प्राचीन बिहार में धर्म सुधार आन्दोलन
बौद्ध धर्म
बौद्ध धर्म के संस्थापक गौतम बुद्ध क्षत्रिय कुल के थे। ब्राह्मणों के रूढ़िवादी धर्म के विरूद्ध आर्थिक और सामाजिक रूप से गिरे हुए नीचे के दोनों वर्णों ने भी अपना भरपूर सहयोग देकर समानता पर आधारित एक सुधारवादी विचारधारा को जन्म दिया। इस प्रकार बौद्ध धर्म ब्राह्मण धर्म के खिलाफ एक सुधारात्मक आंदोलन था। मानवीय सरोकार वाले इस बौद्ध धर्म का शांति और अहिंसा मूल धर्म था। इसने वैश्यों, शूद्रों और स्त्रियों को समाज में स्तर उठाने में मदद की।
- बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध (सिद्धार्थ) का जन्म कपिलवस्तु के लुंबिनी (अब नेपाल) नामक स्थान में 563 ई.पू. में शाक्य क्षत्रिय कुल में हुआ था। बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन एवं माता का नाम महामाया था।
- जन्म के कुछ दिनों के बाद ही इनके माता का देहान्त हो जाने के बाद इनका पालन-पोषण सौतेली माँ प्रजापति गौतमी ने की।
बौद्ध धर्म के प्रतीक
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घटना
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चिह्न/प्रतीक
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जन्म
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कमल व साँड़
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गृह त्याग
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घोड़ा
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ज्ञान
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पीपल (बोधिवृक्ष)
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निर्वाण
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पद चिह्न
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मृत्यु
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स्तूप
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- महात्मा बुद्ध की पत्नी का नाम यशोधरा तथा पुत्र का नाम राहुल था। सिद्धार्थ जब कपिलवस्तु की सैर पर निकले तो वे निम्न चार दृश्यों को देख विचलित हो गए – (1) बूढ़ा व्यक्ति, (2) बीमार व्यक्ति, (3) शव यात्रा और (4) संन्यासी
- गौतम बुद्ध का प्रिय घोड़ा कण्ठक था और उनका प्रिय सारथी छन्न था।
बुद्ध से संबंधित महत्वपूर्ण घटनाएं एवं उनके प्रतीक
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हाथी
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माता के गर्भ में आना
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कमल
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बुद्ध का जन्म
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घोड़ा
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गृह त्याग
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बोधिवृक्ष
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ज्ञान प्राप्ति
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धर्मचक्र
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प्रथम उपदेश
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भूमिस्पर्श
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इंद्रियों पर विजय
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एक करवट सोना
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महापरिनिर्वाण
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- सांसारिक सुख-दुख से मोहभंग होने के बाद सिद्धार्थ ने 29 वर्ष की अवस्था में महाभिनिष्क्रमण (गृहत्याग) किया। गृह त्याग के उपरान्त वे सर्वप्रथम वैशाली के नजदीक सांख्यदर्शन के आचार्य तथा अपनी साधना शक्ति के लिए विख्यात अलारकलाम के आश्रम गए ।
- अलारकलाम से उन्होंने की कठिन तपस्या के बाद 35 वर्ष की आयु में बैशाख पूर्णिमा को सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ। ऐसा माना जाता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन ही सुजाता नामक स्त्री के द्वारा भेंट में दिए सांख्यदर्शन की शिक्षा ग्रहण की। (अलारकलाम ही बुद्ध के प्रथम गुरु थे)। तत्पश्चात् वे राजगृह के रूद्रक रामपुत्र से मिले और वहां से ज्ञान की खोज में उरुवेला (बोधगया) पहुँचे।
- बोधगया में निरंजना ( फल्गु नदी के किनारे उरुवेला वन में एक पीपल वृक्ष के नीचे 6 वर्ष गए खीर खाने के उपरांत सिद्धार्थ गौतम को ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे तथागत बुद्ध बन गए।
- ज्ञान साधना वाले पीपल वृक्ष को बोधिवृक्ष और उस स्थान को बोधगया कहा गया है। ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्हें बुद्ध के रूप में जाना जाने लगा।
- ज्ञान / ध्यान साधना में बुद्ध ने विपश्यना (मुद्रा) को अपनाया था।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने ऋषिपतन (सारनाथ) में अपना पहला उपदेश दिया जिसे धर्मचक्रप्रवर्तन के नाम से जाना जाता है।
- ज्ञान प्राप्ति के बाद बुद्ध ने 40 वर्षों तक मगध, वैशाली, सारनाथ आदि क्षेत्रों में बौद्ध धर्म का प्रचार किया।
- बुद्ध ने अपने जीवन के सर्वाधिक उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिए एवं मगध को प्रचार का केन्द्र बनाया।
बुद्ध कालीन गणराज्य
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1.
