बिहार की भाषाएँ एवं बोलियाँ
स्वतंत्रता के पश्चात बिहार की राजभाषा हिन्दी को बनाया गया जबकि 1984 में उर्दू को द्वितीय राजभाषा का दर्जा प्रदान किया गया। भाषा विशेषज्ञ डॉ. जॉर्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने वर्तमान बिहार के विभिन्न बोलियों को बिहारी नाम दिया है। भाषा परिवार की दृष्टि से बिहार में मुख्यतः दो वर्ग को भाषाएँ बोली जाती हैं-
(i) आर्य वर्ग की भाषाएँ: इस भाषा वर्ग के अंतर्गत भोजपुरी, मगही और मैथिली भाषाएँ हैं।
(ii) मुंडारी वर्ग की भाषाएँ: इस भाषा परिवार के अंतर्गत मुंडारी, कोल, संथाली, खड़िया, हो (झारखण्ड); अंगिका, वज्जिका (बिहार) आदि भाषाएँ आती हैं।
आर्य वर्ग की भाषाएं
भोजपुरी
- यह भाषा बिहार के भोजपुर, रोहतास, बक्सर, सीवान, सारण, कैमूर, गोपालगंज, चम्पारण आदि जिलों से लेकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बोली जाती है।
- विदेशों में भी फिजी, मॉरीशस, सूरीनाम तथा गुआना आदि में प्रवासी भारतीय भोजपुरी को ही आपसी बात चीत की भाषा के रूप में प्रयोग करते हैं।
- मगधी अपभ्रंश से उत्पन्न भोजपुरी को भिखारी ठाकुर ने विशेषकर नाटक मंडली के माध्यम से लोकप्रिय बनाया।
- उनकी रचना विदेशिया अत्यधिक लोकप्रिय रही है। उन्हें भोजपुरी का जन कवि कहा जाता है।
- अन्य महत्त्वपूर्ण नामों में रामेश्वर सिंह ‘कश्यप’, अवध-बिहारी ‘सुमन”, उमाकांत वर्मा, गणेशदत्त तिवारी एवं गोरखनाथ चौबे का योगदान भोजपुरी के विकास में उल्लेखनीय है।
- भोजपुरी की पहली फिल्म 1961 में बनी। (गंगा मइया तोहे पियरी चढ़इन्बों)
मैथिली
- उत्तर बिहार के तिरहुत एवं मिथिलांचल क्षेत्र में यह भाषा बोली जाती है। 2003 में बिहार की इस क्षेत्रीय भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया है।
- मैथिली की सबसे पहली रचना वर्ण रत्नाकर मानी जाती है जिसे ज्योतिरीश्वर ठाकुर ने रचा था।
- मैथिली भाषा के सबसे महत्त्वपूर्ण कवि विद्यापति थे, जिन्होंने अपनी कविता के माध्यम से मैथिली साहित्य को समृद्धि प्रदान किया।
- गोविन्द दास, महेश ठाकुर और महिनाथ ठाकुर ने भी इस भाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया।
- यह भाषा बिहार के अतिरिक्त सीमावर्ती नेपाल में भी लोकप्रिय है।
मगही
- मगध क्षेत्र की बोली को कहा जाता है।
- इसके क्षेत्र में पटना, गया, जहानाबाद, अरवल, औरंगाबाद आदि जिले सम्मिलित हैं। मगही बोली के प्रथम कवि ईशान माने जाते हैं।
- सर्वाधिक चर्चित मगही साहित्यकार योगेश्वर सिंह हुए।
- इस बोली को शैली का जनक सुरेश दुबे को कहा जाता है।
मुंडारी वर्ग की भाषाएं
अंगिका
- अंगिका एवं वज्जिका मुंडा परिवार की भाषाएं हैं।
- यह मुख्यतः भागलपुर एवं मुंगेर जिले में बोली जाती है। इसे लोग भागलपुरी के नाम से भी जानते हैं।
- डॉ. ग्रियर्सन ने इसे छिकाछिकी नाम दिया है। अंगिका मैथिली की ही एक उप-बोली है। डॉ. तेजनाराण कुशवाहा ने अंगिका बोली का इतिहास लिखकर इसको लोकप्रिय बनाया है।
- अंगिका भाषा की अपनी प्राचीन लिपि का नाम अंग लिपि था।
- प्राचीन काल में अंग जनपद की प्रचलीत भाषा का नाम आंगी था।
वज्जिका
- यह वज्जी जनपद की बोली है। ग्रियर्सन ने इसे पश्चिमी मैथिली या मैथिली भोजपुरी कहा है।
- इस भाषा एवं साहित्य का संबंध जैन व बौद्ध धर्म काल से जुड़ा है।
- वर्तमान में यह सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मधुबनी, दरभंगा इत्यादि जिलों में बोली जाती है।
- वज्जिका का अपनी लिपि कैथी है, इसके नामकरण का श्रेय राहुल सांकृत्यायन को है।
उर्दू भाषा
- बिहार में उर्दू भाषा का विकास बारहवीं शताब्दी से प्रारंभ हुआ तथा यह वास्तविक रूप से सत्रहवीं शताब्दी में विकसित हुई।
- उर्दू भाषा में बिहार के इतिहास पर प्रथम ग्रंथ ‘नक्शे पायदार’ की रचना अली मुहम्मद शाह अजीमाबादी ने की थी।
- इनकी गजलों का संग्रह ‘मौखाना-ए-इल्हाम’ के नाम से जाना जाता है। बिहार में
- प्रगतिशील उर्दू विचारधारा के प्रसार का श्रेय सुहैल अजीमाबादी को दिया जाता है।
- उर्दू साहित्य पर शोध को वैज्ञानिक आधार प्रदान करने का श्रेय काजी अब्दुल बदीद को प्राप्त है।
- बिहार के प्रसिद्ध उर्दू साहित्यकार अब्दुल समद के उपन्यास ‘दो गज जमीन’ को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है।
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