सविनय अवज्ञा आन्दोलन और बिहार
- सविनय अवज्ञा आंदोलन का प्रस्ताव पंडित जवाहरलाल नेहरु की अध्यक्षता में दिसम्बर, 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पारित हुआ।
- 26 जनवरी, 1930 को संपूर्ण बिहार में स्वाधीन्ता दिवस पूरे उत्साह से मनाया गया।
- 12 मार्च, 1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से अपने 78 स्वयंसेवकों के साथ दांडी यात्रा की शुरूआत की जो 24 दिन बाद 5 अप्रैल, 1930 को दाण्डी पहुंच कर नमक कानून तोड़ने के साथ समाप्त हुई। इसी दिन गांधीजी ने 6 अप्रैल, 1930 से देश भर में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरु करने का ऐलान किया।
- गांधीजी के दांडी मार्च में 78 स्वयंसेवकों में बिहार के एकमात्र प्रतिनिधि गिरिवरधारी चौधरी शामिल थे।
- बिहार में नमक आंदोलन
- बिहार में सविनय अवज्ञा आन्दोलन सर्वप्रथम 15 अप्रैल को चम्पारण और सारण जिलों में नमकीन मिट्टी से नमक बनाकर आरम्भ किया गया।
- बिहार में जून, 1930 के अंत तक नमक कानून भंग करने का कार्यक्रम चलाया गया क्योंकि वर्षा शुरू हो जाने पर नमक बनाने योग्य मिट्टी मिलना संभव नहीं था।
- सारण जिला में वरेजा और गोरियाकोठी को नमक कानून भंग करने के लिए चुना गया।
- सारण जिला में नमक सत्याग्रह का नेतृत्व श्री नारायण प्रसाद सिंह, भरत मिश्र, गिरीश तिवारी और बबन सिंह ने किया।
बिहार में नमक आन्दोलन
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स्थान
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नेतृत्वकर्ता
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चम्पारण
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बिपिन बिहारी वर्मा
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बरेजा
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गिरिश तिवारी
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गोरिया कोठी
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चन्द्रिका सिंह
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हाजीपुर
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भरत मित्र
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पटना
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अम्बिका कांत सिंह
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मुंगेर
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श्री कृष्ण सिंह
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लखीसराय
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नन्द कुमार सिंह
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दरभंगा
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सत्यनारायण सिंह
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- बिहार में नमक सत्याग्रह का प्रसार मुजफ्फरपुर, पटना, शाहाबाद आदि क्षेत्रों में भी हुआ।
- मुजफ्फरपुर में इस सत्याग्रह का नेतृत्व रामदयालु सिंह, जनकधारी प्रसाद और ठाकुर रामनन्दन सिंह ने किया।
- पटना में 16 अप्रैल, 1930 को नमक सत्याग्रह शुरू हुआ। यहां नखासपिंड नामक स्थान को नमक कानून भंग करने के लिए चुना गया था। पटना में इस आंदोलन का नेतृत्व जगतनारायण लाल ने किया।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कार्यक्रम
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नमक कानून का उल्लंघन
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करबंदी आन्दोलन
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महिलाओं द्वारा शराब, अफीम एवं विदेशी कपड़ा दुकानों पर धरना
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विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार
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सरकारी सेवाओं, अदालतों, शिक्षा केन्द्रों एवं उपाधियों का बहिष्कार