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कपिलवस्तु
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शाक्य
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2.
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सुमसुमार पर्वत
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भग्ग
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3.
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केसपुत्र
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कालाम
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4.
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रामग्राम
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कोलिय
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5.
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कुशीनारा
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मल्ल
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6.
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पावा
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मल्ल
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7.
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पिप्पलीवन
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मोरिय
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8.
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अल्लकप्प
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बुलि
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9.
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वैशाली
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लिच्छवि
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10.
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मिथिला
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विदेह
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- रत्नगिरि (राजगृह) में महात्मा बुद्ध का प्रिय निवास था जो 1 गृद्धकूट नाम से प्रसिद्ध था।
- गौतम बुद्ध के राजा शिष्य / अनुयायी थे-बिम्बिसार, अजातशत्रु, प्रसेनजित तथा उदयिना।
- महात्मा बुद्ध ने बोधगया में तपुस्स एवं मल्लिक नाम के दो सौदागरों (बंजारे) को अपना शिष्य बनाया। ये दोनों शुद्र थे। इस तरह बुद्ध ने उन दो शूद्रों को बौद्ध धर्म का सर्वप्रथम अनुयायी बनाया।
- बौद्ध धर्म अनात्मवादी है, इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है। यह पुनर्जन्म में विश्वास करता है जबकि वर्ण 9. व्यवस्था एवं जाति प्रथा का विरोध करता है।
- बुद्ध के जन्म व मृत्यु की तिथि चीनी पराम्परा के कैन्टेन अभिलेख के आधार पर निश्चित की गई है।
- बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी पालि भाषा में रचित त्रिपिटक से प्राप्त होती है।
- बौद्ध धर्म में त्रिरत्न हैं- बुद्ध धम्म एवं संघ |
- बौद्ध धर्म के उपदेश पालि भाषा में दिए गए हैं।
- पावा (कुशीनगर) के समीप चंद नामक व्यक्ति के द्वारा खिलाए गए सुकरमादव (सूअर का मांस) से महात्मा बुद्ध उदर विकार से पीड़ित हुए और वहीं पर उनकी 80 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा के दिन 483 ईपू में मृत्यु (महापरिनिर्वाण ) हो गई। बुद्ध की मृत्यु को महापरिनिर्वाण कहा गया।
- महापरिनिर्वाण के उपरांत बुद्ध के अवशेष /अस्थियां आठ भागों में विभाजित कर दिए गए- 1. कुशीनगर 2. वैशाली 3. कपिलवस्तु 4. पावागढ़ 5. अल्लकल्प 6. रामग्राम 7. राजगृह 8 वेद्वीप।
महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम निम्नलिखित चार श्रेष्ठ (आर्य) सत्य बताए-
(i) विश्व दुखों से परिपूर्ण है (दु:ख ) ।
(ii) अभिलाषाएँ दुःख का कारण हैं (दुःख समुदाय) ।
(iii) अभिलाषाओं को विजित कर सभी दुखों से छुटकारा हो सकता है (दुःख निरोध) ।
(iv) दु:ख निवारण के मार्ग हैं (दु:ख निरोधगामिनी प्रतिपदा ) ।
- भगवान बुद्ध के अनुसार अष्टांगिक मार्ग द्वारा ही दुःख से मुक्ति संभव है। संसार में दुःख ही दुःख है और दुःख के निदान के लिए अष्टांगिक मार्ग को अपनाना चाहिए।
- अष्टांगिक मार्ग हैं- सम्यक् दृष्टि, सम्यक् संकल्प, सम्यक् वाणी, सम्यक् कर्मान्त, सम्यक् आजीव, सम्यक् व्यायाम, सम्यक् स्मृति और सम्यक् समाधि ।
