न्यायपालिका
भारत की एकल समेकित न्यायिक व्यवस्था में उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय से नीचे किन्तु अधीनस्थ न्यायालयों के ऊपर कार्य करता है। राज्य के न्यायिक प्रशासन में उच्च न्यायालय की स्थिति शीर्ष पर होती है।
न्यायपालिका की संरचना
भारत में परिसंघात्मक शासन प्रणाली होने के बावजूद यहां संघ और राज्य दोनों के लिए संविधान में एकल न्यायिक प्रणाली की व्यवस्था की गई है। संविधान के अनुसार वे न्यायालय जो उच्च न्यायालय के अधीनस्थ एवं उसके नियंत्रण के अधीन हैं, अधीनस्थ न्यायालय कहलाते हैं।
उच्च न्यायालय
- संविधान के अनुच्छेद-214 के अनुसार भारतीय संघ के प्रत्येक राज्य हेतु एक उच्च न्यायालय की व्यवस्था की गई है।
- अनुच्छेद-231 के अंतर्गत संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय की स्थापना कर सकती है। उच्च न्यायालय किसी राज्य की सर्वोच्च न्यायिक सत्ता होती है।
- वर्तमान में भारत में 25 उच्च न्यायालय हैं।
- केन्द्रशासित प्रदेशों में केवल दिल्ली एवं जम्मू कश्मीर में ही उच्च न्यायालय हैं।
- प्रत्येक उच्च न्यायालय का गठन एक मुख्य न्यायाधीश तथा अन्य न्यायाधीशों से मिलाकर किया जाता है। इनकी नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा होती है। भिन्न-भिन्न उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की संख्या अलग-अलग होती है।
- मूल संविधान के अनुसार न्यायाधीश 60 वर्ष की आयु तक पद पर रह सकते थे, परन्तु 15वें संशोधन के द्वारा अब वे 62 वर्ष तक की आयु तक कार्य कर सकते हैं।
नोट: ‘निषेधाज्ञा कानून न्यायालय’ की स्थापना वाला राज्य बिहार है।
- भारत की पहली ‘जनहित याचिका’ (PIL) ‘हुसैनारा खातून बनाम बिहार सरकार’ है जिसके याचिकाकर्ता वकील थीं-पुष्पा कपिलाहिंगोरानी। उन्होंने 9 मार्च, 1979 को सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थीं। इसमें सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस पीएन भगवती के ऐतिहासिक फैसले के तहत बिहार सहित एक साथ देश के 40 हजार कैदियों को रिहा करा दिया था।
- पुष्पा कपिलाहिंगोरानी को भारत की ‘जनहित याचिका की जननी’ कहा जाता है।
पटना उच्च न्यायालय
- पटना उच्च न्यायालय बिहार की न्यायिक व्यवस्था के शिखर पर विराजमान है। पटना उच्च न्यायालय की स्थापना 3 फरवरी, 1916 को हुई थी।
- ब्रिटिश भारत में पटना उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सर एडवर्ड मायन चैम्स चामियर थे। जिनका कार्यकाल 01 मार्च, 1916 से 30 अक्टूबर, 1917 तक रहा।
- स्वतंत्र भारत में पटना उच्च न्यायालय के प्रथम मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति सर क्लिफॉर्ड मनमोहन अग्रवाल थे। जिनका कार्यकाल 09 जनवरी 1948 से 24 जनवरी, 1950 तक रहा।
- बिहार में सर्वप्रथम लोकायुक्त न्यायमूर्ति श्रीधर वासुदेवा सोहनी बने, जिनका कार्यकाल 28 मई, 1971 ई. से 27 मई, 1978 तक रहा।
- पटना उच्च न्यायालय की स्थापना के समय पटना उच्च न्यायालय के कार्य क्षेत्र में बिहार व उड़ीसा दोनों सम्मिलित थे; क्योंकि बिहार और उड़ीसा दोनों संयुक्त रूप से एक ही प्रांत थे।
- वर्ष 1936 में उड़ीसा के बिहार से अलग होने के बाद इसका कार्य क्षेत्र’ केवल बिहार’ तक सीमित रह गया।
महाधिवक्ता
- अनुच्छेद-165 के अनुसार प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश होने के लिए अर्हित किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा।
- केन्द्र के महान्यायवादी के समरूप राज्य में महाधिवक्ता होता है। यह राज्य का उच्चतम विधि अधिकारी होता है।
- महाधिवक्ता का यह कर्तव्य होगा कि वह उस राज्य की सरकार को विधि सम्बन्धी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक रूप से ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे जो राज्यपाल उसको समय-समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे, जो उसको इस अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गये हों।
