बिहार में अफगान शासन
नूहानियों के सत्ता पतन के साथ ही बिहार में अफगानों के नए नेता के रूप में शेरशाह का उदय हुआ।
शेरशाह सूरी (1540 -1545 ई.)
- शेरशाह का जन्म 1472 ई. में बैजवाड़ा (होशियारपुर) नामक स्थान में एक अफगानी महिला के गर्भ से हुआ था। शेरशाह के पूर्वज आरंभ में अफगानिस्तान के राहरी ग्राम में रहते थे।
- फरीद खाँ उर्फ शेरशाह बिहार में सासाराम के जागीरदार हसन खाँ सूर का पुत्र था। सल्तनत कालीन शासक बहलोल लोदी के काल में शेर खाँ के पितामह इब्राहिम खाँ भारत आया था।
- जौनपुर में अपनी शिक्षा-दीक्षा समाप्त करने के बाद फरीद सासाराम में अपने पिता की जागीर का प्रबन्ध करने में लगा रहा।
- शेरशाह के बचपन का नाम फरीद खाँ था। फरीद खाँ ने बचपन में एक शेर को तलवार के एक ही वार से मार डाला था, जिससे बिहार में अफगान शासक सुलतान मोहम्मद बहार खाँ नुहानी ने प्रसन्न होकर इसे शेर खाँ की उपाधि प्रदान की थी।
- शेर खाँ चन्देरी के युद्ध में मुगलों की ओर से लड़ा था। उसी समय उसने कहा था कि “यदि भाग्य ने मेरी सहायता की तो मैं सरलता से मुगलों को एक दिन भारत से बाहर खदेड़ दूंगा।”
- 1529 ई. में बंगाल के शासक नुसरत शाह को पराजित करने के उपरान्त शेर खाँ ने हजरते- आला की उपाधि ग्रहण की।
- 1530 में शेर खां ने चुनार के पूर्व सूबेदार ताज खां की विधवा लाड मलिका से शादी किया। इससे उसकी आर्थिक तथा सैनिक शक्ति काफी बढ़ गई।
- दौहरिया के युद्ध (1532 ई.) में शेर खाँ ने महमूद लोदी का साथ दिया था।
- 1534 ई. में सूरजगढ़ की लड़ाई में शेरशाह ने बंगाल की सेना को पराजित कर पूर्वी भारत में अपनी स्थिति सुदृढ़ की।
- 1537-38 ई. में शेर खाँ ने बंगाल पर अधिकार कर लिया और 1539 ई. में चौसा के युद्ध में हुमायूं को पराजित करने के बाद शेरशाह की उपाधि धारण की तथा अपने नाम का खुतबा पढवाया तथा सिक्का चलाया।
- मालवा से लौटने के क्रम में उसने रणथम्भौर पर भी अधिकार कर लिया।
- 1543 ई. में शेरशाह ने रायसीन पर आक्रमण कर वहाँ के राजपूत शासक पूरनमल को विश्वासघात करके मार डाला। इस आक्रमण के दौरान स्त्रियों ने जौहर किया।
- 1544 ई में शेरशाह ने मारवाड़ के शासक मालदेव पर आक्रमण किया।
- इस युद्ध में राजपूत सरदार ‘जयता’ और ‘कुप्पा’ ने अत्यन्त वीरता का प्रदर्शन किया।
- शेरशाह ने मारवाड़ युद्ध के दौरान ही कहा था कि “मैं मुट्ठी भर बाजरे के लिए लगभग हिन्दुस्तान का साम्राज्य खो चुका था।”
- 1545 ई में शेरशाह ने कालिंजर पर अपना अन्तिम आक्रमण किया जिसका शासक कोरत सिंह था।
- कालिंजर अभियान के दौरान जब शेरशाह उक्का नामक आग्नेयास्त्र चला रहा था उसी दौरान किले की दीवार से एक गोला लगकर पास रखे बारुद पर गिरा जिसमें आग लगने के कारण इसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय उसकी आयु 73 वर्ष की थी।
- शेरशाह द्वारा नियुक्त बिहार का अंतिम सूबेदार सुलेमान खां था।
- अब्दुल्लाह द्वारा रचित तारीखे दाउदी के अनुसार शेरशाह ने अपने शासनकाल में पटना में एक दुर्ग का निर्माण कराया तथा इस नगर को 1541 में पुनः बिहार की राजधानी बनाया।
- उत्तर-पश्चिमी प्रांत में मुगलों की सक्रियता को रोकने के उद्देश्य से शेरशाह ने सिंध में रोहतासगढ़ नामक किले का निर्माण करवाया।
- सासाराम से 20 मील दक्षिण-पश्चिम में किलेनुमा महल ‘शेरगढ़‘ का प्रमाण मिलता है, जो शेरशाह के शासनकाल में निर्मित हुआ।
- शेरशाह ने अपने सैन्य प्रशासन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से अनेक किलों का निर्माण अथवा पुनरोद्धार करवाया। इनमें चित्तौड़, ग्वालियर, चुनार एवं बिहार में रोहतास का किला सबसे प्रमुख हैं।
- बिहार की राजनीति में विशेष सामरिक महत्व रखने वाले रोहतास किले को जीतकर शेरशाह ने उसका पुनर्निर्माण कराया।
- शेरशाह के काल में इमारतों पर लिखने के क्रम में फारसी एवं संस्कृत का प्रयोग किया जाता था।
- पटना शहर में शेरशाह के द्वारा बनवाई गई एक शेरशाही मस्जिद का प्रमाण मिलता है।
शेरशाह द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध
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युद्ध
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वर्ष
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युद्ध का परिणाम
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सूरजगढ़ का युद्ध
