स्वतंत्रता आंदोलन में बिहार का योगदान
भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना से लेकर अंग्रेजों से स्वतंत्रता दिलाने में बिहार की भागीदारी हमेशा रही है। चाहे धार्मिक राजनीतिक आन्दोलन हो अथवा विशुद्ध संवैधानिक संघर्ष, उग्र क्रान्तिकारी विस्फोट हो या फिर महात्मा गाँधी के अनुप्रेरक नेतृत्व में सत्याग्रह, इन सभी में बिहार का महान योगदान रहा है।
1857 ई. का विद्रोह और बिहार
- भारत में अंग्रेजी सत्ता की स्थापना के बाद प्रथम सशक्त जन आन्दोलन 1857 का विद्रोह था।
- 1857 का भारतीय विद्रोह जिसे प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, सिपाही विद्रोह और सशस्त्र विद्रोह भी कहा जाता है।
- 1857 ई. के विद्रोह का आरम्भ 29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे के नेतृत्व में वैरकपुर छावनी (34वां बंगाल इन्फैन्ट्री) से हुआ था। इसका व्यापक रूप से आरम्भ 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी से हुआ। इसका बिहार में भी व्यापक प्रभाव पड़ा।
- 1857 ई. के विद्रोह का आरम्भ 29 मार्च, 1857 को मंगल पांडे के नेतृत्व में वैरकपुर छावनी (34वां बंगाल इन्फैन्ट्री) से हुआ था। इसका व्यापक रूप से आरम्भ10 मई, 1857 को मेरठ छावनी से हुआ। इसका बिहार में भी व्यापक प्रभाव पड़ा।
- झारखंड राज्य (पूर्व में बिहार का ही अंग) के देवघर जिले के रोहिणी नामक ग्राम में स्थित देशी स्थल सेना के 32वीं रेजीमेंट की एक टुकड़ी में 12 जून, 1857 को विद्रोह होने के पश्चात इस रेजीमेंट का मुख्यालय रोहणी से हटाकर बिहार के भागलपुर में स्थानांतरित कर दिया गया।
- भागलपुर में भी अगस्त, 1857 में विद्रोह शुरू हो गया और विद्रोही भागलपुर जिलांतर्गत बौसी होते हुए नवादा पहुंच गए। हालाकि गया की सुरक्षा के लिए तैनात कैप्टन रैत्तरे ने विद्रोहियों को रोकने का पूरा प्रयास किया, लेकिन विद्रोही गया पहुंच गए और उन्होंने जेल से 400 कैदियों को मुक्त करा दिया एवं टिकारी इस्टेट से 10,000 रुपए छीन लिया।
- पटना के भूतपूर्व कमिश्नर के पुत्र स्किपविथ टेलर ने एक घर की किलाबंदी करके उसमें गया के यूरोपीय निवासियों को आश्रय दिलाया। तदुपरांत विद्रोही सितम्बर-अक्टूबर, 1857 में सहसराम एवं रोहतास के समीप अमर सिंह के साथ मिल गए।
- 3 जुलाई, 1857 को पटना में व्यापक विद्रोह एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में आरम्भ हुआ।
- बिहार में अफीम व्यापार के एजेंट लॉयल ने इस विद्रोह को दबाना चाहा, लेकिन अपने सैनिकों के साथ मारा गया।
- पटना के कमीश्नर विलियम टेलर ने विद्रोह के दमन के कठोर उपाय किए।
- पीर अली, पटना के महाजन लुत्फ अली खां, उसके जमादार शेख घसीटा तथा महाबत अली पर मुकदमा चलाया गया। घाट खाजेकलां थाना के दारोगा पर 3 जुलाई को सूचना देने की विफलता के आरोप में ‘बर्खास्त’ किया गया।
- पटना शहर के मजिस्ट्रेट मौलवी मेंहदी को भी संदेह के आधार पर गिरफ्तार किया गया।