- महाधिवक्ता राज्यपाल के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राज्यपाल अवधारित करे।
- अनुच्छेद 177 के अनुसार महाधिवक्ता को राज्य विधानसभा में बोलने तथा उसकी कार्यवाहियों में भाग लेने का अधिकार तो है परन्तु उसे मत देने का अधिकार नहीं है।
प्रशासनिक व्यवस्था / ढाँचा
- बिहार राज्य का 1912 ई. में एक अलग प्रान्त के रूप में उदय होने के पश्चात् राज्य में प्रशासन की स्वतंत्र व्यवस्था गठित हुई, परन्तु 1936 ई. में उड़ीसा के अलग होने के पश्चात् 1956 ई. में राज्यों की सीमा का पुनर्गठन हुआ। पुनः 15 नवम्बर, 2000 को झारखण्ड के विभाजन के बाद वर्तमान बिहार की वास्तविक प्रशासनिक रूपरेखा सामने आई है।
- बिहार की प्रशासनिक व्यवस्था का विभाजन भौगोलिक एवं प्रशासनिक दायित्वों के आधार पर किया गया है। यद्यपि राज्य की प्रशासनिक व्यवस्था राज्य कार्यपालिका के अधीन होती है तथापि स्वतंत्र प्रशासनिक दृष्टि से इसे स्थानीय शासन एवं प्रशासन के रूप में संचालित किया जाता है। प्रशासन की सुविधा के लिए इसे पांच इकाइयों में विभाजित किया गया है- 1. प्रमण्डल जिला (मण्डल) 3. अनुमण्डल 4. प्रखण्ड 5. ग्राम पंचायत
- राज्य के इन सभी प्रशासनिक इकाइयों का संचालन एवं उनके बीच समन्वय करने के लिए सचिवालय का गठन किया गया है।
सचिवालय
- बिहार में सचिवालय का गठन 1912 ई. में किया गया था, यह राज्य प्रशासन का केन्द्रीय प्रशासनिक निकाय है। सचिवालय मुख्यमंत्री एवं मंत्रिमण्डल के नीचे आता है, लेकिन यह राज्य प्रशासन की शीर्ष संस्था है।
- स्थापना के समय सचिवालय में केवल 8 विभाग थे जो 1955 ई. में बढ़कर 34 हो गए।
- सचिवालय का प्रधान मुख्य सचिव होता है। यह भारतीय प्रशासनिक सेवा का सदस्य होता है। इनके अन्तर्गत प्रत्येक विभाग के प्रधान सचिव होते हैं।
- सचिवालय का मुख्य कार्य नीति निर्धारण, क्षेत्रीय नियोजन एवं परियोजना निर्माण, विधान निर्माण एवं नियमावली का गठन बजट एवं नियंत्रण व्यवस्था क्रियान्वयन एवं मूल्यांकन तथा समन्वय के साथ-साथ विभिन्न विभागीय मंत्रियों, उपमंत्रियों एवं राज्यमंत्रियों के दायित्वों के निर्वाह में सहायता प्रदान करना है।
प्रमण्डल
- राज्य में क्षेत्रीय प्रशासनिक इकाई का शीर्ष संगठन प्रमण्डल (Commissionary) है।
- प्रमण्डल का उच्चतम अधिकारी आयुक्त अथवा कमिश्नर होता है और उसकी सहायता हेतु अनेक अपर आयुक्त तथा अन्य अधिकारी होते हैं।
- स्वतंत्रता प्राप्ति के समय बिहार में केवल चार प्रमण्डल (तिरहुत, भागलपुर, पटना तथा छोटानागपुर ) थे जिनकी संख्या वर्ष 2000 में झारखंड राज्य के गठन के पूर्व तक बढ़कर 13 थी।
- झारखण्ड राज्य के गठन के साथ 4 प्रमंडल बिहार के (पलामू, संथाल परगना. उत्तरी छोटानागपुर तथा दक्षिणी छोटानागपुर प्रमण्डल) के इस नवनिर्मित राज्य में चले जाने के कारण वर्तमान समय में बिहार में प्रमण्डलों की संख्या 9 हैं।
जिलों की संख्या की दृष्टि से सबसे बड़े तीन प्रमंडल हैं–
- तिरहुत प्रमंडल – 6 जिले
- मुंगेर प्रमंडल – 6 जिले
- पटना प्रमंडल – 6 जिले
- भागलपुर प्रमंडल में मात्र दो जिले हैं।
प्रमण्डल
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मुख्यालय
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जिले या मण्डल
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पटना
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पटना
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पटना, नालंदा, रोहतास, कैमूर, भोजपुर व बक्सर
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मगध
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गया
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गया, जहानाबाद, नवादा, औरंगाबाद व अरवल
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मुंगेर
