बिहार में पंचायती राज
- बिहार में ग्राम पंचायतों के गठन हेतु स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् वर्ष 1947 में ही ‘बिहार पंचायती राज अधिनियम‘ पारित किया गया था।
- इसी अधिनियम के अन्तर्गत राज्य में ग्राम पंचायतों ने वर्ष 1949 से विधिवत अपना कार्य प्रारम्भ कर दिया था।
- वर्ष 1959 में ‘बलवन्त राय मेहता समिति‘ की सिफारिशों के आधार पर बिहार पंचायती राज अधिनियम‘ में संशोधन किया गया।
- इस समिति ने ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, प्रखण्ड स्तर पर पंचायत समिति तथा जिला स्तर पर जिला परिषद् गठित करने के सुझाव दिए थे, जिन्हें राज्य सरकार ने तुरन्त स्वीकार कर त्रिस्तरीय पंचायती राजव्यवस्था को लागू करने का निर्णय किया।
- ब्लॉक स्तर पर बनी पंचायत समिति केवल समन्वय और पर्यवेक्षी प्राधिकारी संस्था है।
- वर्ष 1961 में ‘बिहार पंचायत समिति एवं जिला परिषद् अधिनियम‘ पारित किया गया, जो महात्मा गांधी की जयन्ती-2 अक्टूबर, 1963 से लागू हुआ।
पंचायती राज संबंधी सर्वधानिक व्यवस्था
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अनुच्छेद 243
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परिभाषाएं
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अनुच्छेद 243 (A)
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ग्राम सभा
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अनुच्छेद 243(B)
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पंचायतों का गठन
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अनुच्छेद 243(C)
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पंचायतों की संरचना
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अनुच्छेद 243(D)
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स्थानों का आरक्षण
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अनुच्छेद 243(E)
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पंचायतों की अवधि
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अनुच्छेद 243(F)
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सदस्यता के लिए निर्हताएं
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अनुच्छेद 243(G)
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पंचायतों की शक्तियां, प्राकिधार और उत्तरदायित्व
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अनुच्छेद 243(H)
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पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियां और उनकी निधिया
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अनुच्छेद 243(1)
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वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
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अनुछेर 243(1)
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पंचायतों के लेखाओं की संपरीक्षा
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अनुच्छेर 243(K)
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पंचायतों की लिए निर्वाचन
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अनुच्छेद 243(0)
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निर्वाचन संबंधी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन
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बिहार पंचायती राज अधिनियम, 1993
- 24 अप्रैल, 1993 को भारतीय संविधान के 73वें संविधान संशोधन के परिप्रेक्ष्य में बिहार में भी पंचायती राज प्रणाली की संरचना को अत्यधिक प्रभावी बनाने के उद्देश्य से ‘बिहार पंचायती राज अधिनियम, 1993 पारित किया गया।
- 73वें संविधान के अनुरूप ही बिहार में भी पंचायती राज व्यवस्था त्रि–स्तरीय (ग्राम पंचायत, पंचायत समिति एवं जिला परिषद) है। सबसे निचले स्तर (गांव) पर ग्राम पंचायतों का गठन किया गया है।
- प्रखण्ड स्तर पर ग्राम पंचायत समितियां गठित की गई हैं, जो विकेन्द्रित प्रजातंत्र के मध्य स्तर पर है।
- सर्वोच्च या तृतीय स्तर पर जिला परिषद् का गठन किया गया है। 1993 में लागू किया गया पंचायती राज अधिनियम, 2001 से काम करना शुरू किया। बाद में इसको जगह बिहार पंचायती राज अधिनियम, 2006 ने ले ली।
