बिहार में क्रांतिकारी राष्ट्रवाद
क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के प्रथम चरण
- बिहार में क्रांतिकारी विचारधारा के आरम्भिक नेताओं में डॉ. ज्ञानेन्द्र नाथ, केदारनाथ बनर्जी और बाबाजी ठाकुरदास थे।
- 1906 ई. में बाबाजी ठाकुरदास ने पटना में रामकृष्ण सोसाइटी की स्थापना की और मदरलैंड नामक क्रांतिकारी विचारों वाला समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
- स्वदेशी आंदोलन के भी पूर्व इंद्रनाथ नंदी एवं कुछ अन्य क्रांतिकारी बिहार आए तथा मैजिक लालटेन की सहायता से विभिन्न बस्तियों में क्रांतिवाद का प्रचार किया।
- 30 अप्रैल, 1908 को मुजफ्फरपुर के बदनाम जज किंग्सफोर्ड को मारने का प्रयास खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चन्द्र चाकी द्वारा किया गया लेकिन गलती से इस बम कांड में वकील प्रिंगल केनेडी की पत्नी और बेटी मारी गई।
- किंग्सफोर्ड इससे पहले कोलकाता का चीफ प्रेसीडेंसी मजिस्ट्रेट था और तरूण बंगाली राजनीतिक कार्यकर्ताओं को कड़ी सजाएं देने के लिए कुख्यात था। इसके प्रतिक्रियास्वरूप क्रातिकारियों ने उसकी हत्या करने की योजना बनाई थी, जिसमें चूक हो गई।
- मुजफ्फरपुर बम कांड करने के बाद खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चन्द्र चाकी रातों-रात वहां से भाग गए। लेकिन अगले दिन पूसा रोड स्टेशन के नजदीक खुदीराम बोस गिरफ्तार कर लिए गए।
- प्रफुल्ल चाकी ने 2 मई, 1908 को पुलिस से मुठभेड़ होने के कारण स्वयं को गोली मार ली।
- खुदीराम बोस पर भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के अंतर्गत विशेष न्यायाधीश कर्नडक के समक्ष 9 जून, 1908 से 13 जून, 1908 तक मुकदमें की सुनवाई हुई। मुजफ्फरपुर के कालीदास बसु उनके ओर से वकील थे। अदालत द्वारा दी गई सजा के अनुसार 18 वर्षीय खुदीराम बोस को ।। अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई।
- मुजफ्फरपुर से भेजे गए तो सिपाहियों शिव प्रसाद मिश्रा और फतह सिंह ने खुदीराम बोस को पुसा रोड स्टेशन (वैनी या प्राचीन वोइनपुरी) पर गिरफ्तार कर लिया, जहां वह जीतू साहू हलवाई की दुकान से मूढ़ी खरीदकर कुएं के समीप बैठकर खा रहे थे।
- प्रफुल्ल चाकी की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार बंगाली दरोगा नंदलाल बनर्जी की 9 नवम्बर, 1908 को सरपैंटाइन लेन, कोलकाता में गोली मारकर हत्या कर दी गई।
- उल्लेखनीय है कि नवम्बर, 1907 में शाति नारायण ने इलाहाबाद से ‘स्वराज’ नामक एक समाचारपत्र निकाला। ‘स्वराज’ में मुजफ्फरपुर बमकांड पर निबंध प्रकाशित करने के कारण शांति नारायण को लम्बी कैद की सजा दी गई।
- खुदीराम बोस युगांतर नामक एक गुप्त क्रांतिकारी संगठन से जुड़े हुए थे।
- बिहार में कांग्रेस का पहला अधिवेशन 1912 ई. में बांकीपुर (पटना) में हुआ जिसकी अध्यक्षता आर.एन. माधोलकर ने किया था।
- 1913 ई. में शचीन्द्रनाथ सान्याल ने पटना में अनुशीलन समिति की एक शाखा स्थापित की। उस समय पटना का बी.एन. कॉलेज क्रांतिकारी विचारधारा का केन्द्र बन गया था।
- पूर्णिया जिला स्कूल से आए श्री अतुल चन्द्र मजूमदार को भारतीय रक्षा कानून के अन्तर्गत गिरफ्तार किया गया था।
- सुधीर कुमार, प्रफुल्ल कुमार विश्वास, श्यामनारायण झा, शिवकुमार सिन्हा तथा बी. एन. कॉलेज के प्राध्यापक श्री नृपेन्द्रनाथ बसु को भी सरकार ‘संदिग्ध व्यक्ति’ समझती थी।
- ढाका अनुशीलन समिति के कुछ सदस्य भागलपुर में सक्रिय थे। इनमें रेवती नाग सर्वप्रमुख थे।
- ढाका अनुशीलन समिति के सदस्य यदुनाथ सरकार ने बक्सर में युवा क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के उपाय किए।
- अमेरिका में उस समय सक्रिय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा से प्रभावित स्वामी सत्यदेव ने भी बिहार में क्रांतिकारी विचारधारा के प्रसार का प्रयास किया।
- स्वामी सत्यदेव एक प्रगतिशील विचारों वाला कट्टर आर्यसमाजी थे।
- भागलपुर में अनाथ बन्धु चौधरी नामक एक बंगाली नौजवान को भारत रक्षा कानून की धारा 12 (क) के अन्तर्गत दिसम्बर, 1918 को गिरफ्तार कर लिया गया।
- रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने उसकी गिरफ्तारी पर विरोध प्रकट किया था।
- बकिमचंद्र मित्र ने सितम्बर, 1915 में ‘लिबर्टी लीफलेट्स’ बांटा, जिसमें उन्हें बिहार नेशनल कॉलेज के अखिलचंद्र दास गुप्त और टी. के. घोष ऐकेडेमी के रघुबीर सिंह ने सहयोग दिया। बंकिमचंद्र को गिरफ्तार कर लिया गया तथा बाद में बनारस षडयंत्र केस के तहत 3 वर्ष की कड़ी कैद की सजा दी गई।
- बिहार में ‘इस्टैब्लिसमेंट’ शीर्षक का एक प्रलेख मिला, जिसमें किसी नए स्थान पर संस्था स्थापित करने के लिए चुने गए व्यक्ति के लिए निर्देश था।
- एक अन्य पुस्तिका ‘मैसेज ऑफ सालवेशन’ शीर्षक भी मिली जिसे कोलकाता से आरा के एक मुख्तार शमसुल जोहा के नाम भेजा गया था। आरा सत्याग्रह प्रतिज्ञापत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में एक शमसुल जोहा था। इस प्रतिज्ञापत्र में भारतीय मुसलमानों को क्रांति के द्वारा स्वाधीनता प्राप्त करने के प्रयत्न में संघर्ष करने का ऐलान किया गया था।
क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के द्वितीय चरण
- ब्रिटिश सरकार के दमन चक्र द्वारा असहयोग आन्दोलन को समाप्त कर देने से युवा वर्ग में असंतोष भर गया जिसके फलस्वरूप क्रांतिकारी राष्ट्रवाद पुनः जोर पकड़ने लगा।
- बिहार में 1924 के बाद के वर्षों में क्रान्तिकारी गतिविधियों ने जोर पकड़ा।
- कुछ वर्ष पूर्व की क्रांतिकारी लहर की तरह इस समय भी भागलपुर इसका महत्वपूर्ण केन्द्र बन गया था।
- 19 जनवरी, 1927 को श्री शचीन बक्सी को बिहार की यात्रा करते हुए भागलपुर में क्रांतिकारी आन्दोलन का नेता होने के अभियोग में गिरफ्तार कर लिया गया था।
- 9 नवम्बर, 1928 को दरभंगा (समस्तीपुर) जिलान्तर्गत दलसिंहसराय में एक डकैती हुई। सरकार की दृष्टि में यह राजनैतिक डकैती थी।
- 7 जून, 1929 को चम्पारण जिला के मौलानिया नामक स्थान में डकैतियाँ हुई।
- बिहार में क्रांतिकारी आन्दोलन के एक सर्वप्रमुख नेता, योगेन्द्र शुक्ल को पुलिस मौलानिया डकैती का मुख्य फरार आरोपी समझती थी।
- योगेन्द्र शुक्ल सारण पुलिस द्वारा 11 जून, 1930 को गिरफ्तार कर लिए गए। इन पर तिरहुत षड्यंत्र केस के नाम से मुकदमा चलाया गया।
- एसेम्बली बम कांड (1929) के बाद पटना में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त के चित्र एवं इश्तहार की प्रतियां बिकी। इसके लेखक प्रोफेसर ज्ञान साहा थे।
- ब्रिटिश सरकार ज्ञान साहा को ‘अतिवादी विचारधारा का क्रांतिकारी’ मानती थी।
- प्रोफेसर साहा पटना क्रांतिकारी पार्टी के नेता मणीन्द्र नारायण राय और हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) की पंजाब शाखा के नेता श्री जयचंद विद्यालंकर के साथ घनिष्ठ रूप से सम्बद्ध थे।
- बिहार नौजवान सम्मेलन मुंगेर में 12 दिसम्बर, 1929 को हुआ।
- सुभाषचन्द्र बोस की अनुपस्थिति में पंडित प्रजापति मिश्र ने इसकी अध्यक्षता की।
- बिहार में 1930 से अनेक क्रांतिकारी युवा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी (HSRA) के सदस्य के रूप में काम कर रहे थे।
- HSRA का महत्वपूर्ण केन्द्र छपरा और पटना में था।
- छपरा केन्द्र के नेता रामदेनी सिंह ने हाजीपुर स्टेशन पर डाक का थैला लुटने का प्रयास किया। इसमें रामदेनी सिंह को फांसी की सजा दी गई।
- 1906 ई. में डॉ. राजेन्द्र प्रसाद द्वारा पटना में बिहार छात्र सम्मेलन का आयोजन किया गया।
- 1 अप्रैल, 1936 को बिहार से उड़ीसा को अलग कर दिया गया।
- वारीन्द्र कुमार घोष ने स्वदेशी आन्दोलन के प्रचार के लिए देवघर में गोल्डेन लीग की स्थापना की।
- बंगाल विभाजन के विरोध में चलाये गये स्वदेशी आन्दोलन के दौरान जमशेदपुर में टाटा आयरन एण्ड स्टील कम्पनी ने सरकारी और विदेशी सहायता लेने से इन्कार कर दिया।
- 28 जून, 1931 को पटना बम कांड हजारीलाल और प्रकाश उर्फ सूर्यनाथ चौबे द्वारा किया गया था।
- 9 नवंबर, 1932 को लाहौर षड्यंत्र के सरकारी गवाह फणीन्द्रनाथ घोष को बेतिया में छूरा मारकर हत्या कर दी गई। इस हत्या के लिए बैकुण्ठ शुक्ल को 14 अप्रैल, 1933 को फांसी दे दी गई।
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