- बुद्ध के अनुसार इन अष्टांगिक मार्गों के पालन करने से ही मानव इस संसार की तृष्णा से मुक्त होकर निर्वाण (मोक्ष) प्राप्त कर सकता है।
- बुद्ध का सिद्धांत मध्यम मार्गी था। उनका मानना था कि “वीणा के तार को इतना ढीला मत रखो कि कोई सुर ही न निकले और उसे इतना भी मत कसो कि वे टूट ही जाएं।”
- बुद्ध ने नैतिक आचरण को शुद्ध और समुन्नत करने पर विशेष जोर दिया और इसके लिए दस शील के अनुपालन पर बल दिया। ये दस शील हैं- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, नृत्य-गान का त्याग, शृंगार प्रसाधनों का त्याग, समय पर भोजन करना, कोमल शय्या का व्यवहार नहीं करना एवं कंचन कामिनी का त्याग। इनमें प्रथम पांच गृहस्थों के लिए आवश्यक थे, परंतु संघ में प्रवेश करने वाले भिक्षुओं के लिए दसों शील का पालन करना अनिवार्य था।
बिहार और बौद्ध साहित्य
- बौद्ध ग्रंथों में त्रिपिटक विनयपिटक, सुतपिटक तथा अभिधम्मपिटक महत्वपूर्ण हैं जिनमें अनेक ऐतिहासिक सामग्री उपलब्ध हैं।
- तीनों पिटकों की भाषा पालि हैं। सुतपिटक में बुद्ध के धार्मिक सिद्धांतों को तर्क और संवाद के रूप में संकलित किया गया है। विनयपिटक (शाब्दिक अर्थ “अनुशासन की टोकरी ” ) में संघ के भिक्षु एवं भिक्षुणी के लिए बनाए गए नियमों का संग्रह किया गया है। अभिधम्मपिटक में बौद्ध मतों की दार्शनिक व्याख्या की गई है।
- निकाय तथा जातक में बौद्ध धर्म के सिद्धान्त तथा कहानियों का संग्रह है। जातकों में के पूर्व जन्म की कहानी है। बुद्ध
- दीपवंश तथा महावंश नामक पालि ग्रंथों से मौर्यकालीन इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
- नागसेन द्वारा रचित मिलिन्दपन्हो से हिन्द यवन शासक मिनाण्डर के विषय में जानकारी मिलती है। हीनयान का प्रमुख ग्रंथ कथावस्तु से महात्मा बुद्ध के जीवन चरित्र के अनेक कथानकों का वर्णन मिलता है।
- दिव्यावदान से अशोक के उत्तराधिकारियों से लेकर पुष्यमित्र शुंग तक के शासकों के विषय में जानकारी मिलती है।
- फाह्यान, सुंगयुंग, ह्वेनसांग तथा इत्सिंग प्रसिद्ध चीनी यात्री थे। चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के दरबार में आया था।
बौद्ध धर्म के परवर्ती धार्मिक संप्रदाय
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संप्रदाय
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संस्थापक
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आजीवक
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मक्खलिगोशाल
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घोर अक्रियवादी
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पूरन कश्यप
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भौतिकवादी
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अजित केस कम्बलिन
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संदेहवादी
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संजय वेलट्ठपुत्र
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नित्यवादी
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पकुधकच्चायन
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- चीनी यात्री हवेनसांग राजा हर्षवर्धन के शासनकाल में आया था तथा इसने 16 वर्षों तक निवास कर विभिन्न स्थानों की यात्रा की।
- ह्वेनसांग ने छः वर्षों तक नालंदा विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की थी। इसके यात्रा वृतांत को सि-यू की नाम से जाना जाता है जिसमें 139 देशों का विवरण मिलता है।
- इत्सिंग सातवीं शताब्दी के अन्त में भारत आया था। इसके विवरण से ज्ञात होता है कि यह भारत में बौद्ध तीर्थस्थानों की यात्रा तथा बौद्ध धर्म के बारे में जानकारी प्राप्त करने आया था।
- ‘द लाइट ऑफ एशिया’ ग्रंथ के रचनाकार सर एडविन अर्नाल्ड ने महात्मा बुद्ध को ‘द लाइट ऑफ एशिया’ की उपाधि से अलंकृत किया है।
बौद्ध संगीतियाँ
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प्रथम
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द्वितीय
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स्थान
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राजगृह (सप्तपर्णी गुफा)
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स्थान
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वैशाली
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समय
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483 ई.पू.
