बिहार भ्रमण पर आने वाले विदेशी यात्रियों का विवरण
मेगास्थनीज (350-290 ई.पू.)
- यह बिहार आने वाला प्रथम विदेशो (यूनानी) यात्री था जो यूनानी राजा सेल्यूकस का राजदूत बनकर चन्द्रगुप्त मौर्य के दरबार में करीब 14 वर्ष तक रहा जो दोनों के बीच मैत्री एवं संधि कराने में अहम भूमिका निभाया।
- मेगास्थनीज ने अपनी पुस्तक ‘इण्डिका’ में पाटलिपुत्र नगर और उसके प्रशासन की विस्तृत चर्चा की है। उसके अनुसार भारत में अकाल नहीं पड़ता था और उस समय दास प्रथा प्रचलित नहीं थी।
- अपनी पुस्तक इण्डिका में उसने पाटलिपुत्र को पोलिब्रोथा/पालिब्रोथा कहा है।
- इसके अनुसार पाटलिपुत्र नगर भारत का सबसे बड़ा एवं भव्य नगर था, जो 80 स्टेडिया (95 मील) लंबा और 15 स्टेडिया (1.65 मील) चौड़ा था। यह सूसा और एकबताना के नगरों से भी सुंदर था।
- पाटलिपुत्र नगर गंगा और सोन नदियों के संगम पर स्थित था। इसके अनुसार इसकी सुरक्षा के लिए एक गहरी खाई (जिसकी चौड़ाई 600 फीट और गहराई 45 फीट थी) और एक सुरक्षात्मक दीवार थी जिसमें 64 दरवाजे और 570 मीनार थे।
- नगर प्रशासन एक 30 सदस्यीय बोर्ड द्वारा संचालित होता था। बोर्ड के सदस्यों को अष्टनोमई कहा जाता था।
डायमेकस (सीरिया)
- यह सीरियन नरेश एण्टियोकस का राजदूत बनकर बिन्दुसार के दरबार में आया था। इसे मेगास्थनीज का उत्तराधिकारी भी माना जाता है।
- डायमेकस द्वारा लिखा गया कोई वृतान्त उपलब्ध नहीं है, यद्यपि परवर्ती क्लासिक लेखक स्ट्रेबो (64 ई.पू.-10 ई.पू.) ने इस बात का उल्लेख किया है कि डाइमेकस ने पाटलिपुत्र और भारत के बारे में एक वृतान्त लिखा था। तत्समय पाटलिपुत्र में उसके निवास से पता चलता है कि हिन्द-यूनानी शासकों से मैत्रीपूर्ण संबंध इस काल में भी रहे थे।
फाह्यान
- यह एक चीनी यात्री था जो गुप्त सम्राट चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के काल में 399 ई. में बौद्ध ग्रंथों की खोज के सिलसिले में भारत आया और 411 ई. तक यहां रहा।
- फाह्यान का जन्म चीन के वुयांग नामक स्थान पर हुआ था।
- भारत में अनेक नगरों की यात्रा के क्रम में वह राजगीर, नालंदा, गया के बाद वैशाली और पाटलिपुत्र भी आया।
- वह भारत में लगभग 12 वर्षों तक रहा।
- फाह्यान के अनुसार मगध एक समृद्ध राज्य था। यहाँ उसने ब्राह्मणों की रथ-यात्रा देखी, जिसमें देव प्रतिमाओं को सुसज्जित रथों में रखकर निकाला जाता था।
- हर साल के दूसरे महीने की आठवीं तारीख को बुद्ध और बोधिसत्वों की शोभा यात्रा बीस रथों में सजाकर निकाली जाती थी।
- फाह्यान नालंदा और राजगीर भी गया जहाँ उसने गृधकूट पर्वत (बुद्ध का प्रिय वास) दर्शन किया था।
ह्वेनसांग
- ह्वेनसांग एक चीनी यात्री था जो हर्षवर्धन के समय 629 ई. में भारत आया। वह लगभग 15 वर्षों तक भारत में रहा।
- ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत सी-यू-की नामक पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया।
- ह्वेनसांग को यात्रियों का राजकुमार, नीति का पण्डित और वर्तमान शाक्यमुनि भी कहा जाता है।
- ह्वेनसांग भारत में नालंदा विश्वविद्यालय में पढ़ने और बौद्ध ग्रंथ संग्रह करने के उद्देश्य से आया था।
- ह्वेनसांग नालंदा विश्वविद्यालय में 6 वर्षों तक अध्ययन किया।
- ह्वेनसांग के अनुसार नालंदा भारत में उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र था जहां विदेशों से भी विद्यार्थी आते थे। उस समय यहाँ 8,500 छात्र और 1,500 से अधिक आचार्य थे। यहां धर्म, व्याकरण, तर्कशास्त्र, विज्ञान और चिकित्सा की शिक्षा दी जाती थी।