- 25 जुलाई, 1857 को मुजफ्फरपुर में भी कुछ अंग्रेज अधिकारियों को विद्रोही सैनिकों ने हत्या कर दी।
- 25 जुलाई 1857 को ही दानापुर छावनी में तीन रेजीमेन्टों के सैनिकों ने विद्रोह कर दिया और अगले दिन शाहाबाद जिला में प्रवेश कर गए, जहां जगदीशपुर के बाबू कुँवर सिंह के सुयोग्य नेतृत्व में ब्रिटिश राज को एक सुसंगठित चुनौती का सामना करना पड़ा।
- 30 जुलाई को कम्पनी सरकार ने पटना, शाहाबाद, सारण, मुजफ्फरपुर और चम्पारण जिलों में मार्शल लॉ लागू कर दिया।
- दानापुर स्थित सैनिक मुख्यालय मेजर जनरल लोआउट के कमान में था।
- 1857 के विद्रोह के दौरान मुंगेर का क्षेत्र अप्रभावित रहा था जबकि इस विद्रोह का केन्द्र आरा, दानापुर, गया, पटना, मुजफ्फरपुर थे।
- 1857 के मुख्य केन्द्र बिहार का आरा, शाहबाद केन्द्र था जिसका नेतृत्व कुंवर सिंह ने किया था।
- कुवंर सिंह का जन्म भोजपुर जिले के जगदीशपुर गांव में हुआ था। जमींदार पिता साहबजादा सिंह के ज्येष्ठ पुत्र कुंवर सिंह का विवाह गया के देवमूंगा में हुआ था।
- दानापुर से आए हुए सैनिकों को लेकर कुंवर सिंह के दल ने आरा की अंग्रेज सैनिक टुकड़ी को 27 जुलाई, 1857 को घेर लिया।
- यहीं मजिस्ट्रेट एच. सी. बेक ने नगर के अन्य सभी यूरोपीय निवासियों को लेकर एक दोतल्ले मकान में आश्रय ले लिया था। इस मकान को कंपनी के रेलवे इंजीनियर विकार वॉयल ने सुरक्षात्मक व्यवस्था करके एक दुर्ग के समान बना दिया था।
- 5 अगस्त, 1857 को बंगाल सरकार ने टेलर के स्थान पर ई. ए. सैमुयेल्स को पटना का आयुक्त नियुक्त कर दिया। सैमुयेल्स के पटना पहुंचने तक पटना के न्यायाधीश आर. एन. फरकुहार्सन ने आयुक्त का पदभार संभाला।
- सैमुयेल्स ने 18 अगस्त, 1857 को पटना के आयुक्त का पदभार संभालने के तुरंत बाद आरा के मजिस्ट्रेट के नाम एक आदेश जारी किया कि जब तक आरा के सरकारी भवनों की मरम्मत न हो जाए तब तक के लिए वे अपना मुख्यालय बक्सर में रखें।
वहाबी आंदोलन
- वहाबी आन्दोलन एक मुस्लिम समाज सुधार आन्दोलन था जिसके प्रवर्तक सैय्यद वहाब थे। पटना के विलायत अली और इनायत अली की इस आन्दोलन में अग्रणी भूमिका थी।
- 1822 ई. से 1868 ई. तक बिहार में चले वहाबी आन्दोलन का मुख्य केन्द्र पटना था।
- वहाबी के अनुयायी अपने आपको अहले हदीस कहते थे।
- वहाबी आंदोलन का संचालन करने हेतु पटना में चार खलीफा (आध्यात्मिक उपमुखिया)
- नियुक्त किया गया। ये चार खलीफा थे मौलवी विलायत अली, इनायत अली, शाह मोहम्मद
- हुसैन तथा फरहात हुसैन।
- मौलवी विालयत अली को बिहार में इस आंदोलन का सर्वप्रमुख नेता माना गया। लगभग 46 वर्षों (1822 से 1868) तक पटना वहाबी आंदोलन का एक प्रमुख केंद्र बना रहा।
- सैयद अहमद के आदेशानुसार उसके शिष्यों मौलवी मोहम्मद इस्माइल तथा मौलवी हैय ने ‘सीरत-ए-मुस्तकुम’ नामक प्रख्यात पुस्तिका का संपादन किया।
- बिहार में वहाबी आंदोलन का दमन अक्टूबर, 1863 के अम्बाला अभियान के पश्चात हुआ। अम्बाला मुकदमे के तहत न्यायाधीश सर एडवर्ड ने 2 मई, 1864 को अपने फैसले में सभी वहाबी अभियुक्तों को दोषी बताया। इनमें तीन प्रमुख अभियुक्तों याहिया अली, मोहम्मद जफर एवं मोहम्मद शफी को मृत्युदंड तथा शेष आठ को आजीवन कालापानी की सजा सुनाई गई।