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समय
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383 ई.पू.
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अध्यक्ष
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महाकस्सप
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अध्यक्ष
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सब्बकामी (सर्वकामी)
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शासनकाल
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अजातशत्रु (हर्यक वंश)
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शासनकाल
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कालाशोक ( शिशुनाग वंश)
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परिणाम
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बुद्ध के उपदेशों को दो पिटकों -सुत पिटक तथा विनय पिटक में संकलित करना
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परिणाम
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बौद्ध धर्म का स्थविर एवं महासांघिक दो भागों में विभाजन
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तृतीय
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चतुर्थ (बिहार से बाहर )
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स्थान
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पाटलिपुत्र
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स्थान
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कश्मीर के कुण्डलवन
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समय
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251 ई.पू.
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समय
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लगभग ईसा की प्रथम शताब्दी
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अध्यक्ष
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मोग्गलिपुत्त तिस्स
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अध्यक्ष
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वसुमित्र एवं अश्वघोष (उपाध्यक्ष)
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शासनकाल
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अशोक (मौर्यवंश)
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शासनकाल
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कनिष्क (कुषाण वंश)
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परिणाम
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संघ भेद के विरुद्ध कठोर नियमों का प्रतिपादन एवं तीसरा पिटक अभिधम्म पिटक का संकलन
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परिणाम
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बौद्ध धर्म का दो सम्प्रदायों हीनयान तथा महायान में विभाजन
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महायान एवं हीनयान में अंतर
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महायान
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हीनयान
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1.
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मानव जाति के कल्याण पर आधारित धर्म, परोपकार एवं निःस्वार्थ सेवा परम लक्ष्य था
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व्यक्तिवादी धर्म की अवधारणा को मानते थे, स्वार्थपरता अत्यधिक था
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2.
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बुद्ध एक देवता के रूप में स्वीकार्य
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बुद्ध एक पवित्र विचारक एवं महान व्यक्ति के रूप में स्वीकार्य
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3.
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बोधिसत्व की अवधारणा परम आदर्श था
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अर्हत् पद की प्राप्ति परम आदर्श था
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4.
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मूर्तिपूजा के प्रबल पक्षधर
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मूर्तिपूजा के प्रबल विरोधी
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5.
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अनेक भिक्षुओं के मंदिर बनाए
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किसी मन्दिर का निर्माण नहीं किया
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66.
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धार्मिक भाषा संस्कृत
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धार्मिक भाषा पालि
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77.
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विश्वास पर आधारित सम्प्रदाय
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तर्क पर आधारित सम्प्रदाय
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8.
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सर्वाधिक महत्व गृहस्थ जीवन को दिया है
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सर्वाधिक महत्व संन्यास जीवन को दिया है
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9.
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जीवन का अंतिम लक्ष्य स्वर्ग प्राप्ति था
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जीवन का अंतिम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति था
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10.