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मुंगेर
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मुंगेर, लखीसराय, शेखपुरा, जमुई, खगड़िया व बेगूसराय
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तिरहुत
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मुजफ्फरपुर
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मुजफ्फरपुर, वैशाली, सीतामढ़ी, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण व शिवहर
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सारण
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छपरा
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सारण, सीवान व गोपालगंज
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दरभंगा
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दरभंगा
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दरभंगा, मधुबनी व समस्तीपुर
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कोसी
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सहरसा
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सहरसा, सुपौल व मधेपुरा
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पूर्णिया
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पूर्णिया
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पूर्णिया, अररिया, किशनगंज व कटिहार
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भागलपुर
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भागलपुर
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भागलपुर व बांका
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जिला
- यह क्षेत्रीय प्रशासन का महत्वपूर्ण इकाई है।
- जिला प्रशासन का प्रमुख दायित्व जिलाधिकारी का होता है।
- इसके अधिकार में जिला स्तर पर प्रशासनिक कार्यों का समन्वय एवं कार्यान्वयन होता है।
- 1975 में जिलाधिकारी (जिला मजिस्ट्रेट) से विकास कार्यों को पृथक कर उप विकास आयुक्त (DDC) को सौंपा गया, जो जिला ग्राम विकास अभिकरण (DRDA) के अतिरिक्त नागरिक आपूर्ति, राहत एवं पुनर्वास कार्यों के दायित्व का निर्वहन भी करता है।
- जिलाधिकारी सामान्यतः भारतीय प्रशासनिक सेवा का पदाधिकारी होता है। यह जनता एवं प्रशासन के बीच कड़ी की भूमिका निभाने के साथ-साथ जिला चुनाव अधिकारी भी होता है।
अनुमण्डल
- कई प्रखण्डों को मिलाकर एक अनुमण्डल (Sub-Division) का गठन किया जाता है। इसके प्रशासन का संचालन अनुमण्डलीय पदाधिकारी द्वारा किया जाता है। यह केन्द्र एवं राज्य प्रशासनिक सेवा का पदाधिकारी होता है।
- अनुमण्डलीय पदाधिकारी को मजिस्ट्रेट की शक्तियां प्राप्त होती है, इस पर प्रखण्डों के सर्किल अफसर पर नियंत्रण एवं निगरानी का दायित्व होता है। अनुमण्डलीय अधिकारी पंचायत समितियों की बैठकों में भाग लेता है तथा प्रशासन एवं समिति के बीच कड़ी का काम करता है।
- वर्तमान बिहार में 101 अनुमण्डल हैं।
- पूर्वी चंपारण एवं पटना जिले अनुमंडलों की संख्या की दृष्टि से सबसे बड़े हैं, जिनमें क्रमशः छह-छह अनुमंडल हैं।
प्रखण्ड
- कुछ ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक प्रखण्ड (Blocks) बनता है। प्रत्येक प्रखण्ड में एक प्रखण्ड विकास पदाधिकारी होता है, जिस पर प्रखण्ड के भौगोलिक क्षेत्र में कल्याण एवं विकासात्मक कार्यों का उत्तरदायित्व होता है।
- यह प्रारंभिक चिकित्सा व्यवस्था, प्रारंभिक शिक्षा राहत एवं पुनर्वास, कृषि विकास तथा पशुधन विकास जैसे कार्यों को सम्पन्न करता है।
- बिहार में प्रखण्डों की संख्या 534 है।
ग्राम पंचायत
- यह राज्य की सबसे छोटी प्रशासनिक इकाई होती है। इसका प्रधान मुखिया होता है। गांव का प्रबन्ध एवं सुधार ग्राम पंचायत द्वारा ही किया जाता है।
- बिहार में पंचायतों की कुल संख्या 8386 है।
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