर रही है।
- बिहार में मत्स्य पालन की दृष्टि से मन-चौर, जल जमाव, सदानीरा नदियां और नहरें महत्वपूर्ण हैं। रेलवे और सड़कों के किनारे गड्ढे भी अस्थायी जलाशय का काम करते हैं।
- मछली पालन के स्रोत क्षेत्र के रूप में बिहार की गोखुर झीलों का महत्वपूर्ण स्थान है। प्रायः मीठे पानी के स्थायी और समृद्ध स्रोत बने इन झीलों की विशालता और गहराई मछली पालन, पोषण और उत्पादन के लिए वरदान रही हैं।
- बिहार का ताजा पानी की मछलियों के उत्पादन में चौथा स्थान है। राज्य के सकल मूल्यवर्धन में मत्स्य पालन क्षेत्र का 1.6% योगदान है।
- बिहार में पाई जाने वाली मछलियों में रोहू, झींगा, टेंगरा, गरई, बोआरी, मांगुर, मोय, नैनी, सिन्धी आदि प्रमुख हैं। ये मछलियां प्राकृतिक जलाशयों में पाई जाती हैं। मत्स्य पालन में सामान्यतः रोहू खासतौर से पाली जाती है।
- मछली उत्पादन के लिहाज से अग्रणी जिले मधुबनी (0.77 लाख टन), दरभंगा (0.64 लाख टन) और पूर्वी चंपारण (0.63 लाख टन) हैं जिनका 2020-21 में राज्य के कुल मछली उत्पाद में संयुक्त रूप से 29.9% योगदान था।
- राज्य में मछली का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है और 2016-17 के 5.09 लाख टन से 2020-21 में 6.83 लाख टन हो गया है जो गत पांच वर्षों में 7.0% की वृद्धि दर दर्शाता है।
दुग्ध उत्पादन
- यह केंद्र कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय, पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन विभाग की परियोजना- राष्ट्रीय गोकुल मिशन के अंतर्गत स्थापित किया गया।
- वर्ष 2016-17 से 2020-21 के बीच बिहार में दूध का उत्पादन 7.1% की वार्षिक वृद्धि दर दर्ज करते हुए 2016-17 के 87.10 लाख टन से बढ़कर 2020-21 में 115.01 लाख टन हो गया।
- राज्य में दूध उत्पादन की मुख्य स्रोत गाय है जिनका कुल दूध उत्पादन में 62.6% हिस्सा है। इसके बाद दूध उत्पादन में 35.2% हिस्सा भैसों का और 2.2% बकरियों का है।
- गायों से दूध उत्पादन में समस्तीपुर, बेगूसराय और पटना जिलों का संयुक्त रूप से 18.2% योगदान है।
- भैंस के दूध के प्रमुख स्रोत मधुबनी, सीतामढ़ी और पूर्व चंपारण जिले हैं जिनका 2020-21 में दूध उत्पादन में संयुक्त रूप से 16.1% हिस्सा था।
बिहार की प्रमुख दुग्ध उत्पादक संघ एवं संबंधित जिले
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दुग्ध उत्पादक संघ
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संबधित जिलें
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वैशाली पाटलिपुत्र दुग्ध संघ, पटना
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पटना, वैशाली, नालंदा, सारण, शेखपुरा
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देशरत्न डॉ राजेंद्र प्रसाद दुग्ध संघ, बरौनी
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बेगूसराय, खगड़िया, लखीसराय, पटना
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मिथिला दुग्ध संघ, समस्तीपुर
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समस्तीपुर, दरभंगा, मधुबनी
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तिरहुत दुग्ध संघ, मुजफ्फरपुर
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मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, गोपालगंज, शिवहर सिवान, चम्पारण
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शाहाबाद दुग्ध संघ, आरा
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भोजपुर, बक्सर, रोहतास, कैमूर
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विक्रमशिला दुग्ध संघ, भागलपुर
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भागलपुर, मुंगेर, बांका, जमुई
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मगध दुग्ध परियोजना, गया
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गया, जहानाबाद, औरंगाबाद, अरवल
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कोशी दुग्ध परियोजना, पूर्णिया
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सुपौल, सहरसा, मधेपुरा
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