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जापान, कोरिया, चीन, मंगोलिया, तिब्बत में प्रसारित
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जावा, श्रीलंका, म्यांमार में प्रसारित
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नोट: लिंग पूजा का प्रमाण सर्वप्रथम मत्स्यपुराण में मिलता है।
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- कालांतर में महायान संप्रदाय दो भागों में बाटा गया- 1. शून्यवाद (माध्यमिक) तथा 2. विज्ञानवाद (योगाचार) शून्यवाद के प्रवर्तक नागार्जुन हैं, जबकि विज्ञानवाद की स्थापना मैत्रेयनाथ ने की थी। महायान सम्प्रदाय के लोग तिब्बत, चीन, कोरिया, मंगोलिया और जापान में हैं।
- हीनयान सम्प्रदाय के लोग श्रीलंका, म्यांमार और जावा आदि देशों में फैले हुए हैं।
- समय के साथ हीनयान कई मतों में विभाजित होता गया। माना जाता है कि इसके कुल 18 मत थे जिनमें से प्रमुख तीन हैं-थेरवाद (स्थविरवाद), सर्वस्तित्ववाद ( वैभाषिक) और सौतांत्रिक। मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा रचित कथावत्थ/कथावस्तु हीनयान का एक प्रमुख ग्रंथ है।
- बौद्ध दार्शनिकों के स्वतंत्र चिंतन ने दर्शन के क्षेत्र में शून्यवाद, विज्ञानवाद, मायावाद आदि नवीन विचारधाराओं को जन्म दिया।
- बौद्ध धर्म की एक और शाखा वज्रयान प्रचलित हुई जो तंत्र-मंत्र से युक्त थी, जिसका प्रमुख केन्द्र भागलपुर जिला (बिहार) में स्थित विक्रमशिला विश्वविद्यालय था ।
- संघ की सभा में प्रस्ताव का पाठ होता था। प्रस्ताव पाठ को अनुसावन कहते हैं। सभा की वैधता के लिए न्यूनतम संख्या (कोरम) 20 थी।
- संघ में प्रविष्ट होने को उपसम्पदा कहा जाता था।
- बौद्ध संघ का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित था।
- बौद्धों के लिए महीने के 4 दिन अमावस्या, पूर्णिमा और दो चतुर्थी दिवस उपवास के दिन होते थे।
- बुद्ध के पंचशील सिद्धान्त का वर्णन छान्दोग्य उपनिषद् में मिलता है।
जैन धर्म
ऋग्वैदिक कालीन समाज जो कर्म आधारित चार वर्णों में विभाजित था वह आगे चलकर ब्राह्मण काल में जन्म आधारित जाति व्यवस्था का मूलाधार हो गया और इसमें ब्राह्मणसर्वश्रे एवं प्रभुत्वशाली बन गए। इसके परिणामस्वरूप ब्राह्मणों के वैचारिक प्रभुत्व के खिलाफ क्षत्रियों सहित नीचे के दोनों वर्णों ने जैन धर्म (महावीर स्वामी) जैसे सुधारवादी आंदोलन को जन्म दिया। इस धर्म में सत्य, अहिंसा और सेवा पर विशेष बल दिया गया। इसके प्रथम तीर्थंकर आदिनाथ /ऋषभदेव हुए और इसके बाद 23वें तीर्थकर पार्श्वनाथ हुए जबकि अंतिम और सबसे महान 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी जैन धर्म के वास्तविक संस्थापक बनें।
- जैन धर्म की मूल उत्पति का ज्ञान स्पष्ट नहीं है। लेकिन जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को इस धर्म का प्रवर्तक माना जाता है।
- जैन परम्परा के अनुसार इस धर्म में 24 तीर्थंकर हुए।
- दो जैन तीर्थकरों ऋषभदेव एवं अरिष्टनेमि के नामों का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।
- जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ थे, जो काशी के इक्ष्वाकु वंशीय राजा अश्वसेन के पुत्र थे। इन्होंने 30 वर्ष की अवस्था में गृह त्याग किया। इन्होंने श्री सम्मेद शिखर (पारसनाथ पर्वत, झारखण्ड) पर कठोर तपस्या करके मोक्ष प्राप्त किया था। इसलिए यह क्षेत्र ‘सिद्धक्षेत्र’ कहलाता है और जैन धर्म में इसे ‘तीर्थराज’ कहा गया है। इनके अनुयायियों को निग्रंथ कहा गया है।
प्रमुख जैन तीर्थंकर एवं उनके प्रतीक
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तीर्थंकर
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प्रतीक
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ऋषभदेव (प्रथम)
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वृषभ
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अजितनाथ (द्वितीय)
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हाथी