स्वतंत्रता आंदोलन के द्वितीय चरण
- स्वतंत्रता आंदोलन के द्वितीय चरण में राष्ट्रीय चेतना के प्रसार को महत्वपूर्ण माना गया। इसके लिए राजनीतिक, सामाजिक जागरूकता बढ़ाने पर विशेष जोर दिया गया। अनेक संस्थाओं, मंचों आदि के माध्यम से इस कार्य को अंजाम दिया गया।
- 1857 ई. की क्रांति अपने लक्ष्य में सफल नहीं हो सकी लेकिन उसने राष्ट्रीय पुनर्जागरण तथा स्वतंत्र चेतना की ठोस नींव रखी।
- पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार ने नए राजनैतिक विचारों विशेषकर राष्ट्रीय चेतना के प्रसार में योगदान दिया था।
- राजा राममोहन राय और महर्षि दयानंद सरस्वती के समाज सुधार अभियानों को राष्ट्रीय पुनर्जागरण की पृष्ठभूमि तैयार करने का बड़ा श्रेय जाता है।
- राजा राममोहन राय ने जहाँ अमानुषिक कुरीतियों के विरुद्ध लोक मानस को झकझोरा, वहीं दयानंद सरस्वती ने पाखण्ड और अंधविश्वास के दलदल में धँसे मरणासन्न समाज को नवजीवन प्रदान किया।
बॉयज एसोसिएशन
- 3 मार्च, 1909 को दरभंगा राज के मैदान में ‘बॉयज एसोसिएशन’ नाम से युवाओं के संघ की स्थापना की गई। ‘बॉयज एसोसिएशन’ के संस्थापक सूर्यदेव नारायण वर्मा थे, कमलेश्वरी चरण सिन्हा उसके संस्थापक सचिव एवं बिहारी बनर्जी, दीनानाथ झा और जगदीश्वर प्रसाद झा सरकारी सचिव। इस सभा की अध्यक्षता एक बैरिस्टर, अशफाक खाँ ने की थी। इसकी स्थापना इस क्षेत्र में राजनैतिक जागरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण मोड़ की परिचायक थी।
सरस्वती अकादमी
- दरभंगा में । जनवरी, 1901 को सरस्वती अकादमी की स्थापना की गई। यह अकादमी देशप्रेम के महान आदर्शों से अनुप्रेरित था तथा अपने छात्रों को भी उसकी प्रेरणा देता था। कमलेश्वरी चरण सिन्हा इस अकादमी के प्रणेता थे और देशभक्त राजकिशोर प्रसाद उनके सुयोग्य सहकर्मी थे।
बंग–भंग आन्दोलन और बिहार
- बंगाल विभाजन के बाद ‘स्वदेशी आन्दोलन’ का बिहार के विभिन्न भागों पर भी प्रभाव पड़ा।
- सरस्वती अकादमी के सहायक प्रधानाध्यापक संतीश चंद्र चक्रवर्ती की प्रेरणा से दरभंगा में 16 अक्टूबर, 1905 को ‘राखी बंधन’ दिवस मनाया गया।
- 1906 में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी मुंगेर आए और ‘स्वदेशी आन्दोलन’ पर एक प्रभावकारी भाषण दिए। इसका लोगो के मन पर गहरा प्रभाव पड़ा।
- बैरीसाल निवासी सतीश चंद्र चक्रवर्ती प्रख्यात देशभक्त अश्विनी कुमार दत्त के शिष्य थे। बायेंज एसोसिएशन ने भी राखी बंधन दिवस बड़े ही उत्साह एवं निष्ठा के साथ मनाया। इस क्षेत्र के अनेक नौजवानों ने 6 फरवरी, 1906 को एक सभा आयोजित की तथा उसमें केवल स्वदेशी वस्तुओं का व्यवहार करने का संकल्प लिया।
बिहारी स्टूडेन्ट्स कॉन्फ्रेंस
- इसकी स्थापना 1906 ई. में हुई थी।
- तरूण स्वदेशी आंदोलन के आर्दशों से प्रभावित होकर बिहारी स्टुडेन्ट्स कॉन्फ्रेंस की स्थापना की गई।