- उसके अनुसार शहर में महायान और हीनयान संप्रदाय के दो भव्य बौद्ध विहार थे, जिनमें
- 600 से 700 भिक्षु रहते थे।
- ह्वेनसंग के अनुसर उस समय पाटलिपुत्र अपनी भव्यता खो चुका था और कन्नौज अपने उत्कर्ष पर था।
इत्सिंग
- इत्सिंग 7वीं शताब्दी में ही भारत आने वाला दूसरा चीनी यात्री था, जो 673 ई. में भारत आया और 692 ई. तक यहां रहा।
- इत्सिंग ने नालंदा महाविहार में शिक्षा ग्रहण की थी। उसके अनुसार नालंदा में उस समय 5,000 भिक्षु रहते थे। उसने विक्रमशिला महाविहार के संबंध में भी चर्चा की है।
धर्मस्वामिन (तिब्बत)
- बौद्ध भिक्षु धर्मास्वामिन एक तिब्बती यात्री था। यह 13वीं शताब्दी में पाल शासकों के अवसान के समय में भारत आया था।
- वह नालंदा महाविहार में बौद्ध शिक्षा ग्रहण करने के लिए आया था।
- धर्मास्वामिन के द्वारा किए गए यात्रा वर्णन से यह जानकारी मिलती है कि 1197-98 ई. के बीच नालन्दा महाविहार का विनाश एक तुर्क शासक बख्तियार खिलजी ने किया था।
मुल्ला तकिया
- अकबर के शासनकाल में मुल्ला तकी नामक यात्री ने जौनपुर से बंगाल तक की यात्रा की और उस क्षेत्र का वर्णन अपने वृतांत में किया है।
- इसके विवरण में खासकर दरभंगा क्षेत्र के सम्बन्ध में विस्तृत चर्चा मिलती है।
अब्दुल लतीफ (ईरान)
- मध्यकाल (अकबर के शासनकाल) में बिहार आने वाले यात्रियों में अब्दुल लतीफ भी था।
- उसने गंगा नदी मार्ग से आगरा से राजमहल तक की यात्रा की।
मुहम्मद साविक (ईरान)
- यह जहांगीर के शासनकाल में आया था।
- 1619-20 ई. में जब उसके पिता पटना में दीवान खालीसा के पद पर नियुक्त हुए तो वह भी उनके साथ पटना आया एवं चार वर्ष रहा।
- इसके वृतान्त का नाम सुबह-ए-सादिक है।
मुल्ला बहबहानी
- यह एक ईरानी धर्माचार्य थे, जिसने बिहार की कई बार यात्रा की और बाद में पटना में ही बस गए।
रॉल्फ फिंच
- यह एक अंग्रेजी यात्री था।
- इसने 1585-87 ई. के मध्य मुगल काल (अकबर के शासनकाल) में भारत का भ्रमण किया। इसी समय वह बिहार आया था।
- रॉल्फ फिंच के अनुसार पटना के लोग जमीन खोदकर सोने की खोज करते हैं तथा यहाँ के निवासियों में अन्धकारपूर्ण आचरण विद्यमान था।
पीटर मुंडी
- पीटर मुंडी एक अंग्रेजी यात्री और व्यापारी था जो 1632 ई. (शाहजहाँ के काल) में पटना आया था।
मैनरीक
- मैनरीक हॉलैंड का यात्री था और वह 17वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध 1612 ई. (शाहजहाँ के काल) में भारत आया था।
- इसने विशेष प्रकार की कश्तियों (मयूरपंखी) का वर्णन किया है।
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जॉन ट्रैवर्नियर
यह एक फ्रांसीसी यात्री था जो लगभग 1665-66 ई (औरंगजेब के काल) में पटना आया था।
इसने पटना में हॉलैण्ड निवासियों द्वारा शोरे के व्यापार की चर्चा की।
मनूची
- यह एक इटालियन यात्री था जो 17वीं शताब्दी के मध्य (शाहजहाँ के काल) में पटना आया था।
- इसके अनुसार उस समय पटना की जनसंख्या लगभग 2 लाख थी।
विशप ह्वीवर
- यह एक अंग्रेज पादरी था जो 1824 ई. में गंगा नदी-मार्ग से पूर्वी भारत की यात्रा करता हुआ बिहार के अनके नगरों से गुजरा था।
जॉन मार्शल (ब्रितानी)
- यह अंग्रेज यात्री औरंगजेब के शासनकाल में भारत आया था। यह एक चिकित्सक था।
- इसने पटना नगर की बनावट, रहन-सहन इत्यादि की चर्चा की है।
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