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सम्भवनाथ (तृतीय)
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घोड़ा
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शांतिनाथ (सोलहवें)
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हिरण
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अरिष्टनेमि (बाईसवें)
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शंख
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पार्श्वनाथ (तेईसवें)
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सर्पफण
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महावीर स्वामी (चौबीसवें)
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सिंह
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जैन धर्म के अंतिम एवं चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- महावीर का जन्म 540 ई.पू. में वैशाली के कुंडग्राम में क्षत्रिय ज्ञातृक कुल के प्रधान सिद्धार्थ के यहाँ हुआ था।
- महावीर की माता का नाम त्रिशला था जो लिच्छिवी राजकुमारी थी तथा उनकी पत्नी का नाम यशोदा और उनकी पुत्री का नाम प्रियदर्शना • थी। जमालि उनका दामाद और प्रथम शिष्य था ।
- 30 वर्ष की अवस्था में महावीर ने गृहत्याग किया।
- 12 वर्ष तक लगातार कठोर तपस्या एवं साधना के बाद 42 वर्ष की आयु में महावीर को जुम्भिकग्राम (जमुई) के समीप ऋजुपालिका नदी (किउल नदी) के किनारे एक साल वृक्ष के नीचे कैवल्य (सर्वोच्च ज्ञान) प्राप्त हुआ।
- भगवान महावीर ने अपना पहला प्रवचन / उपदेश राजगीर के विपुलगिरि स्थान पर दिया था।
- चम्पा नरेश दधिवाहन की पुत्री चन्दना चन्दनबाला पहली जैन भिक्षुणी थी।
- उनकी मृत्यु पावापुरी (राजगीर) में 72 वर्ष की उम्र में 468 ई.पू. में हुई।
- महावीर ने जैन धर्म के प्रचार के लिए प्राकृत भाषा का प्रयोग किया, जबकि इस धर्म के ग्रन्थ अर्धमागधी भाषा में लिखे गए। बाद में संस्कृत का प्रयोग प्रमुखता से हुआ तथा जैन धर्म की प्रमुख पुस्तक ‘कल्पसूत्र’ संस्कृत में लिखी गई।
- पाश्र्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महावत-सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह तथा अस्तेय है।
- बौद्ध साहित्य में महावीर को निगण्ठ नाथपुत्र कहा गया है।
- जैन धर्मानुसार यह संसार 6 द्रव्यों जोव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल से निर्मित है।
- पाश्र्वनाथ द्वारा प्रतिपादित चार महाव्रतों में महावीर ने पाँचवाँ महाव्रत प्रह्मचर्य जोड़ा।
- जैन धर्म में अध्यात्मिक ज्ञान को कैवल्य कहा जाता है।
- स्वादवाद जैन धर्म से सम्बन्धित है। स्यादवाद (अनेकांतवाद) अथवा सप्तभंगीय को ज्ञान की सापेक्षता का सिद्धांत कहा जाता है।
- महावीर ने अपने जीवन काल में ही एक संघ की स्थापना की जिसमें ।। प्रमुख अनुयायी सम्मिलित थे। ये गणधर कहलाए।
- महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधरों की मृत्यु हो गई। महावीर के बाद केवल सुधर्मण जीवित था।
- जैन धर्म पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करता है। जैन धर्म में आत्मा की मान्यता है।
- सम्यक् दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक् आचरण जैन धर्म के क्रिरत्न हैं।
- भद्रबाहु एवं उनके अनुयायियों को दिगम्बर (दक्षिणी जैनी वस्त्रहीन)) कहा गया है।
- स्थूलभद्र एवं उनके अनुयायियों को स्वेताम्बर कहा गया है।
- श्वेताम्बर सम्प्रदाय के लोगों ने ही सर्वप्रथम महावीर एवं अन्य तीर्थकरों की पूजा आरम्भ की।
जैन संगीति
प्रथम सभाः चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में लगभगा 300 ई.पू. में प्रथम जैन सभा पाटलिपुत्र में सम्पन्न हुई थी। इसमें जजैन धर्म के प्रधान भाग 12 अंगों का सम्पादन हुआ।
- यह सभा स्थूलभद्र एवं सम्भूति विजय नामक स्थविरों के निरीक्षण में हुई थी।
- इसमें जैन धर्म दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दो भागों में बँट गया।