- अपने स्थापना काल से ही इसने इस प्रान्त में राष्ट्रवादी चेतना के उन्नयन में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- इसी दिशा में महत्वपूर्ण कदम के तहत 1906 ई. में ही मुस्लिम लीग की स्थापना की गई।
बिहार प्रान्तीय सम्मेलन
- 1908 ई. में सोनपुर मेला के अवसर पर नवाब सरफराज हुसैन खाँ की अध्यक्षता में एक महत्वपूर्ण सभा हुई। इसमें बिहार प्रान्तीय कमेटी का गठन किया गया।
- बिहार प्रान्तीय सम्मेलन का पहला अधिवेशन 1908 ई. में पटना में ही हुआ। इसके अध्यक्ष सैय्यद हसन इमाम थे।
- बाबू दीपनारायण सिंह के प्रयत्नों से बिहार प्रांतीय सम्मेलन का दूसरा अधिवेशन भागलपुर में सच्चिदानंद सिन्हा की अध्यक्षता में 9-10 अप्रैल, 1909 को सम्पन्न हुआ। बिहार में हिन्दू एवं मुस्लिम सप्रदायों के इस सौहार्द पर तत्कालीन भारतीय समाचारपत्रों (‘बंगाली’, ‘इंडियन मिरर’ आदि) ने प्रशंसापूर्ण टिप्पणियां लिखीं।
- मुंगेर में 9 दिसम्बर, 1919 को 28वां बिहार प्रांतीय सम्मेलन सम्पन्न हुआ।
- सम्मेलन में एक प्रस्ताव स्वीकृत हुआ, जिसमें स्वाधीनता का प्रतिपादन किया गया था।
- सम्मेलन में विश्वनाथ मिश्र ने प्रस्ताव प्रस्तुत किया, जबकि रामकृष्ण शर्मा ने प्रस्ताव में कुछ संशोधन प्रस्तुत किया।
- इस सम्मेलन में भाग लेने के बाद सरदार पटेल ने बिहार प्रांत की यात्रा की।
- अपनी यात्रा के क्रम में सरदार पटेल छात्रों के आमंत्रण पर भागलपुर कॉलेज भी गए।
बिहार का प्रांतीय सम्मेलन (पटना 1908)
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अध्यक्ष
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सैयद हसन इमाम
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उपाध्यक्ष
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मजहरूल हक, नवाब सरफराज हुसैन खां, राय परमेश्वर नारायण मेहता बहादुर, बाबू कृष्ण सहाय
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कोषाध्यक्ष
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सच्चिदानंद सिन्हा
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सचिव
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सैयद नजमुल होदा, दीपनारायण सिंह, परमेश्वर लाल।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और बिहार
- भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन (1910) के एक प्रस्ताव में “नगरपालिकाओं, जिला वाडों या अन्य स्थानीय निकायों में पृथक निर्वाचन प्रणाली (साम्प्रदायिक) के सिद्धांत लागू करने” का विरोध किया गया था। बिहार के मजहरूल हक ने बड़े ही तार्किक ढंग से मोहम्मद अली जिन्ना के प्रस्ताव का जोरदार समर्थन किया था और सैय्यद हसन इमाम ने इस प्रस्ताव का अनुमोदन किया था।
- कांग्रेस के इलाहाबाद अधिवेशन में बिहार के कुल 39 प्रतिनिधि भाग लेने गए थे।
- इनमें से ब्रजकिशोर प्रसाद तथा द्वारकानाथ ने न्यायिक सुधारों एवं स्वदेशी आंदोलन संबंधी प्रस्तावों का क्रमशः अनुमोदन एवं समर्थन किया।