- राज्य में पंचायती राज्य संस्थाओं के काम-काज का समन्वय बिहार पंचायती राज विभाग द्वारा किया जाता है।
- संविधान के अनुच्छेद-243 (क) के अंतर्गत अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई है। यह आरक्षण उनकी जनसंख्श के अनुपात में होगा। उदाहरणस्वरूप यदि अनुसूचित जातियों की जनसंख्या राज्य में 20% है तथा अनुसूचित जनजाति की संख्या 35% है तो उनके लिए क्रमश: 20% तथा 35% स्थान आरक्षित होंगे।
- बिहार भारत का पहला राज्य है जहां पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं को सर्वप्रथम 50% आरक्षण दिया गया। यह व्यवस्था 2006 से लागू है।
ग्राम पंचायत
पंचायती राजव्यवस्था के अंतर्गत सबसे निचले स्तर पर प्रशासनिक कार्यवाही के संचालन हेतु ग्राम पंचायत का गठन किया गया है। ग्राम पंचायत में कार्यकारिणी के प्रधान को मुखिया कहा जाता है। साथ ही कार्यकारिणी में आठ अन्य सदस्य होते हैं। मुखिया का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है।
- 2021 के पंचायत चुनाव में बिहार सरकार ने पंचायती राज अधिनियम 2006 के तहत 21 साल की आयु पूरा करने वाले व्यक्ति को भी मुखिया के साथ अन्य पाच श्रेणियों के उम्मीदवारों को चुनाव लड़ने का अधिकार दे दिया है।
- बिहार में ग्राम पंचायत के मुख्यतः छह विभाग होते हैं जैसे ग्राम सभा, कार्यकारिणी समिति, ग्राम रक्षा दल, ग्राम सेवक, मुखिया, ग्राम कचहरी। प्रत्येक पंचायत की अवधि सामान्यतः 5 वर्ष की होता है। जिसकी गणना उसके प्रथम अधिवेशन से की जाती है। पंचायत सदस्य बनने हेतु सामान्यतः न्यूनतम उम्र 21 वर्ष होनी चाहिए।
- ग्राम सभा को ग्राम पंचायत की विधायिका कहा जाता है। जिसकी सदस्यता हेतु प्रत्येक ग्रामीण की आयु कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिए। ग्राम सभा की बैठक वर्ष में दो बार होनी अनिवार्य है। जबकि साल में 4 चार बैठक बुलाने का प्रावधान है।
- ग्राम पंचायत में न्यायिक कायों से संबंधित कार्यवाही के लिये ग्राम-कचहरी होती है, जिसका प्रधान प्रत्यक्षतः निर्वाचित सरपंच होता है। सरपंच की सलाह-मशविरा के लिये एक न्याय मित्र होता है। ग्राम कचहरी के पास न्यूनतम रूप में फौजदारी एवं दीवानी मामलों से संबंधित निर्णय करने का अधिकार होता है।
- वर्तमान में बिहार में 8058 ग्राम पंचायत हैं। मुखिया एवं कार्यकारिणी समिति का कोई भी सदस्य ग्राम कचहरी का सदस्य नहीं बन सकता है।
- सामान्यतः पंचायतों को वित्तीय सहायता राज्य की संचित निधि से प्राप्त होती है। जिसके लिये माध्यम के रूप में पंचायत वित्त आयोग होता है।
पंचायत समिति
बिहार में प्रखंड स्तर पर प्रशासन को संचालित करने के लिए पंचायत समिति का गठन किया गया है। पंचायत समिति के सदस्यों में निम्नलिखित व्यक्ति शामिल होते हैं-
- प्रत्येक 5000 की आबादी पर एक सदस्य।
- उस प्रखंड के ग्राम पंचायतों के मुखिया।
- घोषित प्रत्येक प्रखंड में विधानसभा क्षेत्र के विधायक।
- घोषित लोकसभा क्षेत्र के सांसद।
- पंचायत समिति की कार्यकाल पांच वर्ष का होती है।
- पंचायत समिति के निर्वाचित सदस्य अपने सदस्यों के बीच से ही प्रमुख और उप-प्रमुख को चुनते हैं।
- पंचायत समिति की बैठक का आयोजन दो माह में कम-से-कम एक बार निश्चित रूप से किया जाना चाहिये।
- वर्तमान में बिहार में कुल पंचायत समितियों को संख्या 534 है।
पंचायत समिति के कार्य
- पंचायत स्तर पर प्राकृतिक आपदाओं से बचाव हेतु उपाय करना।
- सरकार द्वारा निर्धारित कार्यों का निष्पादन करना।
- वार्षिक योजना बनाकर, जिला परिषद के समक्ष प्रस्तुत करना।
- पंचायत समिति के कार्यकारिणी प्रधान को प्रमुख कहा जाता है। प्रमुख की सहायतार्थ एक उप-प्रमुख होता है। इनका निर्वाचन पंचायत चुनाव के समय ही पांच वर्षों के लिये होता है।
जिला परिषद
जिलों में पंचायती राज्यव्यवस्था के अंतर्गत सर्वोच्च स्तर पर प्रशासनिक कार्यवाही हेतु जिला परिषद होती है। लगभग 50,000 की आबादी पर एक जिला परिषद का सदस्य होता है। जिन्हें जिला पार्षद कहा जाता है। जिला पार्षद का कार्यकाल पांच वर्षों का होता है। जिला पार्षद का निर्वाचन प्रत्यक्ष मतदान के द्वारा होता है। बिहार में जिला परिषदों की बैठक अनिवार्यतः एक वर्ष में चार बार होती है।
- बिहार में वर्तमान में कुल 38 जिला परिषद हैं।
- बिहार में प्रत्येक जिले में प्रशासन संबंधी गतिविधियों के संचालन हेतु जिला परिषद का गठन किया जाता है, जिसमें निम्नलिखित व्यक्ति शामिल होते हैं-