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- पटना में अम्बिका कांत सिंह और जशुलाल गुप्त को गिरफ्तार कर बांकीपुर जेल भेज दिया गया।
- दरभंगा जिला में श्री सत्यनारायण सिंह के नेतृत्व में 17 अप्रैल, 1930 को नमक कानून भंग किया गया। सत्यनारायण सिंह और रामनन्दन मिश्र को दरभंगा में गिरफ्तार किया गया।
- मुंगेर जिला में श्री कृष्ण सिंह के नेतृत्व में 23 अप्रैल, 1930 को गोगरी में नमक कानून भंग किया गया। श्री कृष्ण सिंह को बेगूसराय में गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया।
नखासपिंड आंदोलन
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नखासपिंड नामक स्थान पटना जिला में है जिसे नमक कानून भंग करने के लिए चुना गया था। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन के दिनों में चर्चित था।
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पटना में 16 से 21 अप्रैल, 1930 के बीच ‘नखासपिंड चलो’ का नारा गूंजा करता था। यहां के लोगों ने महात्मा गांधी के आह्वान पर नमक सत्याग्रह चलाते रहने का दृढ़ संकल्प लिया और पुलिस के जुल्म के आगे कभी नहीं झुके।
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16 अप्रैल, 1930 को सर्चलाइट के मैनेजर और पटना कमिटी के सचिव अम्बिका कांत सिंह के नेतृत्व में लोगों का एक जत्था पटना के नखासपिंड नामक स्थान की ओर नमक कानून भंग करने के लिए चला। परंतु पुलिस द्वारा इसे रास्ते में रोक कर कुछ लोगों को गिरफ्तार भी कर लिया गया। इसी बीच दूसरी तरफ से कुछ जत्थे नखासपिंड पहुंच गए और नमक बनाकर नमक कानून भंग किया।
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इस नमक आंदोलन में बिहार के अनेक प्रमुख नेताओं ने भाग लिया था, जिसमें प्रमुख हैं- प्रो, अब्दुल बारी, राजेन्द्र प्रसाद, आचार्य जे.बी. कृपलानी आदि।
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- नन्दकुमार सिंह के नेतृत्व में 20 अप्रैल को लखीसराय के निकट रजौन ग्राम में नमक बनाया गया।
- 22 अप्रैल, 1930 को बड़हिया में तेजा सिंह के मन्दिर में नमक बनाने का केन्द्र खोला गया।
- शाह मुहम्मद जुबैर और नेमधारी सिंह के नेतृत्व में बड़हिया में नमक कानून भंग किया गया।
- भागलपुर के वीहपुर थाना में गौरीपुर गाँव में महादेव शरीफ और दीपनारायण अग्रवाल के नेतृत्व में 20 अप्रैल को नमक कानून भंग किया गया।
वीहपुर का दमनचक्र
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भागलपुर जिला के वोहपुर में सत्याग्रही स्वंय सेवकों पर पुलिस का दमनचक्क बड़ी कठोरता एवं निर्ममता के साथ चला। राजेन्द्र प्रसाद अपने पटना सहयोगियों तथा प्रो अब्दुल बारी, बलदेव सहाय, ज्ञान साहा, मुरली मनोहर प्रसाद और कुछ अन्य लोगों के साथ 9 जून, 1930 के वीहपुर पहुंचे तथा एक सभा को संबोधित किया।
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सभा समाप्त होने के बाद कांग्रेस कार्यालय की तरफ जा रहे जुलूस पर पुलिस ने लावियां चलानी शुरू कर दी, जिसमें राजेन्द्र प्रसाद सहित गणमान्य नेता घायल हो गए। पुलिस अत्याचार के विरूद्ध बिहार कौंसिल के 4 सदस्यों अनंत प्रसाद, कमलेश्वरी सहाय, श्यामनारायण सिंह शर्मा और नवलकिशोर प्रसाद सिंह ने सदस्यता त्याग दी।
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भागलपुर के पब्लिक प्रॉसिक्यूटर राय बहादुर सुधांशु भूषण राय ने बीहपुर और सबौर में पुलिस कार्रवाइयों को अवैध करार देते हुए 4 जुलाई, 1930 को अपना त्यागपत्र दे दिया। राय बहादुर द्वारकानाथ ने भी राजेन्द्र प्रसाद और प्रो. अब्दुल बारी पर लाठी प्रहार के विरोध में बिहार विधान परिषद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया।
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- बिहार में सर्वमान्य राष्ट्रीय नेता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को 5 जुलाई, 1930 को छपरा में गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल भेज दिया गया। अपने गिरफ्तारी के बाद डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने भागलपुर के दीपनारायण को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्यक्रम करबंदी आन्दोलन था।