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1534
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शेरशाह ने बंगाल की सेना को पराजित किया।
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चौसा का युद्ध
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1539
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चौसा (बक्सर के समीप) की निर्णायक लड़ाई (शेरशाह और हुमायूँ के बीच)। इसी विजय के बाद शेर खाँ ने ‘शेरशाह’ की उपाधि धारण की।
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कन्नौज (विलग्राम युद्ध)
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1540
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हुमायूं की निर्णायक पराजय हुई। इस हार के पश्चात् हुमायूँ ने भागकर ईरान में शरण ली।
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कालिन्जर युद्ध
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1545
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कालिंजर अभियान में शेरशाह की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र इस्लाम शाह 27 मई, 1545 ई. में गद्दी पर बैठा।
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शेरशाह का मकबरा
- सासाराम (रोहतास) स्थित ‘शेरशाह का मकबरा’ (‘इंडो-इस्लामिक’ स्थापत्य कला के सुंदरतम नमूने) का निर्माण स्वयं शेरशाह सूरी ने अपने जीवन काल में शुरू कराया था, लेकिन कालिंजर की लड़ाई में मौत के बाद इसे उसका पुत्र इस्लाम शाह ने पूरा कराया। मकबरे के बीच में शेरशाह का कब्र है और अगल-बगल में अन्य 24 कब्र हैं।
- शेरशाह सूरी के मकबरे की रूपरेखा उस समय के प्रसिद्ध वास्तुकार मीर मुहम्मद अलीवाल खां द्वारा बनाई गई जिसका निर्माण 1540 से 1545 के बीच किया गया। यह कैमूर के करीब लाल बलुआ पत्थर से निर्मित मकबरा (122 फीट 37 मीटर ऊंचा) है, जो 52 एकड़ में विस्तृत एक कृत्रिम झील में खड़ा है। यह मकबरा अष्टकोणीय आकृति में निर्मित है।
- भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के जनक माने जाने वाले एलेक्जेंडर कनिंघम ने शेरशाह के मकबर को ताजमहल के समान दूसरा खूबसूरत मकबरा बताया था।
नोट : प्राचीन काल में उत्तरापथ के नाम से चर्चित सड़क मार्ग का 16वीं शताब्दी में शेरशाह सूरी ने पुनर्निर्माण कराया, जो सड़क-ए-आजम और बादशाही सड़क के नाम से प्रसिद्ध हुआ। बाद में ब्रिटिश शासन द्वारा 17वीं शताब्दी में इस सड़क का नाम बदलकर ग्रैंड-ट्रंक रोड कर दिया गया। इस प्राचीन मार्ग के पुरातात्विक अवशेष बिहार में बारुन व डेहरी स्थित सोन नदी में लगभग 4 किलोमीटर लम्बे चूना-सूरखी व पत्थर के टुकड़े से निर्मित एक मजबूत सेतु मार्ग के रूप में मिला है, इसकी खोज वर्ष 2016-17 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के शंकर शर्मा ने की है। इस खोज को भारतीय पुरातात्विक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण साक्ष्य माना गया है। पहले यह सड़क-ए-आजम (राजमार्ग) आज के काबुल से ढाका तक जाती थी।
- भूमि को सही ढंग से माप कर लगान का निर्धारण करना शेरशाह का सबसे बड़ा कार्य माना जाता है। इस भू-राजस्व प्रणाली को जब्ती प्रणाली कहा जाता है। बाद में इसी प्रणाली में कुछ परिवर्तन कर अकबर द्वारा अपनाया गया।
- शेरशाह ने टोडरमल की जब्ती प्रणाली को अपने शासन में भू-राजस्व वसूली हेतु अपनाया था। अतः शेरशाह को ही जब्ती प्रणाली का जन्मदाता माना जा सकता है।
- पट्टा और कबूलियत प्रथा की शुरूआत उसी ने की थी।
- शेरशाह ने 178 ग्रेन के चांदी का रुपया और 380 ग्रेन का ताँबे का दाम नामक सिक्का चलाया।
- शेरशाह ने हुमायूँ द्वारा निर्मित दीन पनाह को तोड़कर दिल्ली में पुराने किले का निर्माण करवाया। इसी किले के अन्दर किला-ए-कुहना नामक मस्जिद का निर्माण भी शेरशाह द्वारा करवाया गया था।
- प्रसिद्ध इतिहासकार कीन के शब्दों में “किसी भी सरकार ने यहां तक कि ब्रिटिश सरकार ने भी, इतनी बुद्धिमता का परिचय नहीं दिया जितना इस पठान ने।”
- शेरशाह की मृत्यु के बाद उसका बेटा इस्लामशाह दिल्ली की गद्दी पर बैठा। 1555 ई. में इस्लामशाह की मृत्यु के बाद अफगानों को बुरी तरह परास्त कर हुमायूँ पुनः दिल्ली का शासक बना।
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