द्वितीय सभाः यह सभा देवर्षि क्षमाश्रवण के नेतृत्व में गुजरात में बल्लभी नामक स्थान पर लगभग 512 हूँ में सम्पन्न हुई। इसमें धर्म ग्रंथों का अंतिम संकलन कर इन्हें लिपिबद्ध किया गया।
- भद्रबाहु द्वारा रचित कल्पसूत्र में चौथी सदी ई.पू. का इतिहास प्राप्त होता है।
- आचार्य हेमचंद्र रचित परिशिष्टपर्वन तथा रत्नानंदी रचित भद्रबाहुचरित से चन्द्रगुप्त मौर्य के जीवन की प्रारंभिक तथा उत्तरकालीन घटनाओं की सूचना मिलती है।
- भगवतीसूत्र से महावीर के जीवन कृत्यों तथा अन्य समकालिकों के साथ उनके सम्बन्धों का विवरण मिलता है।
- जैन साहित्य पुराणचरित के अनुसार इसमें छठी शताब्दी से सोलहवीं शताब्दी तक का इतिहास वर्णित है जिससे विभिन्न कालों की राजनीतिक, सामाजिक तथा धार्मिक दशा का ज्ञान प्राप्त होता है।
बिहार और जैन साहित्य: बिहार के ऐतिहासिक स्रोत में जैन साहित्य का भी योगदान रहा है। इसके ग्रन्थ भी बौद्ध साहित्य के समान धर्मपरक हैं।
नोटः मई, 2018 में महात्मा बुद्ध, महावीर जैन तथा सम्राट अशोक के शाति और अहिंसा का संदेश से युक्त ‘सभ्यता द्वार’ का निर्माण पटना-गांधी मैदान के उत्तर में गंगा तट पर किया गया है।
बौद्ध धर्म और जैन धर्म में समानता
- अहिंसा और शाति दोनों ही धमाँ का मूल था।
- दोनों का उदय भी यज्ञीय कर्मकांड, ब्राह्मणवाद, जातिप्रथा और छुआछूत के विरोध में हुआ।
- दोनों ही ईश्वर की सत्ता में विश्वास नहीं करते।
- दोनों ने ही पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकार किया है।
5.इन दोनों ही धों ने अपने विचारों के प्रचार के लिए जनता को सरल भाषा का प्रयोग किया।
- दोनों ही धमों की स्थापना क्षत्रियों ने की क्योंकि बुद्ध और महावीर दोनों क्षत्रिय कुल के थे।
- दोनों ही करीब समकालीक थे और गृहत्याग के समय दोनों की आयु भी करीब समान थी।
- दोनों ही धर्मों के प्रवर्तक ज्ञान साधना के लिए एक ही प्रदेश के गणराज्य (बिहार) को चुना।
बौद्ध धर्म तथा जैन धर्म में असमानताएं
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बौद्ध धर्म
बौद्ध के उपदेश की भाषा पालि थी
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जैन धर्म
महावीर के उपदेश की भाषा प्राकृत थी
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विदेशों में प्रसार अधिक हुज्य, भारत में नहीं
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प्रसार भारत में ही हुआ विदेशों में कहीं नहीं
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सब एवं भिक्षुओं पर आधारित था
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अनुयायियों पर आधारित था
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ईश्वर एवं आत्मा के अस्तित्व को नकारते है
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आत्मा को शाश्वत मानते हैं
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न अधिक सुख एवं अधिक हुन्छ अर्थात मध्यम मार्ग के समर्थक
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कठोर व्रत पालन एवं उदासीन शारीरिक दुःख के समर्थक
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बौद्ध धर्म मोक्ष को मध्यम मार्ग के रूप में स्वीकार करता है
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जैन धर्म मोक्ष की सिद्धावस्था में शरीर का त्याग मानता है
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बौद्ध धर्म में नन मूर्तिना को पूजा नहीं होती
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महावीर को नग्न मूर्तियों के उपासक है
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अहिंसा का नियम व्यावहारिक था
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अहिंसा का नियम कठोरतम था
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अष्टांगिक मार्ग से गृहस्थ भी निर्वाण प्राप्त कर सकते हैं
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जैन धर्म के अनुसार गृहस्थ के लिए निर्वाण प्राप्त करना असम्भव था
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