- बिहार में चौकीदारी करबंदी अभियान शुरू किया जा चुका था।
- सारण, चम्पारण, शाहाबाद, पूर्णिया, मुंगेर, पटना तथा अन्य जिलों के लोगों ने चौकीदारी कर देना बंद कर दिया।
- कांग्रेस कार्यकारिणी ने 1 अगस्त, 1930 को बम्बई की अपनी बैठक में बिहार की जनता को चौकीदारी करबंदी अभियान शुरू करने पर बधाई दी।
- 12 अगस्त, 1930 को श्रीमती चन्द्रावती देवी ने गया में एक सभा में भाषण करते हुए चौकदारी टैक्स नहीं देने पर बल दिया।
- मई, 1930 में पटना में सर अली इमाम की अध्यक्षता में एक स्वदेशी लीग की स्थापना की गई।
- स्वदेशी लीग में सच्चिदानंद सिन्हा एवं के.बी. दत्त को उपाध्यक्ष, हसन इमाम को मुख्य सचिव एवं बलदेव सहाय को संयुक्त सचिव बनाया गया।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन आरंभ करते समय महात्मा गाँधी ने भारत की महिलाओं से विदेशी वस्त्र एवं नशीले पदार्थों के बहिष्कार संबंधी कार्यों में भाग लेकर स्वतंत्रता आंदोलन में सहयोग देने की अपील की थी।
- पटना में विदेशी वस्त्र बहिष्कार की सफलता का मुख्य श्रेय अधिकांश महिलाओं का था जिनमें प्रमुख थी श्रीमती हसन इमाम एवं श्रीमती विन्ध्यवासिनी देवी।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान बिहार में पहली बार दो महिलाएं राजनैतिक अभियोग में गिरफ्तार की गई, ये थीं श्रीमती सरस्वती देवी और श्रीमती साधना देवी।
- सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 14 दिसम्बर, 1930 को कारावास की अवधि पूरी करके हजारीबाग जेल से रिहा हुए।
- 5 मई, 1931 को गाँधी-इरविन समझौता के अन्तर्गत सविनय अवज्ञा आन्दोलन को स्थगित कर दिया गया तथा दूसरी बार यह आन्दोलन 3 जनवरी, 1932 को प्रारम्भ हुआ।
- 23 मार्च, 1931 को भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु को फांसी दिए जाने के विरोध में पटना में 26 मार्च को पूरी हड्ताल रही। विरोध सभा में श्री कृष्ण सिंह एवं जगत नारायण लाल ने उग्र भाषण दिया।
- मुंगेर के गोगरी थाना में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान 14 महिलाओं को धरना देने और जुलूस निकालने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया जिनमें श्रीमती अनूप देवी, श्रीमती सुशीला देवी, श्रीमती सरस्वती देवी प्रमुख थीं।
- मुंगेर के तारापुर में क्रांतिकारियों द्वारा ‘थाना भवन’ पर राष्ट्रीय झंडा फहराने का प्रयत्न 15 फरवरी, 1932 को किया गया। यहां एकत्र लोगों पर पुलिस की गोली चलाने से 34 लोग मारे गए।
- सविनय अवज्ञा आन्दोलन के दौरान छपरा में कारागार के कैदियों ने नंगी हड़ताल कर दिया।
- गाँधीजी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन को 7 अप्रैल, 1934 को स्थगित कर दिया था।
- महात्मा गाँधी एवं कांग्रेस कार्यकारिणी के सदस्यों की रिहाई पर स्वाधीनता दिवस मनाया गया जिसके तहत पटना (भंवरपोखर पार्क) में अनुग्रह नारायण सिंह ने राष्ट्रीय झंडा फहराया।
- भूकम्प पीड़ितों की सहायता के लिए बिहार कंन्द्रीय रिलीफ कमेटी नामक एक गैर-सरकारी संस्था की स्थापना हुई। इसके अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सचिव बलदेव प्रसाद थे।
- 11 मार्च, 1934 को गाँधीजी पुनः बिहार यात्रा पर पटना पहुँचे। अपनी इस बिहार यात्रा में उन्होंने मोतिहारी, छपरा, सोनपुर, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, दरभंगा, भागलपुर, मुंगेर आदि स्थानों पर गए और लोगों से भूकम्प पीड़ितों की सहायता की अपील की।
- गाँधीजी का बिहार में हरिजन यात्रा 1934 ई. में दो बार हुआ था। गाँधीजी की 1934 ई. को बिहार यात्रा मानवीय कार्य तथा सामाजिक सुधार के अतिरिक्त राजनैतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण थी।
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