- सभी पंचायत समितियों के प्रमुख
- अधिसूचित राज्य विधानपरिषद और राज्य विधानसभा के सदस्य
- अधिसूचित लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्य जिनका निर्वाचन क्षेत्र उस जिले से संलग्न हो।
जिला परिषव के कार्य
- जिला स्तर पर आपदा से राहत एवं सुरक्षा प्रदान करना।
- ग्राम पंचायत, पंचायत समिति को अनुदान एवं वित्तीय सहायता।
- सरकार द्वारा निर्धारित कार्यक्रमों का जिला स्तर पर कार्यान्वयन।
राज्य निर्वाचन आयोग
- संविधान के अनुच्छेद-243 (k) में पंचायतों के लिए राज्य निर्वाचन आयोग के गठन का उपबन्ध है, जिसके अंतर्गत एक राज्य निर्वाचन आयुक्त होगा, जिसकी नियुक्ति राज्यपाल करेगा। राज्य निर्वाचन आयोग को निर्वाचक नामावली तैयार कराने का तथा पंचायतों के निर्वाचनों के संचालन का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण का अधिकार होता है।
- राज्य निर्वाचन आयुक्त को उन्हीं आधारों पर और उसी प्रक्रिया से हटाया जा सकता है, जिस प्रकार उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया जाता है।
- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1993 से प्रजातान्त्रिक विकेन्द्रीकरण के एक नए युग की शुरुआत हुई, जिसके अंतर्गत शक्तियां और जिम्मेदारियां दोनों ही जिला, मध्यवर्ती और ग्राम स्तरों पर निर्वाचित पंचायतों को सौंपी गई हैं।
स्थानीय नगर निकाय
- वर्ष 1992 में पारित 74वें संविधान संशोधन अधिनियम के परिणामस्वरूप बिहार सरकार ने नगर निगम, नगर परिषद् और नगर पंचायत के लिए बिहार नगरपालिका अधिनियम, 2001 लागू किया था। लेकिन 26 दिसम्बर, 2020 को इसमें संशोधन कर बिहार नगरपालिका अधिनियम 2007 को लागू किया गया है, जिसके अंतर्गत अब बिहार राज्य में 12 नगर निगम, 57 नगर परिषदें और 117 नगर पंचायतें हैं। राज्य सरकार का नगर विकास एवं आवास विभाग राज्य स्तर पर स्थानीय नगर निकायों के कामकाज का समन्वय करता है।
- अधिनियम के प्रावधानों के तहत कुछ कर उनके राजस्व के मुख्य स्त्रोत हैं, जैसे- होल्डिंग कर, जल कर, शौचालय कर, वाहन कर, व्यापार कर, पेशा कर, आजीविका एवं रोजगार कर, फिराया के वाहन के निबंधन कर, दूकानों और भवनों का किराया, राहदरी (टॉल) और अन्य शुल्क आदि।
- सामान्यतः नगरपालिका को जनसंख्या के व्हधार पर वार्डों में विभाजित किया गया है।
नगर निगम
- राज्य के बड़े शहरों में नागरिक व्यवस्था तथा सुविधाओं के निरीक्षण के लिए नगर निगम का गठन किया गया है।
- नगर निगम क्षेत्र के लिए अधिकतम वाडाँ की संख्या 75 तथा न्यूनतम 67 निर्धारित की गई है, जिनकी जनसंख्या कम-से-कम 10 लाख से ऊपर और 20 लाख से कम होनी चाहिये।
- वर्तमान में बिहार में 12 नगर निगम हैं- भागलपुर, दरभंगा, पटना, पूर्णिया, गया, मुंगेर, कटिहार, आरा, बेगूसराय, बिहारशरीफ, मुजफ्फरपुर एवं छपरा। इनमें 2016 में छपरा को 12वां नगर निगम घोषित किया गया है।
- नगर निगम स्थायी समिति होता है। इसके प्रमुख को महापौर कहा जाता है।
- बिहार में सर्वप्रथम पटना नगर निगम की स्थापना (15 अगस्त, 1952 ई.) हुई थी। वर्तमान में पटना नगर निगम में वार्डों की संख्या 75 है।
नगर परिषद
- नगरीय प्रशासन के क्रम में दूसरा निकाय नगर परिषद भी स्थायी समिति होता है। बिहार में नगर परिषदों की कुल संख्या वर्तमान में 57 है। नगर परिषद के अंग मुख्य रूप से नगर सभापति एवं नगर कार्यपालक पदाधिकारी होते हैं।
नगर पंचायत
- नगरीय प्रशासन के अतिम स्तर पर तीसरा निकाय नगर पंचायत होता है। वर्तमान में बिहार में नगर पंचायतों की संख्या 117 है।
- नगर पंचायत भी एक स्थायी समिति होती है, जिसका गठन मुख्य रूप से नगर सभापति, नगर उप-सभापति एवं पांच पार्षदों को मिलाकर किया जाता है। इसके विभिन्न अंगों के रूप में नगर अध्यक्ष एवं नगर कार्यपालक अधिकारी होते हैं।
- नगरीय प्रशासन हेतु नगर निगम, नगर परिषद एवं नगर पंचायत का मुख्य कार्य अपने-अपने स्तर पर केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार द्वारा निर्देशित कार्यों का संचालन करना, सड़कों पर प्रकाश की व्यवस्था करना तथा उनका निर्माण एवं रखरखाव होता है। साथ-ही-साथ स्वच्छता बनाए रखने हेतु जल–नल का प्रबंधन करना तथा आवागमन के मार्ग को सुरक्षा एवं संरक्षण प्रदान करना भी इसकी जिम्मेदारी है।
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