बिहार का नामकरण और राज्य गठन का सफरनामा
- इस क्षेत्र में अनेक बौद्ध विहारों को देखकर संभवतः 12वीं-13वीं सदी में तुर्क/मुसलमान शासकों ने इस प्रदेश का नाम विहार प्रदेश रख दिया जो आगे चलकर बिहार कहलाया।
- बिहार’ शब्द सर्वप्रथम मिन्हास-उस-सिराज द्वारा तेरहवीं शताब्दी (सन् 1203 ई. के लगभग) में रचित तबकात-ए-नासिरी में प्रयुक्त हुआ है।
- विद्यापति रचित ‘कीर्तिलता ‘ (1390 ई.) में भी बिहार शब्द का उल्लेख मिलता है।
- औरंगजेब की मृत्यु के बाद अठारहवीं शताब्दी में यह क्षेत्र बंगाल के नवाब के अधीन आ गया। 1733 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दीन ने बिहार को बंगाल सूबे का हिस्सा बना लिया।
- 1773 ई. के रेग्यूलेटिंग एक्ट द्वारा बिहार के लिए प्रांतीय सभा का गठन किया गया।
- 1865 ई. में पटना और गया जिले को अलग-अलग संगठित किया गया।
- डॉ. सच्चिदानंद सिन्हा, महेश नारायण, नंद किशोर लाल तथा श्री कृष्ण सहाय (इन चारों) ने मिलकर जनवरी, 1894 में पटना से ‘बिहार टाइम्स’ और ‘बिहारी‘ समाचार-पत्र निकालना प्रारंभ किया।
- महेश नारायण के संपादन में प्रकाशित इस समाचार पत्र के माध्यम से बिहार पृथक्करण का आंदोलन जोर पकड़ने लगा।
- 1906 ई. में राजेंद्र बाबू, जो उन दिनों कलकत्ता के ‘बिहारी क्लब‘ के मंत्री थे, ने डॉ. सच्चिदानंद सिंहा, श्री महेश नारायण तथा अन्य नेताओं से विचार-विमर्श के पश्चात् पटना में एक विशाल ‘बिहारी छात्र सम्मेलन’ करवाया, जिसमें छात्रों की एक स्थायी समिति बनायी गयी। इससे ‘बिहार पृथक्करण आंदोलन’ को पर्याप्त बल मिलने लगा।
- 1908 ई. में ‘बिहार प्रादेशिक सम्मेलन’ का पहला अधिवेशन पटना में हुआ। इस अधिवेशन में मोहम्मद फखरुद्दीन ने बिहार को बंगाल से पृथक कर एक नये प्रांत के रूप में संगठित करने का प्रस्ताव रखा, जिसे सर्वसम्मति से स्वीकार किया गया।
- 1908 ई. में ही नवाब सरफराज हुसैन खाँ की अध्यक्षता में आयोजित सभा में बिहार प्रदेश काँग्रेस कमिटी का गठन हुआ। तदुपरांत हसन इमाम बिहार प्रदेश काँग्रेस कमिटी के पहले अध्यक्ष चुने गए।
- 1909 ई. में ‘बिहार प्रादेशिक सम्मेलन’ का दूसरा अधिवेशन भागलपुर में संपन्न हुआ। इसमें भी बिहार को अलग करने की जोरदार मांग की गयी।
- 1911 ई. तक बिहार बंगाल प्रेसीडेंसी का हिस्सा था। 1911 ई. में केंद्रीय विधान परिषद मे सच्चिदानंद सिंहा और मोहम्मद अली ने बंगाल से बिहार के विभाजन का प्रस्ताव पेश किया।
- इस घोषणा के अनुसार 1 अप्रैल, 1912 ई. को बंगाल से 3 करोड़ 50 लाख जनसंख्या के साथ 3 लाख 29 हजार 584 वर्ग किमी. क्षेत्र को अलग कर बिहार (उड़ीसा सहित) एक नये प्रांत का गठन हुआ तथा पटना को इसकी राजधानी बनाया गया।
- बिहार को पृथक् राज्य बनाने की मुहीम का नेतृत्व डॉ. सच्चिदानंद सिंहा और महेश नारायण ने किया था। अतः बिहार को स्वतंत्र प्रांत गठन करवाने का श्रेय इन्हीं को दिया जाता है।
- 20 जनवरी, 1913 ई. को बिहार-उड़ीसा के लेफ्टिनेंट गवर्नर के नवगठित काउंसिल की प्रथम बैठक बांकीपुर/पटना में हुई, जिसकी अध्यक्षता बिहार-उड़ीसा के लेफ्टिनेंट गवर्नर सर चार्ल्स स्टुअर्ट बेली ने की।
- 1916 में पटना उच्च न्यायालय और 1917 में पटना विश्वविद्यालय की भी स्थापना हुई।
- ‘गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ऐक्ट 1919 के तहत 1920 में बिहार एवं उड़ीसा को ‘पूर्ण राज्य’ का दर्जा मिला। इसके बाद लॉर्ड सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा को बिहार का पहला गवर्नर (राज्यपाल) बनाया गया।
- पटना में एक नये भवन (वर्तमान विधान सभा) का निर्माण किया गया जिसमें 7 फरवरी, 1921 ई. को बिहार एवं उड़ीसा लेजिस्लेटिव काउंसिल की प्रथम बैठक हुई। जिसकी अध्यक्षता सर मूडी ने की थी।
- 1935 में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट पारित होने के बाद 1 अप्रैल, 1936 ई. को बिहार से अलग उड़ीसा प्रांत का गठन किया गया तथा पुराने गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट-1919 के एक सदनीय विधानमंडल की जगह नए कानून के अनुसार द्विसदनीय विधानमंडल स्थापित किया गया।
- 1956 ई. में राज्यों के पुनर्गठन के क्रम में पुरुलिया एवं पूर्णिया जिला के कुछ क्षेत्र पश्चिम बंगाल को हस्तांतरित किए गए।
- 15 नवंबर, 2000 को बिहार के दक्षिणी भाग (18 जिलों) को अलग करके झारखण्ड नामक एक नवीन राज्य का गठन हुआ। इस विभाजन से पूर्व बिहार में 13 प्रमंडल, 55 जिले, 54 लोकसभा एवं 324 विधान सभा सीटें थीं, जो विभाजन के पश्चात् बिहार में 9 प्रमंडल, 37 जिले, 40 लोकसभा एवं 243 विधान सभा सीटें रह गये थे।
- 2001 में जहानाबाद जिले से काट कर नया ‘अरवल’ जिला का निमार्ण किया गया। इसके बाद बिहार में जिलों की कुल संख्या 38 हो गई।
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