मौर्योत्तर काल में बिहार
शुंग राजवंश
- मौर्यों के सेनापति पुष्यमित्र शुंग ने अंतिम मौर्य शासक वृहद्रथ की हत्या कर 185 ई. पू. में शुंग वंश की स्थापना की।
- पुष्यमित्र शुंग के शासन काल में विदिशा का विजय अभियान उसके पुत्र अग्निमित्र द्वारा सम्पन्न हुआ जिसमें उसने यूनानियों पर विजय प्राप्त की।
- शुंग काल में राजधानी पाटलिपुत्र थी, लेकिन बाद में विदिशा ने इसका स्थान ले लिया।
- पुष्यमित्र शुंग, एक ब्राह्मण होने के नाते दो अश्वमेध यज्ञ करवाया जिसमें पतंजलि पुरोहित थे।
- शुंग काल में ही पाटलिपुत्र पर यवन आक्रमणकारी डेमिट्रियस का आक्रमण हुआ।
- पुष्यमित्र ने सेनानी की उपाधि धारण की थी। दीर्घकाल तक मौर्यों की सेना का सेनापति होने के कारण वह इसी रूप में विख्यात था तथा राजा बन जाने के बाद भी उसने यह उपाधि बनाए रखी।
- पुष्यमित्र शुंग के पश्चात् इस वंश में नौ शासक और हुए जिनमें प्रमुख थे- अग्निमित्र, वसुज्येष्ठ, वसुमित्र, भद्रक, भागवत और देवभूमि।
- शुंग काल में संस्कृत भाषा और ब्राह्मणधर्म का पुनरुत्थान हुआ। मनुस्मृति के वर्तमान स्वरूप की रचना शुंग काल में ही हुई थी, जिसमें चारों वर्ण में ब्राह्मणों को श्रेष्ठ बताया गया।
- पुष्यमित्र शुंग ने मगध साम्राज्य पर अपना अधिकार जमाकर जहाँ एक ओर यवनों के आक्रमण से देश की रक्षा की वहीं दूसरी ओर अपने साम्राज्य में वैदिक धर्म एवं कर्मकांडीय आदर्शों की स्थापना की जो सम्राट अशोक के शासनकाल में उपेक्षित हो गए थे। इसी कारण इस काल को वैदिक/ब्राह्मणधर्म पुनर्जागरण का काल कहा जाता है।
- विद्वानों के अनुसार शुंग काल में ही महाभारत के शान्तिपर्व तथा अश्वमेध यज्ञ में भी परिवर्तन हुआ।
- बौद्ध ग्रंथों के अनुसार पुष्यमित्र ब्राह्मणधर्मावलंबी होने के नाते बौद्ध धर्मावलम्बियों पर बहुत अत्याचार किया और अनेक बौद्धास्थलों को ध्वस्त कर दिया।
- बौद्ध ग्रंथों के अनुसार पुष्यमित्र ने अशोक द्वारा निर्माण करवाए गये 84 हजार स्तूपों को नष्ट करवा दिया। लेकिन उसने कुछ बौद्धों को अपना मंत्री भी नियुक्त कर रखा था।
- पुराणों के अनुसार पुष्यमित्र ने 36 वर्षों तक शासन किया। इस प्रकार उसका काल 148 ई. पू. तक माना जाता है।
- पुष्यमित्र का साम्राज्य उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में बरार तक तथा पश्चिम में पंजाब से लेकर पूर्व में मगध तक फैला हुआ था।
- पुष्यमित्र शुंग की मृत्यु के पश्चात उसका पुत्र अग्निमित्र शासक बना। कालीदास रचित नाटक मालविकाग्निमित्रम् में अग्निमित्र के रूप में इसी की चर्चा है।
- पुष्यमित्र शुंग के प्रयास से ही पाणिनि कृत अष्टाध्यायी जैसे दुरुह ग्रंथ पर पतंजलि ने महाभाष्य लिखा।
- प्रसिद्ध व्याकरण शास्त्री और अष्टाध्यायी के रचयिता पाणिनि मनेर (पटना) के निवासी थे।
- शुंग वंश के 9वें शासक भागभद्र (भागवत) के शासनकाल के 14वें वर्ष में तक्षशिला के यवन शासक एण्टियालकीड्स का राजदूत हेलियोडोरस ने विदिशा में वासुदेव के सम्मान में गरुड़ स्तम्भ स्थापित किया।