स्वतंत्रता से पूर्व बिहार में आयोजित कांग्रेस के अधिवेशन
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वर्ष
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स्थान
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अध्यक्ष
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1. 1912 (27वां अधिवेशन)
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बांकीपुर (पटना)
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रंगनाथ माधोलकर
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2 1922 (38वां अधिवेशन)
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गया
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देशबन्धु चितरंजन दास
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3. 1940 (53वां अधिवेशन)
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रामगढ़ (झारखण्ड)
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मौलाना अबुल कलाम आजाद
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पटना विश्वविद्यालय विधेयक
- तत्कालीन शिक्षा सदस्य सर शंकरण नायर ने केंद्रीय विधायिका परिषद में पटना विश्वविद्यालय विधेयक सितम्बर, 1916 में प्रस्तुत किया।
- बिहार प्रांतीय सम्मेलन का एक विशेष अधिवेशन नवम्बर, 1916 में बांकीपुर (पटना) में किया गया, जिसमें इस विधेयक के प्रतिक्रियावादी स्वरूप पर प्रबल विरोध प्रकट किया गया। ‘एक्सप्रेस’ और ‘बिहारी‘ जैसे अखबारों ने इस प्रतिक्रिया के समर्थन में विशेष टिप्पणियां लिखी।
- अंततः अनेक संशोधनों के बाद पटना विश्वविद्यालय विधेयक पारित हुआ तथा 1917 में पटना विश्वविद्यालय की स्थापना हुई।
- वर्तमान बिहार प्रांतीय संघ के संयुक्त सचिव राजेन्द्र प्रसाद ने भी अपना विरोध जाहिर की थी।
होमरूल आन्दोलन और बिहार
- 16 दिसम्बर, 1916 को बांकीपुर में एक सभा में होमरूल लीग स्थापित करने का निर्णय लिया गया।
- बिहार में इसके अध्यक्ष मजहरूल हक, उपाध्यक्ष सरफराज हुसैन खाँ और पूर्णेन्द्र नारायण सिन्हा, सचिव चन्द्रवंशी सहाय और वैद्यनाथ नारायण सिंह थे।
- होमरूल आन्दोलन को बिहार में गति देने के उद्देश्य से श्रीमती एनी बेसेन्ट ने 18 अप्रैल, और 25 जुलाई, 1918 को पटना की यात्रा की। यात्रा के क्रम में एनी बेसेन्ट, हसन इमाम और सच्चिदानन्द सिन्हा से भी मिली।
- महात्मा गाँधी के एक सहकर्मी श्री जनकधारी प्रसाद ने मुजफ्फरपुर में कुछ स्थानीय वकीलों एवं व्यावसायियों के सहयोग से होमरूल लीग की स्थापना की।
- बालमुकुन्द वाजपेयी द्वारा लिखित स्वराज कथा नामक पुस्तिका, बिहार-उड़ीसा, संयुक्त प्रांत एवं पंजाब के सरकारों द्वारा जब्त कर ली गई थी।
- पटना होमरूल लीग के सहकारी सचिव राय परनचंद ने विजयादशमी के दिन भारत माता की पूजा आरंभ करने का विचार प्रस्तुत किया।
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