उत्तर बिहार की चीनी मिलें: अर्श से फर्श तक
1960 और 1970 के बीच देश की 40 प्रतिशत चीनी का उत्पादन करने वाला बिहार अब केवल दो प्रतिशत का योगदान देता है। ▪︎ औद्योगिकीकरण और कृषि आधारित उत्पाद बनाने पर जोर के बावजूद उत्तर बिहार की चीनी मिलें एक-एक कर बंद हो गई हैं। एक जमाने में यहां 16 चीनी मिलें चलती थीं, उनमें से नौ बंद हो चुकी हैं। सिर्फ सात का संचालन हो रहा। मिलें बंद होने का असर न सिर्फ रोजगार पर पड़ा, बल्कि लाखों किसान नकदी फसल की खेती से अलग हो गए। ▪︎चनपटिया चीनी मिल वर्ष 1994 से बंद है। सीतामढ़ी में एकमात्र रीगा चीनी मिल ठीक-ठाक चल रही थी, लेकिन मजदूरों और प्रबंधन के बीच खींचतान से इस बार पेराई-सत्र शुरू नहीं हो सका। मधुबनी की लोहट चीनी मिल भी व्यवस्थागत खामियों के कारण 1996 से बंद है। मुजफ्फरपुर की मोतीपुर चीनी मिल में सन् 1997 से उत्पादन ठप है। ▪︎समस्तीपुर में हसनपुर मिल चालू है, जबकि जिला मुख्यालय स्थित मिल में 1985 से ताला बंद है। सबसे बुरी स्थिति दरभंगा की है। कभी यहां सकरी और रैयाम चीनी मिलों का नाम था। 1993 में सकरी और एक साल बाद 1994 में रैयाम में तालाबंदी हो गई। *पूर्वी चंपारण में भी ऐसा ही देखने को मिला। यहां की चकिया 1994 और मोतिहारी चीनी मिल 2009 से बंद है। केवल सुगौली मिल चल रही है। दो मिलें (सीतामढ़ी और मोतिहारी) राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के दौरान बंद हुईं, जबकि सात लालू-राबड़ी और कांग्रेस की सरकार के दौरान। ▪︎ करीब चार लाख किसानों ने छोड़ दी गन्ने की खेती. मिलों के बंद होने के कारण करीब चार लाख किसानों ने न सिर्फ गन्ने की खेती छोड़ दी, बल्कि सात हजार से अधिक कामगारों की रोजी-रोटी छिन गई। इसी सत्र में बंद हुई रीगा चीनी मिल इसका बड़ा उदाहरण है। इससे जुड़े सीतामढ़ी और शिवहर के करीब 40 हजार किसान गन्ना बेचने के लिए भटक रहे। वहीं 12 सौ कामगार बेरोजगार हो गए। शिवहर के बड़े गन्ना किसान बताते हैं कि उत्तर बिहार में जितनी भी चीनी मिलें बंद हुई हैं, उसके लिए सरकार, जिम्मेदार हैं। समस्तीपुर के के किसान का कहना है कि गन्ना नकदी फसल है। इससे होने वाली आय से शादी-ब्याह, बच्चों की पढ़ाई तक के खर्च निकलते थे। मिल बंदी ने कमर तोड़ दी। ▪︎ रकबे में आई कमी गन्ना उत्पादित रकबे में कमी आई है। 90 के दशक में जहां करीब सात लाख एकड़ में गन्ने की खेती होती थी, वहीं अब छह लाख पर सिमट गई है। मिलों पर किसानों के साथ मजदूरों का भी बकाया है। यह राशि ब्याज समेत करीब दो सौ करोड़ है। |