- शुंग काल में पाषाण शिल्प स्थापत्य का स्वरूप ग्रहण कर अपने शिखर तक पहुँचा। बोध गया के स्तूप, वेष्टिनी, वेदिकाएँ, तोरणद्वार इसके प्रमाण हैं।
- शुंग काल की अनमोल थाती बुलन्दीबाग से प्राप्त स्तंभ है जिसपर अंकित नागपुष्प शिल्प, धार्मिक अभिप्राय और मान्यता का बेजोड़ प्रतिबिम्ब है। इनका संबंध पूजन से है।
- बोधगया के विशाल मन्दिर के चारों ओर एक छोटी पाषाण वेदिका मिली है। इसका निर्माण भी शुंग काल में हुआ था। इसमें कमल, राजा, रानी, पुरुष, पशु, बोधिवृक्ष, छत्र, त्रिरत्न, कल्पवृक्ष आदि प्रमुख हैं।
- शुंगकालीन समाज में बाल विवाह का प्रचलन था तथा कन्याओं का विवाह 8 से 12 वर्ष की आयु में किया जाने लगा था। शुंग वंश का अंतिम शासक देवभूति था।
कण्व वंश
- शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति की 75 ई.पू. में हत्या करके उसके सचिव वासुदेव (ब्राह्मण) ने मगध पर कण्व वंश की स्थापना की। वासुदेव के पश्चात् भूमिदेव, नारायण तथा सुशर्मा शासक बनें।
- वासुदेव 9 वर्ष तक शासक रहा। इस वंश की जानकारी का एकमात्र स्रोत पुराण है। कण्व ब्राह्मण थे।
- इनके शासनकाल में मगध राज्य सम्भवतः पाटलिपुत्र के क्षेत्र तक ही सीमित हो गया तथा मगध का राजनीतिक महत्व लगभग समाप्त हो गया।
- कण्व वंश के अंतिम शासक को आंध्र-सातवाहनों ने अपदस्थ कर दिया।
कुषाण वंश
- कुषाण वंश की स्थापना लगभग 100 ई.पू. में कुजुल कडफिस्स ने किया था।
- कुजुल कडफिस्स की मृत्यु के बाद विम कडफिस्स राजा बना। विम ने स्वर्ण एवं तांबे के सिक्के चलवाए जिन पर शिव, नंदी तथा त्रिशुल की आकृतियां मिली हैं।
- विम कडफिस्स के बाद कनिष्क कुषाण वंश का राजा बना। कुषाण वंश का सर्वाधिक प्रतापी और शक्तिशाली राजा कनिष्क हुआ।
- कनिष्क ने पुरुषपुर (पेशावर, पाकिस्तान) को अपनी राजधानी बनाया। इसकी दूसरी राजधानी मथुरा थी।
- कनिष्क ने 78 ई. में एक संवत् चलाया जो शक संवत् कहलाता है जिसे भारत सरकार द्वारा प्रयोग में लाया जाता है।
- कनिष्क बौद्ध धर्म के महायान सम्प्रदाय का अनुयायी था।
- गांधार शैली और मथुरा शैली का विकास कनिष्क के शासनकाल में हुआ था।
- श्रीधर्मपिटक निदानसूत्र के चीनी अनुवाद से ज्ञात होता है कि कनिष्क ने पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर वहाँ के शासक को हराकर हर्जाने के रूप में मगध के प्रसिद्ध विद्वान अश्वघोष तथा बुद्ध का भिक्षापात्र प्राप्त किया था।
- अश्वघोष ने बुद्धचरित, सूत्रालंकार और सौंदर्यानंद जैसे ग्रंथों की रचना की थी।
- कनिष्क के दरबार में पार्श्व, वसुमित्र, अश्वघोष जैसे बौद्ध दार्शनिक, नागार्जुन जैसे विद्वान और चरक जैसे चिकित्सक विद्यमान थे।
- चरक कुषाणवंशीय कनिष्क के दरबार में जाने-माने चिकित्सक थे। इनके द्वारा चिकित्सा शास्त्र पर एक ग्रंथ लिखा गया जिसे चरकसंहिता कहा जाता है।
- कनिष्क कुल का अंतिम महान सम्राट वासुदेव था।
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